📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 14

1) एक दिन समसोन तिमना गया। उसने तिमना में फ़िलिस्तियों की एक कन्या देखी।

2) उसने घर लौट कर अपने माता-पिता से कहा, "मैंने तिमना में फिलिस्तियों की एक कन्या देखी है। उसके साथ मेरा विवाह कर दीजिए।"

3) उसके माता-पिता ने उसे उत्तर दिया, "क्या तुम्हारे भाई-बन्धुओं या मेरे अपने लोगों में कन्याएँ नहीं हैं, जो तुम उन बेख़तना फ़िलिस्तियों की एक कन्या से विवाह करना चाहते हो?" समसोन ने अपने पिता से कहा, "मुझे उस को दीजिए, जो मुझे सब से अधिक प्रिय है‘

4) उसके माता-पिता को यह मालूम नहीं था कि यह प्रभु की लीला है, जो फ़िलिस्तियों का सामना करने का मौक़ा ढूँढ़ रहा था। उस समय फ़िलिस्ती इस्राएलियों पर शासन कर रहे थे।

5) समसोन अपने माता-पिता के साथ तिमना गया। जब वह तिमना की दाखबारियों में था, तब अचानक एक सिंहशावक उस पर गरजता हुआ आ पहुँचा।

6) समसोन को प्रभु की प्रेरणा प्राप्त हुई। यद्यपि उसके हाथ में कुछ नहीं था, उसने उसे ऐसे चीर डाला, जैसे कोई किसी बकरी के बच्चे को चीर देता है। उसने इसके विषय में अपने माता-पिता से कुछ नहीं कहा।

7) वहाँ पहुँच कर समसोन ने उस कन्या से बातचीत की और वह उसे बड़ी प्रिय लगी। कुछ समय बाद वह उसे अपने घर ले जाने के लिए आया।

8) वह मार्ग से कुछ हट कर उस मृत सिंह को देखने गया, तो देखता क्या है कि उस सिंह के कंकार में मधुमक्खियों का झुण्ड लगा हुआ है और उसमें मधु भरा पड़ा है।

9) वह मधु हाथ से निकाल कर चल पड़ा और उसे चाटते हुए आगे बढ़ा। वह अपने माता-पिता के पास आया और उसने उन्हें भी थोड़ा दिया। उन्होंने भी खाया। उसने उन्हें यह नहीं बताया कि वह उसे सिंह के कंकाल से निकाल कर लाया है।

10) इसके बाद उसका पिता कन्या के यहाँ गया और जैसा कि वर किया करते थे, समसोन ने वहाँ एक भोज दिया।

11) जब लोगों ने उसे देखा, तो उन्होंने उसे तीस साथी दिये।

12) समसोन ने उन से कहा, "मैं आपके सामने एक पहेली रखता हूँ। यदि आप भोज के सात दिन के अन्दर इसका उत्तर देंगे, तो मैं आप का तीस कुरते और उत्सव के तीस वस्त्र दूँगा।

13) और यदि आप मुझे उसका उत्तर नहीं दे सकेंगे, तो आप को मुझे तीस कुरते और उत्सव के तीस वस्त्र देने पड़ेंगे।" उन्होंने उस से कहा, "अपनी पहेली बुझाओ, हम ज़रा सुनें तो"।

14) तब उसने उन से कहा: "भक्षक से भक्ष्य निकला और बलवान् से मिठास"। वे लोग तीन दिन में पहेली का उत्तर न दे सके।

15) चैथे दिन उन्होंने समसोन की पत्नी से कहा, "अपने पति को फुसलाओ, जिससे वह हमारे लिए पहेली का अर्थ बताये, नहीं तो हम तुम्हारे पिता के घर-सहित तुम को भी जला देंगे। क्या तुमने हमें लूटने के लिए निमन्त्रित किया?"

16) समसोन की पत्नी ने उसके सामने रोते हुए कहा, "निष्चय ही तुम मुझ से घृणा करते हो और मुझे प्यार नहीं करते। तुमने मेरे नगरवासियों से यह पहेली बुझायी, लेकिन तुमने उसका उत्तर मुझे भी नहीं बताया।" उसने उस से कहा, "देखो, जब मैंने इसे अपने माता-पिता तक को नहीं बताया है, तो तुम्हें कैसे बताऊँ?"

17) इस प्रकार सात दिन तक, जब तक उनका भोज चलता रहा, वह उसके सामने रोती रही। तब सातवें दिन उसके बहुत अधिक आग्रह करने पर उसने उसे बता दिया। फिर उसने उस पहेली का उत्तर अपने नगरवासियों को बता दिया।

18) इस पर सातवें दिन सूर्यास्त के पहले ही नगर के आदमियों ने उस से कहा, "मधु से मधुर क्या? सिंह से भी बलवान् क्या?" और उसने उन्हें उत्तर दिया, "यदि तुमने मेरी कलोर को हल में नहीं जोता होता, तो तुम मेरी पहेली का उत्तर नहीं दे पाते"।

19) तब उसे प्रभु की प्रेरणा प्राप्त हुई। अषकलोन जा कर उसने वहाँ तीस ऩिवासियों को मार डाला। उसने उनके वस्त्र छीन कर उनके वस्त्रों को पहली का उत्तर देने वालों को दे दिया। फिर वह बड़े क्रोध में अपने पिता के घर लौट गया।

20) समसोन की पत्नी को उसके उस साथी को दे दिया गया, जो उसका विषिष्ट मित्र था।



Copyright © www.jayesu.com