📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 12

1) रहबआम सिखेम गया, क्योंकि सभी इस्राएली उसे राजा बनाने के लिए सिखेम में एकत्रित हो रहे थे।

2) नबाट के पुत्र यरोबआम को भी इसकी सूचना मिली। अब तक वह मिस्र में रह रहा था, जहाँ वह राजा सुलेमान से भाग कर गया था।

3) लोगों ने उसे वहाँ से बुलवाया। यरोबआम और इस्राएल का सारा समुदाय रहबआम से बोला,

4) "आपके पिता ने हमारे कन्धे पर भारी जुआ रख दिया था। आप अपने पिता की कठोर बेगार और हमारे कन्धे पर रखे उसके भारी जुए को हलका करें और हम आपकी सेवा करेंगे।"

5) उसने उन्हें उत्तर दिया, "जाओ और तीन दिन के बाद मुझ से फिर मिलो"। तब लोग चले गये।

6) अब राजा रहबआम ने उन बड़े-बूढ़ों से परामर्श लिया, जो उसके पिता सुलेमान के राज्यकाल में उसके यहाँ सेवा करते थे। उसने पूछा, "तुम लोगों की राय क्या है? मैं इन लोगों को क्या उत्तर दूँ?"

7) उन्होंने उस से कहा, "यदि आप अब जनता के सेवक बनेंगे, यदि आप इन लोगों की सेवा करेंगे और इन्हें अनुकल उत्तर देंगे, तो ये सदा आपके सेवक बने रहेंगे"।

8) लेकिन उसने उन बड़े-बूढ़ों की राय पर ध्यान नहीं दिया और उस युवकों से सलाह ली, जो उसके समवयस्क और उसके सेवक थे।

9) उसने उन से पूछा, "तुम लोगों की राय क्या है? मैं इन लोगों का क्या उत्तर दूँ, जो मुझ से कहते हैं- ‘आपके पिता ने हम पर जो जुआ रखा, उसे हल्का करें’?"

10) उन युवकों ने, जो उसके समवस्यक थे, उसे यह उत्तर दिया, "जो लोग आप से कहते हैं- ‘आपके पिता ने हम पर भारी जुआ रखा; आप हमारा जुआ हलका कर दें,’ आप उन लोगों को यह उत्तर दें- ‘मेरी छोटी उँगली मेरे पिता की कमर से भी अधिक मोटी है।

11) “मेरे पिता ने तुम पर भारी जुआ रखा, मैं तुम्हारा जुआ और भारी करूँगा। मेरे पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाते थे, मैं तुम्हें कील लगे कोड़ों से पिटवाउँगा’।“

12) राजा ने आज्ञा दी थी कि तीसरे दिन फिर से मेरे पास आ जाना, इसलिए यरोबआम और सब लोग तीसरे दिन रहबआम के पास लौटे।

13) तब राजा ने उन्हें कठोर उत्तर दिया। राजा रहबआम ने नेताओं की राय की अवहेलना कर

14) युवकों की राय के अनुसार उन को उत्तर देते हुए कहा, "मेरे पिता ने तुम लोगों पर भारी जुआ रख दिया, मैं उसे और अधिक भारी करूँगा। मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से पिटवाया, मैं तुम्हें कील लगे कोड़ों से पिटवाऊँगा।"

15) इस प्रकार राजा ने लोगों की माँग पर कुछ ध्यान नहीं दिया; क्योंकि यह प्रभु की लीला थी, जिससे शिलो के अहीया के माध्यम से नबाट के पुत्र यरोबआम के प्रति प्रभु की वाणी पूरी हो जाये।

16) जब सब इस्राएलियों ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तो उन्होंने राजा को उत्तर दिया, "दाऊद से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। यिशय के पुत्र के साथ हमारा कुछ लेना-देना नहीं। इस्राएलियों तुम घर लौट जाओ। दाऊद् तुम अपना घर सँभालों!" इस पर इस्राएली अपने-अपने घर चले गये।

17) रहबआम केवल उन इस्राएलियों का राजा रह गया, जो यूदा के नगरों में रहते थे।

18) जब राजा रहबआम ने बेगार के अध्यक्ष अदोराम को भेजा, तो सब इस्राएली उसे तब तक पत्थर मारते रहे, जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो गयी। राजा रहबआम शीघ्र ही अपने रथ पर सवार हो कर येरूसोलेम भाग निकला।

19) इस प्रकार इस्राएल दाऊद के घराने से अलग हो गया और आज तक ऐसा ही है।

20) सब इस्राएलियों को मालूम था कि यरोबआम लौट आया है; इसलिए उन्होंने उसे अपनी सभा में बुलवाया और इसे इस्राएल का राजा बनाया। यूदा वंश के अतिरिक्त और किसी वंश ने दाऊद के घराने का पक्ष नहीं लिया।

21) जब रहबआम येरूसालेम आया, जब उसने युदा और बेनयामीन वंश के एक लाख अस्सी हज़ार चुने हुए योद्धाओं को एकत्रित किया, जिससे वे इस्राएल के घरानों से लड़ कर सुलेमान के पुत्र रहबआम के लिए राज्य फिर प्राप्त करें।

22) लेकिन ईश्वर भक्त शमाया को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

23) "सुलेमान के पुत्र, यूदा के राजा रहबआम तथा यूदा और बेनयामीन के सब इस्राएलियों से कहो-

24) प्रभु का कहना है कि तुम अपने भाई-बन्धु इस्राएलियों से लड़ने मत जाओ। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर वापस चला जाये; क्योंकि राज्य के विभाजन में मेरा हाथ है।" उन्होंने प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और प्रभु की आज्ञा के अनुसार वे घर लौट गये।

25) यरोबआम ने एफ्ऱईम के पहाड़ी प्रदेश में स्थित सिखेम को क़िलाबन्द कर दिया और वह वहाँ रहने लगा। इसके बाद उसने पनूएल को क़िलाबन्द बनाया।

26) यरोबआम ने अपने मन में यह कहा, "मेरा राज्य फिर दाऊद के घराने के अधिकार में आ जायेगा।

27) यदि वह प्रजा प्रभु के मन्दिर में बलि चढ़ाने के लिए येरूसालेम जाती रहेगी, तो उसका हृदय उसके स्वामी, यूदा के राजा रहबआम की ओर आकर्षित हो जायेगा। ये लोग मेरी हत्या करेंगे और यूदा के राजा रहबआम के पास लौटेंगे।"

28) इस बात पर विचार करने के बाद राजा ने सोने के दो बछड़े बनवाये और लोगों से कहा, "तुम लोग बहुत समय तक येरूसालेम जाते रहे। इस्राएलियों! ये ही वे देवता हैं, जो तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाये।"

29) उसने एक मूर्ति बेतेल में स्थापित की और दूसरी मूर्ति दान में।

30) यह लोगों के लिए पाप का कारण बना; क्योंकि वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए बेतेल और दान जाया करते थे।

31) राजा ने पहाड़ियों पर भी पूजास्थान बनवाये और उनके लिए जनसाधारण में ऐसे लोगों को पुरोहित के रूप में नियुक्त किया, जो लेवीवंशी नहीं थे।

32) यरोबआम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन एक पर्व का भी प्रवर्तन किया, जो यूदा में होने वाले पर्व के सदृश था। उस अवसर पर उसने अपने द्वारा बेतेल में स्थापति वेदी पर उन बछड़ों की बलि चढ़ायी, जिन्हें उसने बनवाया था। उसने पहाड़ियों पर बनवाये पूजास्थानों के पुरोहितों को बेतेल में नियुक्त किया।

33) वह आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन, जिस दिन को उसने स्वयं निर्धारित किया था, बेतेल की वेदी की ओर चढ़ा। उसने इस्राएलियों के लिए इस पर्व का प्रर्वतन किया। वह धूप चढ़ाने के लिए वेदी की ओर बढ़ा।



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