ईशवचन विषयानुसार

इश्वर मिलने आते हैं


कलोसियों 1:27 “वह रहस्य यह है कि मसीह आप लोगों में हैं और उन में आप लोगों की महिमा की आशा है।

उत्पत्ति 18:1-10 “ इब्राहीम मामरे के बलूत के पास दिन की तेज+ गरमी के समय अपने तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था कि प्रभु उस को दिखाई दिया। इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा कि तीन पुरुष उसके सामने खडे+ हैं। उन्हें देखते ही वह तम्बू के द्वार से उन से मिलने के लिए दौड़ा और दण्डवत् कर बोला, ''प्रभु! यदि मुझ पर आपकी कृपा हो, तो अपने सेवक के सामने से यों ही न चले जायें। आप आज्ञा दे, तो मैं पानी मंगवाता हूँ। आप पैर धो कर वृक्ष के नीचे विश्राम करें। इतने में मैं रोटी लाऊँगा। आप जलपान करने के बाद ही आगे बढ़ें। आप तो इसलिए अपने सेवक के यहाँ आए हैं।'' उन्होंने उत्तर दिया, ''तुम जैसा कहते हो, वैसा ही करो''। इब्राहीम ने तम्बू के भीतर दौड़ कर सारा से कहा ''जल्दी से तीन पसेरी मैदा गूंध कर फुलके तैयार करो''। तब इब्राहीम ने ढोरों के पास दौड़ कर एक अच्छा मोटा बछड़ा लिया और नौकर को दिया, जो उसे जल्दी से पकाने गया। बाद में इब्राहीम ने दही, दूध और पकाया हुआ बछड़ा ले कर उनके सामने रख दिया और जब तक वे खाते रहे, वह वृक्ष के नीचे खड़ा रहा। उन्होंने इब्राहीम से पूछा, ''तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?'' उसने उत्तर दिया, ''वह तम्बू के अन्दर है''। इस पर अतिथि ने कहा, ''मैं एक वर्ष के बाद फिर तुम्हारे पास आऊँगा। उस समय तक तुम्हारी पत्नी को एक पुत्र होगा।''

उत्पत्ति 12 -20 ईश्वर कम से कम दस बार इब्राहिम से मिलने गये थे। हरेक बार उसे आशिष प्राप्त हुआ।

उप्तत्ति 18:17 “प्रभु ने अपने मन में यह कहा, ''मैं जो करने जा रहा हूँ, क्या उसे इब्राहीम से छिपाये रखूँ?”

निर्गमन 3:1-10 “ मूसा अपने ससुर, मिदयान के याजक, यित्रों की भेडं+े चराया करता था। वह उन्हें बहुत दूर तक उजाड़ प्रदेष में ले जा कर ईष्वर के पर्वत होरेब के पास पहुँचा। (2) वहाँ उसे झाड़ी के बीच में से निकलती हुई आग की लपट के रूप में प्रभु का दूत दिखाई दिया। उसने देखा कि झाड़ी में तो आग लगी है, किन्तु वह भस्म नहीं हो रही है। (3) मूसा ने मन में कहा कि यह अनोखी बात निकट से देखने जाऊँगा और यह पता लगाऊँगा कि झाड़ी भस्म क्यों नहीं हो रही है। (4) निरीक्षण करने के लिए उसे निकट आते देख कर ईष्वर ने झाड़ी के बीच में से पुकार कर उससे कहा, ''मूसा! मूसा!'' उसने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।'' (5) ईष्वर ने कहा, ''पास मत आओ। पैरों से जूते उतार दो, क्योंकि तुम जहाँ खड़े हो, वह पवित्र भूमि है।'' (6) ईष्वर ने फिर उस से कहा, ''मैं तुम्हारे पिता का ईष्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईष्वर।'' इस पर मूसा ने अपना मुख ढक लिया; कहीं ऐसा न हो कि वह ईष्वर को देख ले। (7) प्रभु ने कहा, ''मैंने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दषा देखी और अत्याचारियों से मुक्ति के लिए उसकी पुकार सुनी है। मैं उसका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ। (8) मैं उसे मिस्रियों के हाथ से छुड़ा कर और इस देष से निकाल कर, एक समृद्ध तथा विषाल देष ले जाऊँगा, जहॉँ दूध तथा मधु की नदियाँ बहती हैं, जहाँ कनानी, हित्ती, अमोरी, परिज्जी, हिव्वी और यबूसी बसते हैं। (9) मैंने इस्राएलियों की पुकार सुनी और उन पर मिस्रियों का अत्याचार देखा, इसलिए मैं तुम्हें फिराउन के पास भेजता हॅँू। (10) तुम मेरी प्रजा इस्राएल को मिस्र देष से बाहर निकाल लाओ।

योहन 15:15 “अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है। मैंने तुम्हें मित्र कहा है क्योंकि मैने अपने पिता से जो कुछ सुना वह सब तुम्हें बता दिया है।“

यिरमियाह 29:10 “प्रभु यह कहता हैः ''जब बाबुल के ये सत्तर वर्ष बीत जायेंगे, तो मैं तुम्हारे यहाँ आऊँगा। मैं तुम्हारे साथ की गयी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा और तुम्हें इसी स्थान पर वापस ले आऊँगा”

लूकस 1:11-13 “धूप जलाने के समय सारी जनता बाहर प्रार्थना कर रही थी। उस समय प्रभु का दूत उसे धूप की वेदी की दायीं और दिखाई दिया। जकरियस स्वर्गदूत को देख कर घबरा गया और भयभीत हो उठा; परन्तु स्वर्गदूत ने उस से कहा, ''जकरियस! डरिए नहीं। आपकी प्रार्थना सुनी गयी है-आपकी पत्नी एलीज’बेथ के एक पुत्र उत्पन्न होगा, आप उसका नाम योहन रखेंगे।“

मत्ती 14:23-33 33 “ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे’। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे। नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी। रात के चौथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये। जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, ''यह कोई प्रेत है', डर के मारे चिल्ला उठे। ईसा ने तुरन्त उन से कहा, ''ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।“ पेत्रुस ने उत्तर दिया, ''प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए”। ईसा ने कहा, ''आ जाओ”। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा; किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ''प्रभु! मुझे बचाइए''। ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, ''अल्’पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?'' वे नाव पर चढे और वायु थम गयी। जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया ''आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं''।

योहन 20:19-23 “उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, ''तुम्हें शांति मिले!'' और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, ''तुम्हें शांति मिले! जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।'' इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, ''पवित्र आत्मा को ग्रहण करो! तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।“

लूकस 19:1-10 “ ईसा येरीख़ो में प्रवेश कर आगे बढ़ रहे थे। (2) ज’केयुस नामक एक प्रमुख और धनी नाकेदार (3) यह देखना चाहता था कि ईसा कैसे हैं। परन्तु वह छोटे क़द का था, इसलिए वह भीड़ में उन्हें नहीं देख सका। (4) वह आगे दौड़ कर ईसा को देखने के लिए एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वह उसी रास्ते से आने वाले थे। (5) जब ईसा उस जगह पहुँचे, तो उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर ज’केयुस से कहा, ''ज’केयुस! जल्दी नीचे आओ, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है''। (6) उसने, तुरन्त उतर कर आनन्द के साथ अपने यहाँ ईसा का स्वागत किया। (7) इस पर सब लोग यह कहते हुए भुनभुनाते रहे, ''वे एक पापी के यहाँ ठहरने गये''। (8) ज’केयुस ने दृढ़ता से प्रभु ने कहा, ''प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति ग़रीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ किसी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूँगा''। (9) ईसा ने उस से कहा, ''आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है, क्योंकि यह भी इब्राहीम का बेटा है। (10) जो खो गया था, मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।''

लूकस 24:13-18 “उसी दिन दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए एम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह येरुसालेम से कोई चार कोस दूर है। वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि ईसा स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये, परन्त शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं। ईसा ने उन से कहा, ''आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?'' वे रूक गये। उनके मुख मलिन थे। उन में एक क्लेओपस-ने उत्तर दिया, ''येरुसालेम में रहने वालों में आप ही एक ऐसे हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है''।

लूकस 19:41-44 “निकट पहुँचने पर ईसा ने शहर को देखा। वे उस पर रो पड़े (42) और बोले, ''हाय! कितना अच्छा होता यदि तू भी इस शुभ दिन यह समझ पाता कि किन बातों में तेरी शान्ति है! परन्तु अभी वे बातें तेरी आँखों से छिपी हुई हैं। (43) तुझ पर वे दिन आयेंगे, जब तेरे शत्रु तेरे चारों ओर मोरचा बाँध कर तुझे घेर लेंगे, तुझ पर चारों ओर से दबाव डालेंगे, (44) तुझे और तेरे अन्दर रहने वाली तेरी प्रजा को मटियामेट कर देंगे और तुझ में एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पड़ा नहीं रहने देंगे; क्योंकि तूने अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को नहीं पहचाना।''

मत्ती 8:5-8 “ईसा कफरनाहूम में प्रवेश कर ही रहे थे कि एक शतपति उनके पास आया और उसने उन से यह निवेदन किया, (6) ''प्रभु! मेरा नौकर घर में पड़ा हुआ है। उसे लक़वा हो गया है और वह घोर पीड़ा सह रहा है।'' (7) ईसा ने उस से कहा, ''मैं आ कर उसे चंगा कर दूँगा''। (8) शतपति नें उत्तर दिया, ''प्रभु! मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर चंगा हो जायेगा।


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Praise the Lord!