ईशवचन विषयानुसार

धन-सम्पत्ति


मत्ती: 6:19-21: पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीडे’ खाते हैं और चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। (20) स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीड़े खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। (21) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वही तुम्हारा हृद्य भी होगा।

मत्ती 6:24-25:''कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन-दोनों की सेवा नहीं कर सकते। (25) मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो- न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनें। क्या जीवन भोजन से बढ कर नहीं ? और क्या शरीर कपडे से बढ़ कर नहीं?

मत्ती 6:31-33: यह कहते हुए चिंता मत करो- हम क्या खायें, क्या पियें, क्या पहनें। (32) इन सब चीजों की खोज में गैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की ज’रूरत है। (तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। (34) कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा। आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।"

लूकस 16:19-21: धनी और लाज़रुस का दृष्टांत (पढिए)

सूक्ति ग्रन्थ 23:4-5:धनी बनने के लिए परिश्रम मत करोः यह विचार अपने मन से निकाल दो। (5) तुम धन पर आँख लगाते हो, तो वह लुप्त हो जाता है; क्योंकि उसके पंख निकल जाते हैं और वह गरूड़ की तरह आकाष की ओर उड़ जाता है।

मत्ती 16:26: मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन गँवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?

1 योहन 3:17: किसी के पास दुनिया की धन-दौलत हो और वह अपने भाई को तंगहाली में देखकर उसपर दया न करे, तो उस में ईश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है?

तिमथी 6:17-19: इस संसार के धनियों से अनुरोध करो कि वे घमण्ड न करें और नश्वर धन-सम्पत्ति पर नहीं, बल्कि ईश्वर पर भरोसा रखें, जो हमारे उपभोग की सब चीजें पर्याप्त मात्रा में देता है। (18) वे भलाई करते रहें, सत्कर्मों के धनी बनें, दानशील और उदार हों। (19) इस प्रकार वे अपने लिए एक ऐसी पूंजी एकत्र करेंगे, जो भविष्य का उत्तम आधार होगी और जिसके द्वारा वे वास्तविक जीवन प्राप्त कर सकेंगे।

लेवी 19:13 : "तुम न तो अपने पड़ोसी का षोषण करो और न उसके साथ किसी प्रकार का अन्याय। अपने दैनिक मजदूर का वेतन दूसरे दिन तक अपने पास मत रखो।"

सूक्ति ग्रन्थ 11:1: "प्रभु को खोटे तराजू से घृणा है, किन्तु उसे सही बात पसन्द है।

इसायाह 33:15-16: जो सदाचारण करता और सत्य बोलता है, जो अत्याचार द्वारा लाभ नहीं उठाता और घूस स्वीकार नहीं करता; जो वध का षड्यन्त्र सुन कर कान बन्द कर लेता, जिसकी आँखें बुराई नहीं देखना चाहतीं, (16) वह ऊँचाई पर निवास करेगा, उसका आश्रय पर्वत पर बसा हुआ क़िला होगा; उसे रोटी मिलती रहेगी और उसे कभी पानी का अभाव नहीं होगा।

1 तिमथी 6:8-10:यदि हमारे पास भोजन-वस्त्र हैं, तो हमें इस से सन्तुष्ट रहना चाहिए। (9) जो लोग धन बटोरना चाहते हैं, वे प्रलोभन और फन्दे में पड़ जाते हैं और ऐसी मूर्खतापूर्ण तथा हानिकर वासनाओं के शिकार बनते हैं, जो मनुष्यों को पतन और विनाश के गर्त में ढकेल देती हैं; (10) क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है। इसी लालच में पड़ कर कई लोग विश्वास के मार्ग से भटक गये और उन्होंने बहुत-सी यन्त्रणाएँ झेलीं।

सूक्ति ग्रन्थ 30:8-9:मुझे न तो गरीबी दे और न अमीरी- मुझे आवष्यक भोजन मात्र प्रदान कर। (9) कहीं ऐसा न हो कि मैं धनी बन कर तुझे अस्वीकार करते हुए कहूँ ''प्रभु कौन है?'' अथवा दरिद्र बन कर चोरी करने लगूँ और अपने ईष्वर का नाम कलंकित कर दूँ।

प्रवक्ता ग्रन्थ 11:18-20:कुछ लोग परिश्रम और मितव्यय से धनी बनते हैं, किन्तु अन्त में उनका यह भाग्य होगा : (19) वे कहेंगे, ''मुझे शान्ति प्राप्त हो गयी है। अब मैं अपनी सम्पत्ति का उपभोग करूँगा''; (20) जब कि वे नहीं जानते कि उनकी घड़ी कब आयेगी। वे मर जायेंगे और अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिए छोड़ देंगे।

प्रवक्ता 14:11-17: पुत्र! अपने धन का उपभोग करो और प्रभु को उचित बलिदान चढ़ाओ। (12) याद रखो कि मृत्यु के आने में देर नहीं है और तुम अधोलोक का निर्णय नहीं जानते। (13) मरने से पहले अपने मित्र की भलाई करो और जहाँ तक बन पड़े, उसे उदार दान दो। (14) वर्तमान की अच्छी चीजों से अपने को वंचित मत रखो और सुख का अपना भाग हाथ से न जाने दो। (15) क्या तुम को अपना धन दूसरों के लिए नहीं छोड़ना पड़ेगा? क्या तुम्हारे परिश्रम का फल चिट्ठी डाल कर नहीं बँटेगा ? (16) दे दो, ले लो और आनन्द मनाओ। (17) मरने से पहले धर्माचरण करो, क्योंकि अधोलोक में तुम को सुख नहीं मिलेगा।

मारकुस 10:17-30: धनी युवक की येसु से मुलाकात (पढिए)


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!