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धन्य मरियम तेरेसा

जन्म और बाल्यकाल

तेरेसा का जन्म 26 अप्रैल 1876 को केरल के त्रिशूर जिले के पुत्तेनचिरा गाँव में हुआ। थोमा और तान्डा उनके माता-पिता थे। मई 3 1876 को उनका बपतिस्मा हुआ। 1904 में उन्होंने अपनी यह इच्छा प्रकट की कि सब लोग उनके नाम के साथ ’मरियम’ जोड कर उन्हें बुलायें। उनका परिवार धनी था, लेकिन तेरेसा के दादा ने पूरी संपत्ति अपनी सात बेटियों को शादी कराने के लिए बेच दी। उस समय दहेज की प्रथा प्रचलित थी। अपनी तंगहाली का बहाना बना कर तेरेसा के पिता तथा एक भाई शराब पीने लगे। तेरेसा उनके माता-पिता की पाँच में से तीसरी संतान थी। उनकी माँ तान्डा विश्वास की धनी थी। उन्होंने तेरेसा को विश्वास, भक्ति और ईश्वर प्रेम में तेरेसा को प्रशिक्षण दिया। बचपन से ही ईश्वर को प्यार करने की उनकी तीव्र इच्छा थी। इस के लिए उन्होंने सप्ताह में चार दिन उपवास किया और रोज कई बार मालाविनती की। कई बार वह पूरी रात जग कर प्रार्थना में बिताती थी। द्स साल की उम्र में उन्होंने अपना कुँवारापन येसु को समर्पित किया। जब वे बारह साल की थीं, उनकी माता की मृत्यु हुयी। तब तक वे अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर चुकी थी। वे अपनी बुलाहट को पहचानने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने 1891 में शांतिपूर्ण वातावरण की खोज में जंगल में जाकर रहने की योजना बनायी। परन्तु वे सफल नहीं हुयी। तेरेसा अपनी तीन सहेलियों के साथ गिरजा घर में जाकर वेदी की सफाई और सजावट करती थी|

मरियम तेरेसा के रहस्यमय अनुभव

मरियम तेरेसा और उनके तीन सहेलियाँ बहुत समय प्रार्थना में बिताती थीं। इसके अतिरिक्त वे गरीबों तथा रोगियों के घरों में जा कर उनकी सेवा करती थीं। वे कुष्ठरोगियों की भी सेवा करती थीं। मरियम तेरेसा को कई रहस्यमय अनुभव होते थे। उन्होंने दर्शनों में प्रभु येसु, माता मरियम और संत यूसुफ़ को देखा। वे दर्शनों में उनके जीवन के लिए मार्गदर्शन देते रहते थे। शुक्रवार के दिन कई बार मरियम तेरेसा जमीन से ऊपर उठी हुई क्रूस के टंगे येसु के समान हाथ फैला कर दिखती थी। यह देखने के लिए आस-पडोस के लोग आते थे। कभी-कभी येसु के पाँच घाव उनके शरीर में दिखायी देते थे। उनको शैतान शारीरिक रीति से भी प्रताडित करता था। कई लोगों को मरियम तेरेसा पर बीतती इन असाधारण बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यहाँ तक कि सन्‍ 1902 और 1905 में दो बार महाधर्माध्यक्ष ने उनसे शैतान को निष्कासित करने हेतु पुरोहितों को भी भेजा। हालाँकि मरियम तेरेसा को इस पर बहुत दुख हुआ, फिर भी उन्होंने विनम्रता के साथ उस बात को भी स्वीकार किया। इन सब के चलते कई लोगों ने उन्हें गलत समझा। उनके जीवन में उन्हें कई प्रलोभनों का भी सामना करना पडा। उन्होंने अपने जीवन की समस्याओं को अपने आध्यात्मिक गुरु फादर जोसेफ वितयत्तिल को बताया और उनसे मार्गदर्शन स्वीकार किया। यह प्रक्रिया उनकी मृत्यु तक उन्होंने जारी रखी।

प्रार्थना भवन की स्थापना

सन 1903 में मरियम तेरेसा ने अपने धर्माध्यक्ष से एकांत में प्रार्थना करने हेतु एक प्रार्थना भवन शुरू करने की अनुमति माँगी। त्रिशूर के धर्मपाल (Vicar Apostolic) ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने मरियम तेरेसा से हाल ही में स्थापित फ्रांसिस्की क्लारिस्ट धर्मसमाज में शामिल होने का सुझाव दिया। लेकिन मरियम ने उसे उचित नहीं समझा। 1912 में उन्होंने मरियम तेरेसा को कार्मल धर्मसंघ में शामिल करने की कोशिश की। लेकिन मरियम को लगा कि उनकी बुलाहट भिन्न थी। सन 1913 में उन्होंने मरियम तेरेसा को प्रार्थना भवन बनाने की अनुमति दी और उसकी आशिष करने के लिए अपने सचिव को भेजा। तेरेसा उस भवन में रहने लगी और उनकी तीन सहेलियाँ भी उनके साथ रहने लगी। वे अपना समय प्रार्थना तथा परोपकार में बिताती थी। वे गरीबों तथा रोगियों का विशेष ख्याल करती थी।

धर्मसंघ की स्थापना

अब धर्माध्यक्ष को विश्वास हुआ कि ये बहनें ईश्वर के द्वारा कुछ विशेष कार्य के लिए बुलायी गयी हैं। 14 मई 1914 को उन्होंने कलीसियाई नियमों के मुताबिक पवित्र परिवार धर्मसंघ (Holy Family Congregation) की स्थापना की। उन्होंने मरियम तेरेसा को एक धर्मबहन के रूप में और अन्य तीन सदस्यों को प्रशिक्षणार्थियों के रूप में उस धर्मसंघ में स्वीकार किया। धर्माध्यक्ष ने फादर जोसेफ वितयत्तिल को उनका आध्यात्मिक गुरु नियुक्त किया।

इस नये धर्मसंघ की कोई नियमावली नहीं थी। बिशपस्वामी ने स्वयं श्रीलंका से बोर्डेयो के पवित्र परिवार धर्मसंघ की एक प्रति मंगा कर उस में आवश्यक परिवर्तन कर मदर मरियम तेरेसा को दी। बडी निष्ठा से मदर मरियम तेरेसा ने उसका पालन किया। बारह साल के अन्दर उन्होंने तीन मठों, दो स्कूलों, दो होस्टलों, एक अध्ययन भवन तथा एक अनाथालय का निर्माण किया। यह सब प्रथम विश्वयुध्द के बीच और बाद हुआ। कई युवतियाँ उनकी सादगी, परोपकारिता तथा पवित्रता से आकर्षित हो कर नये धर्मसंघ के सदस्य बन गयीं। उनकी मृत्यु के समय 55 धर्मबहनें पवित्र परिवार धर्मसंघ की सदस्य थीं। इसके अतिरिक्त उनके संरक्षण में 30 सदस्य छात्रावास में और 10 अनाथालय में थे।

मृत्यु और अंतिम संस्कार

8 जून 1926 को मरियम तेरेसा की मृत्यु हुयी। बहुत से भक्तजन उनकी कब्र पर ईश्वर की आशिष पाने आते हैं। 28 जून 1999 को मदर मरियम तेरेसा को ईश्वर की सेविका घोषित किया गया। अप्रैल, सन्‍ 2000 को रोम में मदर मरियम तेरेसा धन्य घोषित की गयी।


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जो विश्वास करता है, उसे किसी स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं; जो विश्वास नहीं करता है, उस के लिए कोई स्पष्टीकरण संभव नहीं है। - संत थॉमस अक्वीनस

अगर हमारे पास शांति नहीं है, तो इस का यह कारण है कि हम भूल जाते हैं कि हम एक दूसरे के हैं। -
धन्य मदर तेरेसा

शून्यता से ईश्वर सृष्टि करते हैं। यह एक आश्चर्यजनक बात है। परन्तु वे इस से भी आश्चर्यजनक एक कार्य करते हैं – वे पापियों से संत बनाते हैं। -
सोरेन कीर्कगार्ड

“यह मान कर प्रार्थना करो कि सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है। यह मान कर काम करो कि सब कुछ तुझ पर निर्भर है।“ - सन्त अगस्तिन

अगर हम वेदी की रोटी में येसु को नहीं देखते और उनमें विश्वास नहीं करते हैं, तो हम गरीबों के रूप धारण करने वाले येसु को नहीं देख पायेंगे। - कोलकोत्ता की धन्य मदर तेरेसा

“ईश्वर के वचन से ईश्वर का हृदय जानिए” - संत पिता संत ग्रिगोरी

छोटी सफेद होस्तिया में सब से बडी प्रेम कहानी हैं। - महाधर्माध्यक्ष फुल्टन जे.शीन

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प्रभु की जय!
आल्लेलूय़ा!

परमेश्वर को धन्यवाद!
प्रभु तू ही पावन है!

पिता इश्वर की स्तुति हो!

प्रभु दया कर!

प्रभु मेरा चरवाहा है!
मुझे किसी बात की कमी नहीं।