📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 19

1) अहाब ने ईजे़बेल को वह सब बताया, जो एलियाह ने किया था और यह भी कि उसने किस प्रकार सब पुजारियों को तलवार के घाट उतरवा दिया।

2) उस पर ईज़ेबेल ने एक दूत भेज कर एलियाह से कहलवाया, "यदि मैंने कल इसी समय तक तुम्हारे साथ वही नहीं किया, जो तुमने उन लोगों के साथ किया, तो देवता मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलायें"।

3) इस से एलियाह भयभीत हो गया और अपने प्राण बचाने के लिय यूदा के बएर-शेबा भाग गया। वहाँ उसने अपने सेवक को छोड़ दिया

4) और वह मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय कर एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और यह कह कर मौत के लिए प्रार्थना करने लगा, "प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले, क्योंकि मैं अपने पुरखों से अच्छा नहीं हूँ।"

5) वह झाड़ी के नीचे लेट कर सो गया। किन्तु एक स्वर्गदूत ने उसे जगा कर कहा, "उठिए और खाइए"।

6) उसने देखा कि उसके सिरहाने पकायी हुई रोटी और पानी की सुराही रखी हुई है। उसने खाया-पिया और वह फिर लेट गया।

7) किन्तु प्रभु के दूत ने फिर आ उसका स्पर्श किया और कहा, "उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लम्बा हो जायेगा"।

8) उसने उठ कर खाया-पिया और वह उस भोजन के बल पर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब तक पहुँचा।

9) एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी। उसे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, "एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

10) उसने उत्तर दिया, "विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे मार डालना चाहते हैं।"

11) प्रभु ने उस से कहा, "निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।

12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।

13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“

14) उसने उत्तर दिया, “विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर के लिए अपने उत्साह के कारण मैं यहाँ हूँ। इस्राएलियों ने तेरा विधान त्याग दिया, तेरी वेदियों को नष्ट कर डाला और तेरे नबियों को तलवार के घाट उतारा। मैं ही बच गया हूँ और वे मुझे भी मार डालना चाहते हैं।“

15) प्रभु ने उस से कहा, “जाओ, जिस रास्ते से आये हो, उसी से दमिश्क की मरुभूमि लौट जाओ। वहाँ पहुँच कर हज़ाएत का अराम के राजा के रूप में

16) और निमशी के पुत्र येहू को इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक करो। इसके बाद आबेल-महोला के निवासी, शफ़ाट के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो, जिससे वह तुम्हारे स्थान में नबी हो।

17) जो हज़ाएल की तलवार से बचेगा, उसे यहू मारेगा और जो येहू की तलवार से बचेगा, उसे एलीशा मार डालेगा।

18) मैं इस्राएल में केवल उन सात हज़ार व्यक्तियों को रहने दूँगा, जिन्होंने बाल-देव के सामने अपने घुटने नहीं टेके और उसे अपने होंठों से नहीं चूमा।"

19) एलियाह वहाँ से चला गया और उसने शाफ़ाट के पुत्र एलीशा के पास पहुँच कर उसे हल जोतते हुए पाया। उसने बारह जोड़ी बैल लगा रखे थे और वह स्वयं बारहवीं जोड़ी चला रहा था। एलियाह ने उसकी बग़ल से गुज़र कर उस पर अपनी चादर डाल दी।

20) एलीशा ने अपने बैल छोड़ कर एलियाह के पीछे दौड़ते हुए कहा, "मुझे पहले अपने माता-पिता का चुम्बन करने दीजिए। तब मैं आपके साथ चलूँगा।"

21) एलियाह ने उत्तर दिया, “जाओ, लौटो। तुम जानते ही हो कि मैंने तुम्होरे साथ क्या किया है।“

22) इस पर एलीशा लौटा। उसने एक जोड़ी बैल मारा, हल की लकड़ी जला कर उनका मांस पकाया और मज़दूरों को खिलाया। मज़दूरों के खाने के बाद एलीशा उठ खड़ा हुआ और एलियाह का नौकर बन कर उसके पीछे हो लिया।



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