ईशवचन विषयानुसार

चयन करना


विधि-विवरण 30:15-20 “आज मैं तुम लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूँ। (16) तुम्हारे प्रभु-ईश्वर की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर को प्यार करोगे, उसके मार्ग पर चलोगे और उसकी आज्ञाओं विधियों तथा नियमों का पालन करोगे, तो जीवित रहोगे, तुम्हारी संख्या बढ़ती जायेगी और जिस देश पर तुम अधिकार करने जा रहे हो, उस में प्रभु-ईश्वर तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करेगा। (17) परन्तु यदि तुम्हारा मन भटक जायेगा, यदि तुम नहीं सुनोगे और अन्य देवताओं की आराधना तथा सेवा के प्रलोभन में पड़ जाओगे, (18) तो मैं आज तुम लोगों से कहे देता हूँ कि तुम अवश्य ही नष्ट हो जाओगे और यर्दन नदी पार कर जिस देश पर अधिकार करने जा रहो हो, वहाँ तुम बहुत समय तक नहीं रहने पाओगे। (19) मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ - मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवत रह सकें। (20) अपने प्रभु-ईश्वर को प्यार करो, उसकी बात मानो और उसकी सेवा करते रहो। इसी में तुम्हारा जीवन है और ऐसा करने से तुम बहुत समय तक उस देश में रह पाओगे, जिसे प्रभु ने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों - इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की है।’’

निर्गमन 21:2-6 “यदि तुम किसी इब्रानी दास को मोल लो, तो वह छः वर्ष तक तुम्हारी सेवा करेगा। परन्तु सातवे वर्ष वह कुछ दिये बिना छोड़ दिया जायेगा। (3) यदि वह अकेला खरीदा गया हो, तो वह अकेला ही छोड़ दिया जाये और यदि वह विवाहित आया हो तो उसकी पत्नी भी उसके साथ जाये। (4) यदि उसका स्वामी उसे कोई पत्नी दे और उस से उसके पुत्र या पुत्रियाँ पैदा हों, तो वह स्त्री अपने बच्चों सहित अपने स्वामी की होगी और वह अकेला छोड़ दिया जाये। (5) यदि वह दास स्पष्ट रूप से कहे कि मैं अपने स्वामी, अपनी पत्नी और अपने बच्चों को प्यार करता हूँ और मैं जाना नहीं चाहता, (6) तो उसका स्वामी उसे ईश्वर के पास ले जाये। वह उसे दरवाजे या चौखट तक ले जाये। वहाँ उसका स्वामी सुए से उसका कान छेद दे। इसके बाद वह आजीवन उसका दास बना रहेगा।“

लूकस 9:62 “ईसा ने उस से कहा, ’’हल की मूठ पकड़ने के बाद जो मुड़ कर पीछे देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं’’।

लूकस 14:25-33 “ ईसा के साथ-साथ एक विशाल जन-समूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा, (26) ’’यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। (27) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। (28) ’’तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर ख़र्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है? (29) कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें, (30 ’इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका’। (31) ’’अथवा कौन ऐसा राजा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो बीस हज़ार की फ़ौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है? (32) यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर सन्धि के लिए निवेदन करेगा। (33) ’’इसी तरह तुम में जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।“

उत्पत्ति 14:21-23 “सोदोम के राजा ने अब्राम से कहा, ''मुझे मेरे आदमी दे दो, तुम सामान अपने लिए रख लो।'' (22) इस पर अब्राम ने सोदोम के राजा से कहा, ''स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता प्रभु-ईश्वर की शपथ! (23) डोरे का एक छोटा टुकड़ा हो या जूते की एक पट्टी-मैं तुम्हारी कोई भी चीज नहीं लूँगा, जिससे तुम यह न कह सको कि मैंने अब्राम को धनी बनाया है।

मत्ती 22:15-22“उस समय फरीसियों ने जा कर आपस में परामर्श किया कि हम किस प्रकार ईसा को उनकी अपनी बात के फन्दे में फँसायें। (16) इन्होंने ईसा के पास हेरोदियों के साथ अपने शिष्यों को यह प्रश्न पूछने भेजा, ’’गुरुवर! हम यह जानते हैं कि आप सत्य बोलते हैं और सच्चाई से ईश्वर के मार्ग कि शिक्षा देते हैं। आप को किसी की परवाह नहीं। आप मुँह-देखी बात नहीं करते। (17) इसलिए हमें बताइए, आपका क्या विचार है- कैसर को कर देना उचित है या नहीं’’ (18) उनकी धूर्त्तता भाँप कर ईसा ने कहा, ’’ढ़ोगियों! मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? (19) कर का सिक्का मुझे दिखलाओ।’’ जब उन्होंने एक दीनार प्रस्तुत किया, (20) तो ईसा ने उन से कहा, ’’यह किसका चेहरा और किसका लेख है?’’ (21) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कैसर का’’। इस पर ईसा ने उन से कहा, ’’तो, जो कैसर का है, उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को’’। (22) यह सुन कर वे अचम्भे में पड़ गये और ईसा को छोड़ कर चले गये।“


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