📖 - रूत का ग्रन्थ

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अध्याय 03

1) एक दिन उसकी सास नोमी ने उससे कहा, "बेटी, मैं तुम्हारे लिए एक ऐसा घर क्यों न बसा दूँ, जिससे तुम्हारा कल्याण हो जायें?

2) देखो, बोअज़, जिसकी नौकरानियों के साथ तुम रह चुकी हो, हमारा सम्बन्धी है। वह आज शाम को खलिहान में जौ की ओसावन करेगा।

3) इसलिए स्नान कर सुगन्धित इत्र लगा लो और अपने अच्छे-से-अच्छे वस्त्र पहन कर खलिहान चली जाओ। लेकिन जब तक वह खा-पी न ले, तब तक यह ध्यान रखना कि वह तुम्हें पहचान न पाये।

4) फिर जब वह सोने के लिये लेटे, तो वह स्थान अच्छी तरह देख लेना, जहाँ वह लेट गया है। तब तुम उसके पास जा कर और उसके पाँव उघाड़ कर वहीं लेट जाना। वह तुम्हें बतायेगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए।"

5) उसने उत्तर दिया, "आप जैसा कहती हैं, मैं ठीक वही करूँगी।"

6) तब वह खलिहान गयी और उसने ठीक वैसा ही किया, जैसा उसकी सास ने उस से कहा था।

7) जब खाने-पीने के बाद बोअज़ प्रसन्नचित्त था, तो अनाज के ढेर के पीछे सोने चला गया। तब रूत घीरे-धीरे आयी और उसके पाँवों को उघाड़ कर वहीं लेट गयी।

8) आधी रात को बोअज़ चैंक उठा। उसने मुड़ कर अपने पाँवों के पास एक स्त्री को लेटे हुए देखा।

9) उसने पूछा, "तुम कौन हो?" तब उसने उत्तर दिया, "मैं आपकी दासी रूत हूँ। अपने वस्त्रों का छोर अपनी दासी पर फैला दीजिए, क्योंकि आप मेरे सम्बन्धी हैं, आप को हमारी भूमि का उद्धार करने का अधिकार है।"

10) उसने कहा, "बेटी, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। तुम धनी या निर्धन युवकों के पीछे नहीं दौड़ी और अब तुमने अपने प्रेम का अधिक स्पष्ट प्रमाण किया।

11) बेटी! अब तुम नहीं डरो। तुम जो कुछ माँगोगी, मैं वह सब तुम्हारे लिए करूँगा, क्योंकि नगर के सब लोग जानते हैं कि तुम एक साध्वी स्त्री हो।

12) यह सच है कि तुम्हारा सम्बन्धी होने के नाते मुझे तुम्हारी भूमि का उद्धार करने का अधिकार है, परन्तु एक दूसरा व्यक्ति है, जो मुझ से अधिक तुम्हारा निकट का सम्बन्धी है।

13) रात को यहीं रहो। यदि वह कल तुम्हारी भूमि का उद्धार करना चाहेगा, तो ठीक है, उद्धार करे। किन्तु यदि वह तुम्हारी भूमि का उद्धार करना नहीं चाहेगा, तो जीवन्त ईश्वर की शपथ! मैं तुम्हारी भूमि का उद्धार करूँगा। तुम प्रातःकाल तक यहीं पड़ी रहो।"

14) वह प्रातःकाल तक उसके पाँवों के पास ही पड़ी रही और उसी समय उठी, जब कोई किसी को पहचान नहीं सकता था; क्योंकि बोअज़ ने सोचा कि किसी को यह पता न लग पाये कि वह स्त्री खलिहान में आयी थी।

15) बोअज़ ने कहा, "अपनी ओढ़नी फैलाओं।" ओढ़नी फैलाने पर उसने उस में आधा मन जौ डाल दिया और उसे उठा कर उसके सिर पर रख दिया। इसके बाद वह नगर गयी।

16) जैसे ही वह अपनी सास के पास आयी, उसने उस से पूछा, "क्या हुआ बेटी?" तब उसने उसे वह सब सुनाया, जो उस व्यक्ति ने उसके साथ किया था

17) और कहा, "यह कहते हुए कि तुम्हें ख़ाली हाथ अपनी सास के पास नहीं जाना चाहिए, उसने मुझे आधा मन जौ दिया।"

18) सास ने कहा, "बेटी! जब तक पता नहीं चले कि क्या होगा, तुम चुप रहो। वह आदमी तब तक चैन नहीं लेगा, जब तक वह आज यह मामला तय न कर दे।"



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