📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

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अध्याय 09

1) यरूबबाल का पुत्र अबीमेलेक अपनी माता के भाई-बन्धुओं के पास सिखेम गया और उन से तथा अपनी माता के कुल वालों से बोला,

2) "सिखेम के सब नागरिकों से यह पूछो: तुम्हारे लिए क्या बेहतर है- तुम पर यरूबबाल के सत्तर पुत्र शासन करें या केवल एक व्यक्ति शासन करे? तुम्हें यह भी सोचना चाहिए कि मैं तुम्हारा रक्त-सम्बन्धी हूँ।"

3) इस पर उसकी माता के बन्धुओं ने सिखेम के नागरिकों को ये सारी बातें अच्छी तरह समझायीं। इस पर उनका मन अबीमेलेक की ओर आकर्षित होने लगा, क्योंकि वे कहते थे कि वह हमारा भाई है।

4) उन्होंने उसे बाल-बरीत के मन्दिर से चाँदी के सत्तर षेकेल दिये, जिससे अबीमेलेक ने कई साहसिकों को भाड़े पर रखा, जो उसके पिछलग्गू बने।

5) उसने ओफ्ऱा में अपने पिता के घर में घुस कर यरूबबाल के पुत्रों, अपने सत्तर भाइयों को एक ही पत्थर पर मार डाला। यरूबबाल का सब से छोटा पुत्र योताम बच गया, क्योंकि उसने अपने को छिपा लिया था।

6) इसके बाद सिखेम और बेत-मिल्लों के सब नागरिक सिखेम के बड़े पत्थर के निकट, बलूत वृक्ष के पास एकत्र हो गये और उन्होंने अबीमेलेक को राजा घोषित किया।

7) जब योताम को इसकी सूचना मिली, तो वह जा कर गरिज़्ज़ीम पर्वत के शिखर पर खड़ा हो गया। उसने ऊँचे स्वर से लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, "सिखेम के नागरिको! मेरी बात सुनो, जिससे प्रभु तुम लोगों की बात सुने।

8) वृक्ष किसी दिन अपने राजा का अभिषेक करने निकले। वे जैतून के पेड़ से बोले, ‘आप हमारे राजा बन जाइए’।

9) किन्तु जैतून वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, ’यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह तेल क्यों छोड़ दूँ, जिसके द्वारा देवताओं और मनुष्यों का सम्मान किया जाता है?

10) तब वृक्ष अंजीर के पेड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’।

11) किन्तु अंजीर वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, ‘यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना बढ़िया मधुर फल क्यों छोड़ दूँ?’

12) इसके बाद वृक्ष अंगूर के पेड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’

13) और अंगूर के पेड़ ने उन्हें यह उत्तर दिया, ’यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह रस क्यों छोड़ दूँ, जो देवताओं और मनुष्यों का आनन्दित करता है?-

14) "तब सब वृक्ष कँटीले झाड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’।

15) कँटीले झाड़ ने वृक्षों को यह उत्तर दिया, ’यदि तुम लोग सचमुच अपने राजा के रूप में मेरा अभिषेक करना चाहते हो, तो मेरी छाया की षरण लेने आओ। नहीं तो, कँटीले झाड़ से आग निकलेगी और लेबानोन के देवदार वृक्षों को भी भस्म कर देगी।’

16) "अच्छा, यदि तुमने अबीमेलेक को सच्चाई और ईमानदारी से अपना राजा बनाया है, यदि तुमने यरूबबाल और उसके घर के साथ अच्छा व्यवहार किया है और यदि तुमने उनके कार्यों के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया है-

17) मेरे पिता तो तुम्हारे लिए लड़े और तुम्हें मिदयानियों के हाथों से बचाने के लिए उन्होंने हथेली पर जान रखी,

18) जबकि तुम लोग आज मेरे पिता के विरुद्ध खड़े हो; तुमने उनके सत्तर पुत्रों को एक ही पत्थर पर मरवा डाला है और उनकी दासी के पुत्र अबीमेलेक को इसलिए सिखेम का राजा बनाया है कि वह तुम्हारा भाई है-

19) हाँ, यदि तुमने यरूबबाल और उनके घर के साथ सच्चाई और ईमानदारी का व्यवहार किया है, तो तुम अबीमेलेक से प्रसन्न रहो और वह भी तुमसे प्रसन्न रहे।

20) यदि तुमने ऐसा न किया हो, तो अबीमेलेक से अग्नि निकले, जो सिखेम के निवासियों और बेत-मिल्लों को भस्म कर दे और सिखेम के निवासियों तथा बेत-मिल्लो से अग्नि निकले, जो अबीमेलेक को भस्म कर दे।"

21) इस पर योताम भाग खड़ा हुआ। वह बएर आया और अपने भाई अबीमेलेक के डर से वहीं रहने लगा।

22) अबीमेलेक ने इस्राएल पर तीन वर्ष तक शासन किया।

23) ईश्वर ने अबीमेलेक और सिखेम के नागरिकों के बीच फूट डाल दी, जिससे वे अबीमेलेक के साथ विश्वासघात करने लगे।

24) इस प्रकार यरूबबाल के सत्तर पुत्रों के प्रति किये गये कुकर्म और उनके रक्तपात का बदला उनके भाई और सिखेम के नागरिकों से चुकाया गया। उन्होंने अबीमेलेक को अपने भाइयों की हत्या के लिए उकसाया था।

25) सिखेम के नागरिकों ने अबीमेलेक के विरोध में पर्वतों के शिखरों पर आदमियों को घात में बिठा दिया, जो उस मार्ग से जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को लूटते थे। अबीमेलेक को इसकी सूचना मिली।

26) तब एबेद का पुत्र गाल अपने भाई-बन्धुओं के साथ सिखेम आया और सिखेम के नागरिक उसका विश्वास करने लगे।

27) उन्होंने खेतों में जा कर अपनी दाखबारियों के फल तोड़े, उनका रस निकाला और पर्व मनाया। इसके बाद वे अपने देवता के मन्दिर में जा कर खाने-पीने और अबीमेलेक की निन्दा करने लगे।

28) एबेद के पुत्र गाल ने कहा, "क्या सिखेम-जैसे नगर को अबीमेलेक-जैसे व्यक्ति के अधीन रहना चाहिए? क्या यरूबबाल का पुत्र और उसका प्रतिनिधि ज़बुल सिखेम के पिता हमोर के अधीन नहीं थे? तो हम उनके अधीन क्यों रहें?

29) यदि यहाँ के निवासी मेरा अधिकार स्वीकार करते, तो मैं अबीमेलेक को भगा देता। मैं अबीमेलेक से कहता, ‘अपनी समस्त सेना के साथ युद्ध करने आओ’।"

30) जब नगर के राज्यपाल ज़बुल ने एबेद के पुत्र गाल की बात सुनी तो वह आगबबूला हो उठा।

31) उसने अरूमा में अबीमेलेक के पास दूतों द्वारा यह कहला भेजा, "एबेद का पुत्र गाल और उसके भाई-बन्धु सिखेम आये हैं और तुम्हारे विरुद्ध नगर को उकसा रहे हैं।

32) इसलिए रात को अपने सैनिकों के साथ आ कर खेतों में घात लगा कर बैठ जाओ।

33) सबेरे, सूर्योदय होते ही नगर पर धावा बोल दो। वह निष्चय ही अपने लोगों को ले कर तुम्हारा सामना करने निकलेगा। तब तुम जो ठीक समझो, वही करो।"

34) अबीमेलेक ने अपने सब सैनिकों के साथ रात को प्रस्थान किया और सिखेम के पास उन को चार दलों में विभाजित कर घात में बैठाया।

35) जब एबेद का पुत्र गाल बाहर निकला और नगर के फाटक के पास खड़ा हुआ तब अबीमेलेक और उसके साथी छिपे स्थानों से निकल पड़े।

36) गाल ने उन को देखते ही जबुल से कहा, "देखो, लोग पर्वतों के शिखरों पर नीचे चले आ रहे हैं’। ज़बुल ने उसे उत्तर दिया, "यह पर्वतों की छाया है, जो तुम्हें मनुष्य-जैसी दिखती है"।

37) गाल ने फिर कहा, "देखो तो सही, पहाड़ के शिखर की बग़ल से लोग उतर रहे हैं और एक दल मओननीम बलूत की ओर से भी आ रहा है"।

38) इस पर ज़बुल ने उस से कहा, "तुमने किस मुँह से यह कहा था कि अबीमेलेक कौन है, जो हम उसके अधीन रहें? ये वे लोग हैं, जिनकी तुम निन्दा कर रह थे। अब जा कर उन से लड़ो।"

39) तब सिखेम के नागरिकों का नेता बनकर गाल अबीमेलेक से लड़ने निकल पड़ा।

40) लेकिन अबीमेलेक ने उसे भगा दिया। फाटक के पास तक बहुत-से लोग घायल पडे़ थे।

41) अबीमेलेक अरूमा लौटा। ज़बुल ने गाल और उसके भाई-बन्धुओं को भगा दिया, उन्हें सिखेम में नहीं रहने दिया।

42) सिखेम के लोग दूसरे दिन अपने खेत जाने लगे। अबीमेलेक को इसकी सूचना मिली

43) और उसने अपने सैनिकों को तीन दलों में विभाजित किया और खेतों में घात लगा कर बैठ गया। जब उसने लोगों को नगर से निकलते देखा, तो उन पर टूट पडा और उन्हें पराजित कर दिया।

44) अबीमेलेक ने अपने दल के साथ नगर के फाटक पर अधिकार किया। इतने में शेष दो दल उन लोगों पर टूट पड़े, जो खेतों में थे और उन्हें मार डाला।

45) अबीमेलेक ने दिन भर लड़ने के बाद नगर को अपने अधिकार में कर लिया और उसके निवासियों को मार डाला। इसके बाद उसने नगर का विध्वंस किया और उसकी भूमि पर नमक छिड़कवाया।

46) जब मिगदल-सिखेम के नागरिकों ने यह सुना, तो वे एल-बेरीत मन्दिर के तहख़ाने में छिप गये।

47) जब अबीमेलेक को यह सूचना मिली कि मिगदल-सिखेम के सब नागरिक वहाँ एकत्रित हैं,

48) तो वह अपने सब सैनिकों के साथ सलमोन पर्वत पर गया। अबीमेलेक ने हाथ में कुल्हाड़ी ली और झाड़ियों को काटने लगा। फिर उसने उन को उठाकर अपने कन्धों पर रख लिया और अपने आदमियों से कहा, "तुमने मुझे जैसा करते देखा है, तुम भी तुरन्त वैसा करो"।

49) इस पर सब ने झाड़ियाँ काटीं और उन को अबीमेलेक के पीछे-पीछे ले जा कर तहख़ाने के आसपास रख दिया। इसके बाद उन्होंने तहख़ाने में आग लगायी। इस प्रकार मिगदल-सिखेम के सभी लोग लगभग एक हज़ार स्त्री-पुरुष मर गये।

50) इसके बाद अबीमेलेक तेबेस गया। उसने तेबेस पर चढ़ाई कर उसे अपने अधिकार में ले लिया।

51) नगर के बीच एक मज़बूत मीनार थी। क्या स्त्री, क्या पुरुष- नगर के सब निवासी वहाँ से भाग गये और उसे अन्दर से बन्द कर उस मीनार की छत पर चढ़ गये।

52) अबीमेलेक ने मीनार के पास आ कर उस पर आक्रमण किया।

53) जब वह उस में आग लगाने के लिए मीनार के फाटक के पास आया, तब किसी स्त्री ने अबीमेलेक के सिर पर चक्की का ऊपरी पाट फेंक कर उसका सिर फोड़ दिया।

54) उसने तुरन्त अपने षस्त्रवाहक सेवक को बुला कर आज्ञा दी कि तुम अपनी तलवार निकाल कर मुझे मार डालो, जिससे कोई मेरे विषय में यह न कह पाये कि उसकी हत्या किसी स्त्री ने की। इस पर उसके सेवक ने उसके शरीर में तलवार भोंक दी और वह मर गया।

55) जब इस्राएलियों ने यह देखा कि अबीमेलेक की मृत्यु हो गयी है, तो सब अपने-अपने घर लौट गये।

56) इस प्रकार ईश्वर ने अबीमेलेक को अपने पिता के प्रति किये गये उस अपराध का दण्ड दिया, जो उसने अपने सत्तर भाइयों का वध कर किया था।

57) ईश्वर ने सिखेम- निवासियों को भी उनके सब अपराधों का दण्ड दिया और उन्हें यरूबबाल के पुत्र योताम का अभिशाप लगा।



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