📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 14

1) "तुम लोग प्रभु, अपने ईश्वर की सन्तान हो। तुम किसी की मृत्यु के कारण न तो अपने शरीर में घाव करोगे और न अपने सिर के सामने के बाल कटवाओगे।

2) कारण, तुम प्रभु, अपने ईश्वर को अर्पित प्रजा हो। प्रभु ने पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों में से तुम को अपनी निजी प्रजा के रूप में चुना है।

3) "तुम कोई घृणित वस्तु नहीं खाओगे।

4) वे पशु, जिन्हें तुम खा सकते हो, ये हैं: बैल, भेड़, बकरी,

5) हरिण, चिकारा, साँभर, जंगली बकरा, चीतल, कुरंग और पहाड़ी भेड़।

6) तुम उन सब पशुओं को खा सकते हो जिनके खुर फटे हैं और जो पागुर करते हैं।

7) परन्तु पागुर करने वालों और फटे खुर वालों में तुम इन को नहीं खा सकते हो: ऊँट, खरगोष और चट्टानी बिज्जू। ये पागुर करने वाले है परन्तु इनके खुर फटे नहीं होते। ये तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं।

8) और सुअर भी, जो फटे खुर वाला है, लेकिन पागुर नहीं करता। इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खा सकते हो और इनकी लाष छू सकते हो।

9) "सब जल-जन्तुओं में तुम उन्हें खा सकते हो जो पंख और शल्क वाले हैं;

10) परन्तु उन्हेंं, नहीं खा सकते, जिनके पंख और शल्क नहीं हैं। वे तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं।

11) "तुम सभी पशु पक्षियों को खा सकते हो।

12) तुम जिन पक्षियों को नहीं खा सकते हो, वे हैं: गरुड़, हड़फोड़, कुरर,

13) चील सब प्रकार के बाज,

14) लग्घड़, सब प्रकार के कौए,

15) शुतुरमुर्ग, रात-शिकरा, जल-कुक्कुट, सब प्रकार के शिकरे,

16) घुग्घू, बड़ा उल्लू, उल्लू,

17) हवासील, गिद्ध, हड़-गीला,

18) लगलग, सब प्रकार के बगुले, हुदहुद और चमगादड़।

19) सब प्रकार के पंख वाले छोटे जीव-जन्तु तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं। तुम उन्हें नहीं खा सकते।

20) तुम पंख वाले सभी शुद्ध पक्षियों को खा सकते हो।

21) "तुम किसी भी मृत पशु-पक्षी को नहीं खा सकते हो। तुम उसे अपने गाँव में रहने वाले विदेशी द्वारा खाये जाने के लिए छोड़ सकते हो या वह किसी परदेशी को बेचा जा सकता है। तुम एक ऐसी जाति के हो, जो प्रभु अपने ईश्वर के लिए पवित्र है, तुम किसी मेमने को उसकी माँ के दूध में नहीं उबालोगे।

22) "तुम प्रति वर्ष अपनी भूमि में बोये हुए बीज की उपज का दशमांश अलग करोगे।

23) तुम अपने अनाज, अपनी अंगूरी, अपने तेल का दशमांश और अपने मवेशी और भेड़-बकरियों के पहलौठे का मांस प्रभु, अपने ईश्वर के सामने उसी स्थान पर खाओगे, जिसे वह अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनेगा, जिससे तुम प्रभु, अपने ईश्वर पर सदा श्रद्धा रखना सीखोगे।

24) यदि वह स्थान तुम्हारे यहाँ से अधिक दूर हो, जिसे प्रभु तुम्हारा ईश्वर अपना नाम स्थापित करने के लिए चुनता है और तुम वहाँ सब कुछ नहीं ले जा सकते हो, क्योंकि प्रभु ने तुम को भरपूर आशीर्वाद दिया है।

25) तो तुम वह सब बेच सकते हो और उसका रूपया ले कर उसे वह स्थान ले जा सकते हो, जिसे प्रभु चुनता है।

26) फिर तुम वहाँ उस रूपये से अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ मोल ले सकते हो; जैसे बछड़ें, भेड़ें, अंगूरी, मंदिरा या जो वस्तु चाहते हो तुम वहाँ प्रभु, अपने ईश्वर के सामने अपने परिवार के साथ आनन्द मनाते हुए भोजन कर सकते हो।

27) उस समय अपने नगरों में रहने वाले लेवियों को मत भुलाओ, क्योंकि लेवियों की तुम्हारी तरह अपनी भूमि और दायभाग नहीं है।

28) "तुम प्रति तीसरे वर्ष उस वर्ष की उपज का दशमांश अपने-अपने नगर में जमा करो,

29) जिससे लेवी (उनकी अपनी भूमि का दायभाग नहीं है।) और तुम्हारे नगर में रहने वाले परदेशी, अनाथ और विधवाएँ आ सकें और खा कर तृृप्त हो जायें और प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे सब कार्यो में आशीर्वाद प्रदान करे।



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