📖 - रूत का ग्रन्थ

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अध्याय 01

1) न्यायकर्ताओं के समय देश में अकाल पड़ा, इसलिए यूदा के बेथलेहेम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी और अपने दोनों पुत्रों के साथ मोआब के मैदान में बसने आया।

2) उस व्यक्ति का नाम एलीमेलेक था, उसकी पत्नी का नाम नोमी और उसके दोनों पुत्रों के नाम महलोन और किल्योन। वे यूदा के बेथलेहेम के एफ्ऱाती थे। वे मोआब देश जा कर वहाँ रहने लगे।

3) नोमी का पति एलीमेलेक मर गया और वह अपने दोनों पुत्रों के साथ रह गयी।

4) उन्होंने मोआबी स्त्रियों के साथ विवाह किया - एक ओर्पा कहलाती थी और दूसरी रूत। उन्होंने दस वर्ष तक वहाँ निवास किया।

5) इसके बाद महलोन और किल्योन भी मर गये और नोमी अपने दोनों पुत्रों और अपने पति से वंचित हो गयी।

6) तब उसने अपनी बहुओं के साथ मोआब के मैदान से चल देने का निश्चय किया; क्योंकि उसने सुना था कि प्रभु ने अपनी प्रजा की सुधि ली और उसे खाने के लिए रोटी दी थी।

7) इसलिए वह अपनी दोनों बहुओं के साथ अपने निवास स्थान से यूदा देश के लिए रवाना हुई।

8) नोमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, "अब तुम दोनों अपनी-अपनी माता के घर लौट जाओ। तुमने अपने मृत पति ओर मेरे साथ जैसा सद्व्यवहार किया है, प्रभु भी तुम्हारे साथ वैसा ही करे।

9) प्रभु ऐसा करे कि तुम दोनों को अपने-अपने पति के घर शान्ति मिले।" इसके बाद उसने उनका चुम्बन किया। वे फूट-फूट कर रोने लगीं।

10) दोनों ने उस से कहा, "नहीं, हम आपके साथ, आपकी जाति के लोगो के पास चलेंगीं।"

11) परन्तु नोमी ने उत्तर दिया, "मेरी पुत्रियो, तुम वापस चली जाओ। तुम मेरे साथ क्यों चलना चाहती हो? क्या मैं और पुत्र उत्पन्न कर सकूँगी, जो तुम्हारे पति बनें?

12) जाओ, मेरी पुत्रियो, लौट जाओ; क्योंकि मैं इतनी बूढ़ी हो चुकी हूँ कि विवाह नहीं कर सकती। यदि मैं गर्भधारण करने की आशा भी करूँ और फिर चाहे आज रात को ही विवाह कर लॅूँ और मेरे पुत्र भी पैदा हो जायें,

13) तब भी क्या तुम उनके बडे़ होने तक बैठी रहोगी और विवाह नहीं करोगी? नहीं, मेरी बेटियों! मैं तुम्हारे कारण बहुत दुःखी हूँ। प्रभु के हाथ ने मुझे मारा है।"

14) दोनों बहुएँ फिर फूट-फूट कर रोने लगीं। ओर्पा अपनी सास को गले लगा कर अपने लोगों के यहाँ लौट गयी, किन्तु रूत अपनी सास से लिपट गयी।

15) नोमी ने उस से कहा, "देखो, तुम्हारी जेठानी अपने लोगों और अपने देवताओं के पास लौट गयी है। तुम भी अपनी जेठानी की तरह लौट जाओ।"

16) किन्तु रूत ने उत्तर दिया, "इसके लिए अनुरोध न कीजिए कि मैं आप को छोड़ दूँ और लौट कर आप से दूर हो जाऊँ। आप जहाँ जायेंगी, वहाँ मैं भी जाऊँगी और आप जहाँ रहेंगी, वहाँ मैं भी रहूँगी। आपकी जाति मेरी भी जाति होगी और आपका ईश्वर मेरा भी ईश्वर होगा।

17) जहाँ आप मरेंगी, वहाँ मैं भी मरूँगी और दफ़नायी जाऊँगी। यदि मृत्यु को छोड़ कर कोई और बात मुझे आप से अलग कर दे, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये।"

18) जब नोमी ने देखा कि उसका साथ चलने का दृढ़ निश्चय है, तो उसने इस विषय में उस से फिर कुछ नहीं कहा।

19) बेथलेहेम पहुँचने तक दोनों साथ-साथ आगे बढ़ती गयीं। उनके बेथलेहेम पहँचने पर उनके कारण सारे नगर में हलचल मच गयी। स्त्रियाँ कहने लगीं, "क्या यह नोमी है?"

20) उसने उन से कहा, "मुझे नोमी (सुखी) मत कहो, मुझे मारा (दुःखिया) कहो; क्योंकि प्रभु ने मुझे बड़ा दुःख दिया है।

21) मैं यहाँ से भरीपूरी गयी थी, किन्तु सर्वशक्तिमान् ने मुझे ख़ाली हाथ लौटाया है। तुम मुझे नोमी क्यों कहती हो? प्रभु ही मेरे विरुद्ध है। सर्वशक्तिमान् ने ही मुझ पर विपत्ति ढाही है।"

22) इस प्रकार नोमी अपनी मोआबी बहू रूत के साथ मोआब के मैदान से लौटी। वे जौ की कटनी के प्रारम्भ में बेथलेहेम पहॅुँची।



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