📖 - कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र

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अध्याय 13

कुरिन्थ में सन्त पौलुस का तीसरा आगमन

1) अब मैं तीसरी बार आप लोगों के यहाँ आने वाला हूँ। दो या तीन गवाहों के साक्ष्य द्वारा सब कुछ प्रमाणित किया जायेगा।

2) जब मैं दूसरी बार आप के यहाँ आया, तो उन लोगों से, जिन्होंने पहले पाप किया था, और अन्य सभी लोगों से भी मैंने जो बात कही थी, वही पहुँचने से पहले दुहरा रहा हूँ, कि मैं लौटने पर किसी पर दया नहीं करूँगा;

3) क्योंकि आप इसका प्रमाण चाहते हैं कि मसीह मेरे माध्यम से बोलते हैं और मसीह आपके प्रति दुर्बल नहीं हैं; वह आप लोगों में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करते हैं।

4) यह सच है कि वह दुर्बलता में क्रूस पर आरोपित किये गये, किन्तु वह ईश्वर के सामर्थ्य द्वारा जीवित हैं। हम उनकी तरह दुर्बल हैं, किन्तु आप देखेंगे कि हम ईश्वर के सामर्थ्य द्वारा उनके साथ जीवित हैं।

5) आप लोग अपनी ही परीक्षा ले कर देखें कि आप विश्वास के अनुरूप जीवन बिताते हैं या नहीं। आप लोग अपनी ही जाँच करें। क्या आप यह अनुभव नहीं करते कि ईसा मसीह आप लोगों में क्रियाशील हैं? यदि नहीं करते, तो आप खोटे हैं।

6) मैं आशा करता हूँ कि आप मानेंगे कि हम खोटे नहीं हैं।

7) हम ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि आप कोई बुराई नहीं करें-इसलिए नहीं कि हम खरे प्रमाणित हों, बल्कि इसलिए कि आप भलाई करें, चाहे हम खोटे ही क्यों न दीख पड़े।

8) कारण, हम सत्य के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकते, हम सत्य का समर्थन ही कर सकते हैं।

9) जब आप लोग समर्थ हैं, तो हम दुर्बल होना सहर्ष स्वीकार करते हैं।

10) हम इसके लिए भी प्रार्थना करते हैं कि आप लोगों का सुधार हो। मैं दूर रहते हुए ये बातें इसलिए लिख रहा हूँ कि आपके यहाँ रहते हुए मुझे, प्रभु द्वारा प्रदत्त अधिकार के अनुसार, आप लोगों के साथ कठोर व्यवहार न करना पड़े; क्योंकि मुझे यह अधिकार आपके विनाश के लिए नहीं, बल्कि आपके आध्यात्मिक निर्माण के लिए मिला है।

उपसंहार

11) भाइयो, अलविदा! आप पूर्ण बनें, हमारा उपदेश हृदयंगम करें, एकमत रहें, शान्ति बनाये रखें, और प्रेम तथा शान्ति का ईश्वर आपके साथ होगा।

12) शान्ति के चुम्बन से एक दूसरे का अभिवादन करें। सब ईश्वर-भक्त आप लोगों को नमस्कार कहते हैं।

13) प्रभु ईसा मसीह का अनुग्रह, ईश्वर का प्रेम तथा पवित्र आत्मा की सहभागिता आप सब को प्राप्त हो!



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