📖 - कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र

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अध्याय 12

पौलुस का दिव्य दर्शन

1) डींग मारने से कोई लाभ नहीं, फिर भी मुझे ऐसा ही करना पड़ रहा है। इसलिए दिव्य दर्शनों और प्रभु द्वारा प्रकट किये हुए रहस्यों की चर्चा करूँगा।

2) मैं मसीह के एक भक्त को जानता हूँ, जो चैदह वर्ष पहले तीसरे स्वर्ग तक ऊपर आरोहित कर लिया गया- सशरीर या दूसरे प्रकार से, यह मैं नहीं जानता, ईश्वर ही जानता है।

3) मैं उस मनुष्य के विषय में जानता हूँ कि वह स्वर्ग में आरोहित कर लिया गया-सशरीर या दूसरे प्रकार से, यह मैं नहीं जानता, ईश्वर ही जानता है।

4) उस मनुष्य ने ऐसी बातों की चर्चा सुनी, जो अनिर्वचनीय है और जिन्हें प्रकट करने की किसी मनुष्य को अनुमति नहीं है।

5) मैं ऐसे व्यक्ति पर गर्व करना चाहूँगा। अपनी दुर्बलताओं के अतिरिक्त मैं अपने विषय में किसी और बात पर गर्व नहीं करूँगा।

6) यदि मैं गर्व करता, तो यह नादानी नहीं होती, क्योंकि मैं सत्य ही बोलता। किन्तु मैं यह नहीं करूँगा। लोग जैसा मुझे देखते और सुनते हैं, उस से बढ़ कर मुझे कुछ भी नहीं समझें।

7) मुझ पर बहुत-सी असाधारण बातों का रहस्य प्रकट किया गया है। मैं इस पर घमण्ड न करूँ, इसलिए मेरे शरीर में एक काँटा चुभा दिया गया है। मुझे शैतान का दूत मिला है, ताकि वह मुझे घूंसे मारता रहे और मैं घमण्ड न करूँ।

8) मैंने तीन बार प्रभु से निवेदन किया कि यह मुझ से दूर हो;

9) किन्तु प्रभु ने कहा- मेरी कृपा तुम्हारे लिए पर्याप्त है, क्योंकि तुम्हारी दुर्बलता में मेरा सामर्थ्य पूर्ण रूप से प्रकट होता है।

10) इसलिए मैं बड़ी खुशी से अपनी दुर्बलताओं पर गौरव करूँगा, जिससे मसीह का सामर्थ्य मुझ पर छाया रहे। मैं मसीह के कारण अपनी दुर्बलताओं पर, अपमानों, कष्टों, अत्याचारों और संकटों पर गर्व करता हूँ; क्योंकि मैं जब दुर्बल हूँ, तभी बलवान् हूँ।

कुरिन्थियों के विषय में पौलुस की चिन्ता

11) मैं मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा हूँ- आप लोगों ने मुझे इसके लिए बाध्य किया। आप को मेरी, सिफ़ारिश करनी चाहिए थी, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ भी नहीं हूँ, फिर भी मैं उन महान् प्रचारकों से किसी भी तरह कम नहीं हूँ।

12) आपके यहाँ रहते समय मैंने प्रेरित के सच्चे लक्षण प्रदर्शित किये, अर्थात् अचल धैर्य, चिह्न, चमत्कार तथा सामर्थ्य के कार्य।

13) अन्य कलीसियाओं की तुलना में आप लोगों में किस बात की कमी रह गयी है? हाँ, मैं आप लोगों के लिए भार नहीं बना। आप मुझे इस अन्याय के लिए क्षमा प्रदान करें।

14) अब मैं तीसरी बार आप लोगों के यहाँ आने की तैयारियाँ कर रहा हूँ, और आप के लिए भार नहीं बनूँगा; क्योंकि मुझे आपकी सम्पत्ति की नहीं, बल्कि आप लोगों की चिन्ता है। बच्चों को अपने माता-पिता के लिए धन एकत्र करना नहीं चाहिए, बल्कि माता-पिता को अपने बच्चों के लिए।

15) मैं आप लोगों के लिए अपना सबकुछ खर्च करूँगा और अपने को भी अर्पित करूँगा और यदि मैं आप लोगों को इतना प्यार करता हूँ, तो क्या आप मुझे कम प्यार करेंगे?

16) आप लोग शायद यह कहेंगे - वास्तव में वह हमारे लिए भार नहीं बना, किन्तु वह धूर्त है और उसने हमें छल-कपट से फँसा लिया।

17) मैंने जिन व्यक्तियों को आप लोगों के पास भेजा, क्या मैंने उन में किसी के द्वारा आप से लाभ उठाया?

18) मैंने तीतुस से आपके यहाँ जाने के लिए निवेदन किया और उस भाई को उसके साथ भेजा। क्या तीतुस ने आप लोगों से लाभ उठाया? क्या हम दोनों एक ही आत्मा से प्रेरित हो कर एक ही पथ पर नहीं चले?

19) आप लोग यह समझते होंगे कि मैं यह सब लिखते हुए आपके सामने अपनी सफाई दे रहा हूँ। बात ऐसी नहीं है। हम यह सब मसीह से संयुक्त हो कर ईश्वर को साक्ष्य बना कर कह रहे हैं। प्रिय भाइयो! सब कुछ आपके आध्यात्मिक निर्माण के लिए हो रहा है।

20) मुझे आशंका है - कहीं ऐसा न हो कि आने पर मैं आप लोगों को जैसा पाना चाहता हूँ, वैसा नहीं पाऊँ और आप मुझे जैसा नहीं चाहते, वैसा ही पायें। कहीं ऐसा न हो कि मैं आपके यहाँ फूट, ईर्ष्या, बैर, स्वार्थपरता, परनिन्दा, चुगलखोरी, अहंकार और उपद्रव पाऊँ।

21) कहीं ऐसा न हो कि मेरे आपके यहाँ पहुँचने पर ईश्वर मुझे फिर आपके सामने नीचा दिखाये और मुझे उन बहुसंख्यक लोगों के लिए शोक मनाना पड़े, जिन्होंने पहले पाप किया और अपनी अशुद्धता, व्यभिचार और लम्पटता के लिए पश्चाताप नहीं किया है।



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