📖 - रूत का ग्रन्थ

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अध्याय 02

1) अपने पति की तरफ़ से नोमी के बोअज़ नामक एक सम्बन्धी था। वह एलीमेलेक के कुल का बहुत धनी मनुष्य था।

2) मोआबिन रूत ने नोमी से कहा, "मुझे खेतों में जाने दीजिए। जो मुझ पर कृपा करेगा, उसी के पीछे-पीछे सिल्ला बीनना चाहती हूँ।" उसने उत्तर दिया, "बेटी, जाओ।"

3) वह गयी और खेतों में फ़सल काटने वालों के पीछे-पीछे सिल्ला बीनने लगी। सौभाग्य से वह जिस खेत पर पहुँची, वह एलीमेलेक के कुल के बोअज़ का ही था।

4) जब बोअज़ बेथलेहेम से आया, तो उसने काटने वालों से कहा, "प्रभु तुम्हारे साथ हो!" और उन्होंने उत्तर दिया, "प्रभु आपका कल्याण करे!"

5) इस पर बोअज़ ने अनाज काटने वालों के मेट से पूछा, "वह किसकी लड़की है?"

6) काटने वालों के मेट ने उत्तर देते हुए कहा, "वह एक मोआबिन लड़की है, जो नोमी के साथ मोआब देश से आयी है। उसने कहा, ‘क्या मैं बीन सकती और काटने वालों के पीछे-पीछे पूलों के आसपास की बालें बटोर सकती हूँ?’

7) वह बड़े सबेरे आ कर अब तक बीन रही है। उसने केवल झोपड़ी में थोड़ा-सा आराम किया।"

8) बोअज़ ने रूत से कहा, "बेटी! सुनो। दूसरे खेत में सिल्ला बीनने मत जाओ। यहाँ रहो। मेरी नौकरानियों के साथ रहो।

9) इसका ध्यान रखा करो कि किस खेत में फ़सल कट रही है और उनके पीछे-पीछे चलो। मैं अपने नौकरों को आदेश दे चुका हूँ कि वे तुम को तंग न करें। यदि तुम्हें प्यास लगे, तो नौकरों द्वारा भरे हुए घड़ों में से पानी पीने जाओ।"

10) रूत ने साष्टांग प्रणाम किया और कहा, "मुझे आपकी कृपादृष्टि कैसे प्राप्त हुई? मैं तो परदेशिनी हूँ और आप मेरी सुधि लेते हैं।"

11) बोअज़ ने उत्तर दिया, "लोगों ने मुझे बताया कि तुमने अपने पति की मृत्यु के बाद अपनी सास के लिए क्या-क्या किया है। तुम अपने माता-पिता और अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर, ऐसे लोगों के यहाँ चली आयी हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानती थी।

12) तुमने जो किया, प्रभु तुम्हें उसका बदला दे। प्रभु, इस्राएल के ईश्वर, जिसकी छत्रछाया में तुम आ गयी हो, तुम्हें पूरा-पूरा प्रतिफल दे।"

13) उसने उत्तर दिया, "महोदय! आपकी बड़ी कृपा है। आपने मुझे बड़ा धीरज बँंधाया है और अपनी दासी से दयापूर्ण बातें की हैं, यद्यपि मैं आपकी दासी तक नहीं हूँ।"

14) भोजन करते समय बोअज़ ने उस से कहा, "इधर आ कर रोटी लो और उसे सिरके में डुबा कर खाओं।" वह काटने वालों के साथ बैठ गयी। तब उसने उसे कुछ भुना हुआ अनाज दिया। वह खा कर तृप्त हो गयी और उसके पास कुछ बच भी गया।

15) इसके बाद वह फिर सिल्ला बीनने के लिए उठी और बोअज़ ने अपने नौकरों को यह आदेश दिया, "वह पूलों के बीच-बीच में बीन सकती है। उसे मना नहीं करो।

16) पूलों से भी कुछ डंठल गिरा देना, जिससे वह उन्हें बीन सके। उसे मत डाँटो।"

17) रूत शाम तक खेत में सिल्ला बीनती रही। तब उसने बीना हुआ जौ फटका और लगभग़ आधा मन निकला।

18) वह उसे ले कर नगर आयी और उसने अपनी सास को अपना बीना हुआ अनाज दिखाया और भोजन कर तृप्त हो लेने के बाद जो बचा था, वह भी ला कर उस को दिया।

19) उसकी सास ने उससे पूछा, "आज तुमने सिल्ला कहाँ बीना? तुमने कहाँ काम किया? जिसने तुम्हारा भला किया है, उसका भी भला हो।" इस पर उसने अपनी सास को उसके विषय में बताया, जिसके यहाँ उसने काम किया था। उसने कहा, "जिसके यहाँ मैंने आज काम किया, उस पुरुष का ना बोअज़ है।

20) नोमी ने अपनी बहू से कहा, "उसे उस प्रभु का आशीर्वाद मिले, जो जीवितों और मृतकों पर दया करता है।" आगे नोमी ने उस से कहा, "वह आदमी हमारा सम्बन्धी ही नहीं है, वरन् उन लोगों में है, जिनको हमारी भूमि के उद्धार का अधिकार है।"

21) तब मोआबिन रूत ने कहा, "उसने मुझ से यह भी कहा है कि जब तक मेरी फ़सल न कट जाये, तब तक तुम मेरे नौकरों के साथ ही रहो।"

22) नोमी ने अपनी बहू रूत से कहा, "ठीक है, बेटी। तुम उसकी दासियों के साथ ही रहना। कहीं ऐसा न हो कि दूसरे खेत में कोई तुम्हारे साथ दुव्यर्वहार कर बैठे।"

23) इसलिए वह जौ और गेहूँ की कटनी के अन्त तक बोअज़ की दासियों के साथ अनाज बीनती रही और अपनी सास के साथ रहती थी।



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