📖 - एज़्रा का ग्रन्थ

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अध्याय 06

1) राजा दारा की आज्ञा के अनुसार बाबुल के ख़जाने के अभिलेखागार में खोज की गयी

2) और मेदिया प्रान्त के एकबतना के गढ़ में एक लेख मिला, जिस में यह लिखा हुआ थाः

3) "स्मरण-पत्र: राजा सीरुस ने अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष येरूसालेम में ईश्वर के मन्दिर के सम्बन्ध में यह राजाज्ञा निकाली। वह मन्दिर उस स्थान पर फिर बनवाया जाये, जहाँ बलिदान चढ़ाये जाते हैं और जहाँ उसकी नींव है। उनकी ऊँचाई साठ हाथ हो और चैड़ाई साठ हाथ।

4) गढ़े पत्थरों की तीन परतें हों और फिर नई लकड़ी की एक परत। इनका ख़र्च राजकीय कोष से दिया जाये।

5) ईश्वर के मन्दिर की सोने-चाँदी की वे वस्तुएँ वापस दी जायें, जिन्हें नबूकदनेजर येरूसालेम के मन्दिर से बाबुल ले आया था। वे येरूसालेम के मन्दिर में फिर अपने स्थान पर रखी जायें। वे ईश्वर के मन्दिर में ही रखी जायें।

6) "इसलिए नदी के उस पार के क्षत्रप तत्तनय, शतर-बोज़नय और उनके साथी पदाधिकारी-आप इस कार्य से दूर रहें।

7) यहूदियों के राज्यपाल और उनके नेताओं को ईश्वर का वह मन्दिर बनाने दें। वे उसे उसके मूल स्थान पर फिर बनायें।

8) ईश्वर के उस मन्दिर का निर्माण करने वाले यहूदी नेताओं के साथ आपके व्यवहार के विषय में मेरी राजाज्ञा इस प्रकार हैः राजकीय सम्पत्ति से-अर्थात् नदी के उस पार के राजस्व से-उन लोगों का पूरा-पूरा ख़र्च तत्काल चुकाया जाये।

9) स्वर्ग के ईश्वर की होम-बलियों के लिए प्रतिदिन आवश्यक, बछड़े, मेढ़े और मेमने, फिर येरूसालेम के याजकों के निर्देश के अनुसार गेहूँ, नमक, अंगूरी और तेल उन्हें अवश्य दिये जायें,

10) जिससे वे स्वर्ग के ईश्वर को सुगन्धित बलि चढ़ा सकें और राजा और उसके पुत्रों की जीवन-रक्षा के लिए प्रार्थना करें।

11) मेरी आज्ञा यह भी है कि जो कोई इस राजाज्ञा का उल्लंघन करे, उसके घर से एक बल्ली ले कर खड़ा किया जाये और वह उस पर लटका दिया जाये और इस अपराध के कारण उसका घर मलबे का ढेर बना दिया जाये।

12) यदि कोई राजा या प्रजा इस राजाज्ञा में परिवर्तन करे या येरूसालेम में इस मन्दिर का विनाश करे, तो वह ईश्वर, जिसने वहाँ अपना नाम प्रतिष्ठित किया, उनका सर्वनाश करे! मैं -दारा-ने यह राजाज्ञा निकाली। इसका अक्षरशः पालन किया जाये।"

13) तब नदी के उस पार के क्षत्रप तत्तनय, शतर-बोज़नय और उनके साथी पदाधिकारियों ने राजा की लिखित आज्ञा का पूरा-पूरा पालन किया।

14) नबी हग्गय और इद्दो के पुत्र नबी ज़कर्या की प्रेरणा से यहूदी नेता मन्दिर के निर्माण-कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने वह कार्य पूरा किया, जिसे इस्राएल के ईश्वर और फ़ारस के राजा सीरुस, दारा और अर्तज़र्क़सीस ने उन्हें सौंपा था।

15) राजा दारा के छठे वर्ष, अदार महीने के तीसरे दिन, मन्दिर का निर्माण-कार्य पूरा हो गया।

16) इस्राएलियों-याजकों, लेवियों तथा अन्य लौटे हुए निर्वासितों-ने आनन्द के साथ ईश्वर के मन्दिर का प्रतिष्ठान-पर्व मनाया।

17) ईश्वर के इस मन्दिर के प्रतिष्ठान के समय उन्होंने एक सौ सांँड़ों, दो सौ मेढ़ों, चार सौ मेमनों और इस्राएल के वंशों की संख्या के अनुसार समस्त इस्राएल के पापों के प्रायश्चित्त के लिए बारह बकरों की बलि चढ़ायी।

18) इसके बाद उन्होंने येरूसालेम में ईश्वर के मन्दिर के लिए याजकों और लेवियों को अपने दलों में विभाजित किया, जैसा कि मूसा के ग्रन्थ में लिखा हुआ है।

19) लौटे हए निर्वासितों ने प्रथम महीने के चैदहवें दिन पास्का-पर्व मनाया।

20) याजकों और लेवियों ने शुद्धीकरण की रीतियों को पूरा किया। वे सब-के-सब शुद्ध हो गये। लेवियों ने लौटे हुए निर्वासितों, अपने साथी याजकों और अपने लिए पास्का के मेमने का वध किया।

21) निर्वासन से लौटे इस्राएलियों ने उन सब लोगों के साथ पास्का का मेमना खाया, जो देश के गै़र-यहूदियों की अशुद्धता छोड़ कर प्रभु, इस्राएल के ईश्वर की ओर अभिमुख हो गये।

22) इसके बाद उन्होंने सात दिन तक उल्लास के साथ बेख़मीर रोटियों का पर्व मनाया; क्योंकि प्रभु ने उन्हें आनन्दित किया था और उनके विषय में अस्सूर के राजा का हृदय बदल दिया था, जिससे उसने इस्राएल के ईश्वर के मन्दिर के काम में उन्हें सहायता दी।



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