📖 - एस्तेर का ग्रन्थ

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अध्याय 02

1) कुछ दिन बीत जाने पर राजा अर्तज़र्कसीस का क्रोध शान्त हुआ। उसे वशती की याद आयी और यह भी कि उसने क्या किया और उसे कौन-सा दण्ड मिला था।

2) राजा के यहाँ सेवा करने वाले दरबारियों ने कहा, "राजा के लिए सुन्दर-सुन्दर कन्याएँ ढूँढ़ी जायें।

3) राजा अपने साम्राज्य के सब प्रदेशों में ऐसे पदाधिकारियों को नियुक्त करें, जो सुन्दर कुमारियों का पता लगा कर उन्हें सूसा ले आयें और रनिवास के अध्यक्ष और रक्षक कंचुकी हेगय को सौंप दें। सबों को प्रसाधन की सामग्री दी जाये।

4) राज़ा को जो कन्या पसन्द होगी, वह वशती के स्थान पर रानी बनेगी।" राजा को यह बात पसन्द आयी और उसने यही किया।

5) राजधानी सूसा में एक यहूदी रहता था। उसका नाम मोरदकय था। वह याईर का पुत्र था, याईर शिमई का और शिमई कीश का। वह बेनयामीन कुल का था।

6) वह उन्हीं बन्दियों में से एक था, जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेज़र यूदा के राजा योकन्या के साथ येरूसालेम से ले आया था।

7) उसने अपने चाचा की बेटी हदस्सा, अर्थात् एस्तेर का पालन-पोषण किया था; क्योंिक वह अनाथ थी। वह कन्या सुधड़ और सुमुखी थी। उसके माता-पिता के मर जाने पर मोरदकय ने उसे गोद ले कर अपनी पुत्री बना लिया था।

8) जब राजा की आज्ञा की घोषणा की गयी और बहुत-सी कन्याएँ राजधानी सूसा में हेगय के प्रबन्ध में ले आयी जा चुकीं, तो एस्तेर भी हेगय के निरीक्षण में, जो रनिवास की देखरेख करता था, राजभवन में लायी गयी।

9) यह कन्या उसे पसन्द आयी और उसने हेगय की कृपा प्राप्त की। हेगय ने तुरन्त उसे प्रसाधान की सामग्री प्रदान की और उसके लिए विशेष भोजन का प्रबन्ध किया। उसने राजभवन की सात सर्वसुन्दर कन्याओं को उसकी सेवा में नियुक्त किया और उसे अपनी सहेलियों के साथ रनिवास के सब से उत्तम भाग में ठहराया।

10) एस्तेर ने अपनी जाति और अपने जन्म के सम्बन्ध में कुछ नहीं बताया; क्योंकि मोरदकय ने उसे कहा था कि वह इस विषय में कुछ न कहे।

11) मोरदकय प्रतिदिन रनिवास के आँगन के सामने आता-जाता, जिससे उसे यह पता चलता रहे कि एस्तोर कैसी है।

12) उन कन्याओं का सौन्दर्य-उपचार बारह महीनों तक किया जाता। उनका विलेपन छः महीनों तक गन्धरस के तेल से और छः महीनों तक उबटन और अंगराम से किया जाता। इसके बाद उनका राजा के पास जाने का समय आया।

13) जब कोई कन्या राजा के पास जाती, तो उसे वह सब दिया जाता, जो वह माँगती और जिसे वह रनिवास से राजमहल ले जाती।

14) वह सन्ध्या-समय भीतर चली जाती और प्रातःकाल उस दूसरे रनिवास में लौट जाती, जो राजा के कंचुकी, उपपत्नियों के प्रबन्धक शाशगज़ के अधिकार में था। इसके बाद जब तक राजा इच्छा नहीं प्रकट करता और उसे नाम ले कर नहीं बुला भेजता, तब तक वह फिर राजा के पास नहीं जा सकती थी।

15) जब मोरदकय के चाचा अबीहैल की पुत्री एस्तेर की, जिसे उसने गोद लिया था, राजा के पास जाने की बारी आयी, तो वह उसके सिवा और कुछ नहीं ले गयी, जो उपपत्नियों के प्रबन्धक कंचुकी हेगय ने उसे सुझाया। फिर भी सब देखने वाले उसकी सौम्यता और सौन्दर्य की प्रशंसा करते थे।

16) राजा अर्तज़र्कसीस के शासन के सातवें वर्ष, टेबेत नामक दसवें महीने में एस्तेर राजमहल के अन्दर लायी गयी थी।

17) राजा ने एस्तेर को अन्य सब स्त्रियों से अधिक प्यार किया। अन्य सब कुमारियों के बीच एस्तेर ने राजा की कृपादृष्टि प्राप्त की। इसलिए उसने उसके सिर पर राजमुकुट रख दिया और उसे वशती के स्थान पर रानी बनाया।

18) तब एस्तेर के आगमन के सम्मान में राजा ने अपने सब क्षत्रपों और पदाधिकारियों को एक बड़ा भोज दिया, उसने सब प्रदेशों में करों की छूट की घोषणा की और राजकीय उदारता के अनुरूप उपहार बाँटे।

19) मोरदकय राजमहल के द्वार पर रहा करता था।

20) एस्तेर ने अपने कुल और जाति के विषय में कुछ नहीं कहा था, जैसा कि मोरदकय ने उसे आदेश दिया था; क्योंकि एस्तेर अब भी मोरदकय के आदेशों का पालन उसी तरह करती थी, जिस तरह वह बचपन में तब करती थी, तब मोरदकय उसका पालन-पोषण करता था।

21) उन दिनों, जब मोरदकय राजकीय भवन के द्वार पर बैठा हुआ था, राजा के द्वारपालों में दो ख़ोजे बिगतान और तेरेश क्रुद्ध हो कर राजा अर्तज़र्कसीस को मार डालने की योजना बना रहे थे।

22) मोरदकय को उनके षड्यन्त्र का पता चला और उसने तुरन्त रानी एस्तेर को सूचित किया और एस्तेर ने मोरदकय की ओर से राजा को।

23) इस बात की जाँच की गयी और यह सही निकली। इसलिए उन दोनों को सूली पर लटका दिया गया। इस घटना का विवरण राजा के सामने ही इतिहास-ग्रन्थ में लिखा गया।



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