संत एवुप्रासिया के प्रज्ञा-रत्न

1. मेरे येसु तक पहॅुचना मेरी एकमात्र सांत्वना है।

2. मुझे सबके लिये गुप्त एवं अंजाना जीवन दे दो।

3. जब कभी मेरी इच्छा के विरूद्ध कुछ होता है तो मुझे बहुत रोमांच महसूस होता है।

4. ओह! मेरे प्रिय येसु, यदि आप वह सब करें जो आपको प्रिय है तब भी मैं स्वयं को आप से दूर नहीं करूँगी।

5. मेरे स्नेही मुक्तिदाता मैं आप के लिये सबकुछ सहने को तैयार हूँ।

6. जैसे-जैसे लोग मुझे जानते जाते है मैं नगण्य बनती जाती हूँ ।

7. ईश्वर के लिये दुःख उठाने से बढ़कर कोई सुख नहीं।

8. हे मेरे पवित्र मुक्तिदाता आपकी इच्छा मेरे लिये काफी है।

9. मैं अपने अधिकारियों के सामने स्वर्गीय-दृश्यों एवं नियमों को वायु समान महत्वहीन मानती हॅू।

10. मनुष्यों की बातों को सुनने के कारण अपना कर्तव्य पूरा करना न भूलों।

11. ईश्वरीय प्रेम में आनन्द मनाओ एवं सांत्वना खोजो। आप इसमें सब कुछ पायेंगे।

12. ईश्वर के बाद, पवित्र माता मरियम मेरी एकमात्र आशा एवं दिलासा है।

13. यदि मनुष्य और अधिकारीगण तुमसे नफरत करते हो तब भी तुम्हें कुछ नहीं होगा। लेकिन ईष्वर को दुःख मत पहुँचाओ।

14. मेरे हृदय का एकमात्र दिलासा क्रूसित प्रभु एवं माता मरियम को देखते हुये आँसु बहाकर प्रार्थना करना।

15. विनम्रता के सदगुण के कारण हम स्वर्ग में प्रवेश पा सकते हैं जहाँ से शैतान अपने अंहकार के कारण निकाला गया था।

16. मनन-चिंतन के बिना बिताया का दिन उस दिन के समान है जिसमें कुछ नहीं किया गया हो।

17. यदि मैं अपने प्रभु के दुःखभोग के भागी बन सकते है तो उसके प्रेम में भी हम भाग ले सकेंगे।

18. पवित्र यूखारिस्त से ही मुझे दुःख सहने तथा कठिन परिश्रम की शक्ति प्राप्त होती है।

19. मैं अपने ईश्वर से प्रेम करती हूँ तथा ऐसी कामना करती हूँ कि सभी ऐसा करे।

20. जब मैं आज्ञाकारिता के कार्य करती हूँ तो मेरा हृदय रोमांचित हो उठता है।

21. जो दिन प्रभु के लिये कोई दुःख उठाये बिना बिताया जाये तो वह हानि है।

अनुवादक - फादर रोनाल्ड वॉन
parichay pragya udgaar hrudayanjali mariyanjali


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Praise the Lord!