📖 - पेत्रुस का पहला पत्र

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अध्याय 01

अभिवादन

1) ईसा मसीह के प्रेरित पेत्रुस का यह पत्र ईश्वर के उन बिखरे हुए कृपापात्रों के नाम है, जो पोन्तुस, गलातिया, कप्पादुकिया, एशिया तथा बिथुनिया में परदेशियों की तरह रहते हैं;

2) जो पिता परमेश्वर के विधान के अनुसार बुलाये और आत्मा के द्वारा पवित्र किये गये हैं, जिससे वे ईसा मसीह की आज्ञा का पालन करें और उनके रक्त से अभिसिंचित हों। आप लोगों को प्रचुर मात्रा में अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो!

मुक्ति-विधान के लिए धन्यवाद

3) धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया।

4) आप लोगों के लिए जो विरासत स्वर्ग में रखी हुई है, वह अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है।

5) आपके विश्वास के कारण ईश्वर का सामर्थ्य आप को उस मुक्ति के लिए सुरक्षित रखता है, जो अभी से प्रस्तुत है और समय के अन्त में प्रकट होने वाली है।

6) यह आप लोगों के लिए बड़े आनन्द का विषय है, हांलांकि अभी, थोड़े समय के लिए, आपको अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ रहे हैं।

7) यह इसलिए होता है कि आपका विश्वास परिश्रमिक खरा निकले। सोना भी तो आग में तपाया जाता है और आपका विश्वास नश्वर सोने से कहीं अधिक मूल्यवान है। इस प्रकार ईसा मसीह के प्रकट होने के दिन आप लोगों को प्रशंसा, सम्मान तथा महिमा प्राप्त होगी।

8) (8-9) आपने उन्हें कभी नहीं देखा, फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। आप अब भी उन्हें नहीं देखते, फिर भी उन में विश्वास करते हैं। जब आप अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् अपनी आत्मा की मुक्ति प्राप्त करेंगे, तो एक अकथनीय तथा दिव्य उल्लास से आनन्दित हो उठेंगे।

10) यही मुक्ति नबियों के चिन्तन तथा अनुसंधान का विषय थी। उन्होंने आप लोगों को मिलने वाले अनुग्रह की भविष्यवाणी की।

11) उनमें मसीह का आत्मा विद्यमान था और वे मसीह के दुःखभोग तथा इसके बाद आने वाली महिमा की भविष्यवाणी करते थे। नबी यह जानना चाहते थे कि आत्मा किस समय और किन परिस्थितियों की ओर संकेत कर रहा है।

12) उन पर प्रकट किया गया था कि वे जो सन्देश सुनाते थे, वह उनके लिए नहीं, बल्कि आप लोगों के लिए था। अब सुसमाचार के प्रचारक, स्वर्ग से भेजे हुए पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, आप लोगों को वही सन्देश सुनाते हैं। स्वर्गदूत भी इन बातों की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं।

परमपावन ईश्वर के अनुरूप जीवन

13) इसलिए आप लोग सतर्क और संयमी बने रहें और उस अनुग्रह पर पूरा भरोसा रखें, जो ईसा मसीह के निकट होने पर आप को प्राप्त होगा।

14) आप आज्ञाकारी सन्तान बन कर अपनी वासनाओं के अनुसार आचरण नहीं करें, जैसा कि पहले किया करते थे, जब आप लोगों को ज्ञान नहीं मिला था।

15) आप को जिसने बुलाया, वह पवित्र है। आप भी उसके सदृश अपने समस्त आचरण में पवित्र बनें;

16) क्योंकि लिखा है- पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।

17) यदि आप उसे ’पिता’ कह कर पुकारते हैं, जो पक्षपात किये बिना प्रत्येक मनुष्य का उसके कर्मों के अनुसार न्याय करता है, तो जब तक आप यहाँ परदेश में रहते हैं, तब तक उस पर श्रद्धा रखते हुए जीवन बितायें।

18) आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है,

19) बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।

20) वह संसार की सृष्टि से पहले ही नियुक्त किये गये थे, किन्तु समय के अन्त में आपके लिए प्रकट हुए।

21) आप लोग अब उन्हीं के द्वारा ईश्वर में विश्वास करते हैं। ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया; इसलिए आपका विश्वास और आपका भरोसा ईश्वर पर आधारित है।

निष्कपट भातृप्रेम

22) आप लोगों ने आज्ञाकारी बन कर सत्य को स्वीकार किया और इस प्रकार अपनी आत्माओं को पवित्र कर लिया है; इसलिए अब आप लोगों को निष्कपट भ्रातृ-भाव, सारे हृदय और सच्ची लगन से एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।

23) आपने दुबारा जन्म लिया है। आप लोगों का यह जन्म नश्वर जीवन-तत्व से नहीं, बल्कि ईश्वर के जीवन्त एवं शाश्वत वचन से हुआ है;

24) क्योंकि लिखा है -समस्त शरीरधारी घास के सदृश हैं और उनका सौन्दर्य घास के फूल की तरह। घास मुरझाती है और फूल झड़ता है,

25) किन्तु ईश्वर का वचन युग-युगों तक बना रहता है और यह वचन वह सुसमाचार है, जो आप को सुनाया गया है।



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