📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

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अध्याय 19

1) उस समय इस्राएल में कोई राजा नहीं था। एक लेवीवंशी एफ्ऱईम के पहाड़ी प्रदेश के अन्तिम छोर पर प्रवासी के रूप में रहता था। वह यूदा के बेथलेहेम से एक उपपत्नी लाया था।

2) वह अपने पति के प्रति ईमानदार नहीं रही और उसे छोड़ कर यूदा के बेथलेहेम में अपने पिता के घर चली गयी।

3) वह वहाँ लगभग चार महीने रही। फिर उसका पति उसे समझा-बुझा कर लौटाने के लिए वहाँ गया। उसके साथ एक नौकर और दो गधे थे। पत्नी उसे अपने पिता के घर के अन्दर ले गयी। उस लड़की के पिता ने उसे देख कर उसका स्वागत किया।

4) उसके सुसर, उस लड़की के पिता ने उसे रोक लिया और वह तीन दिन तक उसके यहाँ रुक गया।

5) वे चैथे दिन बड़े सबेरे उठे और लेवीवंशी चलने की तैयारी करने लगा, परन्तु लड़की के पिता ने अपने दामाद से कहा, "चले जाने से पहले जलपान करो"।

6) वे दोनों बैठ कर साथ-साथ भोजन करने लगे। लड़की के पिता ने उस व्यक्ति से कहा, "कृपा कर एक और रात यहाँ रुक जाओ और मनोरंजन करो"।

7) जब वह व्यक्ति चलने की तैयारी करने लगा, तो उसके ससुर ने उसे रात को वहीं रूकने के लिए विवष कर दिया।

8) जब वह पाँचवें दिन बडे़ तड़के चलने को तैयार हुआ, तब उस लड़की के पिता ने कहा, "कुछ खा-पीकर दिन ढलने तक यहीं आराम करो"। फिर वे दोनों भोजन करने लगे।

9) जब वह व्यक्ति अपनी उपपत्नी और अपने नौकर के साथ चलने लगा, तब उसके ससुर, उस लड़की के पिता ने उस से कहा, "देखो, अब साँझ होने लगी है। रात भर यहीं ठहर जाओ; दिन ढल चुका है। रात भर यहीं ठहर कर मनोरंजन करो। कल सबेरे तड़के ही उठ कर प्रस्थान करो और अपने घर चले जाओ।"

10) परन्तु उस व्यक्ति ने रात को फिर ठहरना नहीं चाहा। वह चल दिया और यबूस, अर्थात् येरूसालेम के पास तक आया। दो कसे हुए गधे और उसकी उपपत्नी उसके साथ थी।

11) यबूस के पास पहुँचते-पहुँचते दिन काफ़ी ढल चुका था; इसलिए नौकर ने अपने मालिक से कहा, "चलिए, यबूसियों के इस नगर में ठहर कर रात यहीं काट लें"।

12) उसके मालिक ने उसे उत्तर दिया, "हम उन परदेशियों के नगर में, जो इस्राएली नहीं है न ठहरें। आगे गिबआ तक बढ़ चलें।"

13) उसने अपने सेवक से यह भी कहा, "चलो, हम गिबआ या रामा तक पहुँच कर वहाँ रात बिताये"।

14) वे आगे बढ़ते गये। बेनयामीन के गिबआ के निकट पहुँचते-पहुँचते सूर्यास्त होने लगा।

15) इसलिए वे मार्ग छोड़ कर गिबआ में रात बिताने उधर मुड़ पड़े। वहाँ पहुँच कर वे नगर के चैक में ठहरे, क्योंकि उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला, जो उन्हें रात भर के लिए अपने घर में आश्रय दे।

16) संयोग से शाम को एक बूढ़ा खेत में काम कर लौट रहा था। वह एफ्ऱाईम के पहाड़ी प्रदेश का था और प्रवासी के रूप में गिबआ में रहता था उस नगर के निवासी बेनयामीनवंशी थे।

17) उसने उधर दृष्टि दौड़ा कर देखा कि नगर के चैक में यात्री पडे़ हैं। उस बूढे़ ने पूछा, "आप को कहाँ जाना है और आप कहाँ से आ रहे हैं?"

18) उसने उस से कहाँ, "हम यूदा के बेथलेहेम से एफ्ऱईम के पहाड़ी प्रदेश के अन्तिम छोर पर जा रहे हैं। मैं वहीं का निवासी हॅूँ। मैं यूदा के बेथलेहेम गया था और अब फिर अपने घर लौट रहा हूँ; लेकिन यहाँ कोई ऐसा नहीं दिखाई देता, जो मुझे अपने घर में

19) अपने गधों के लिए भूसा और चारा तो हमारे पास है। मेरे लिए तथा आपकी इस दासी और अपने दासों के इस नौकर के लिए रोटी ओर दाखरस भी है। किसी चीज़ की कमी नहीं है।"

20) उस बूढे़ ने कहा, "आपका स्वागत है। आपको जिस चीज़ की ज़रूरत है, मैं उसे आप को दूंँगा। आप किसी भी हालत में चैक पर रात न बिताइए।"

21) उसने उसे अपने घर ले जा कर गधों को खिलाया। उन्होंने अपने पाँव धोये और खाना-पिया।

22) वे खा-पी ही रहे थे कि नगर के कुछ आदमी, कुछ नीच व्यक्ति, उस घर को घेर कर द्वार खटखटाने लगे और घर के मालिक, उस बूढ़े से कहने लगे, "उसे पुरुष को, जो तुम्हारे यहाँ आया है, बाहर निकालो, जिससे हम उसका भोग करें"।

23) इस पर वह आदमी, घर का वह मालिक उनके पास बाहर जा कर उनसे कहने लगा; "भाइयों! मैं तुम लोगों से प्रार्थना करता हॅूँ कि तुम ऐसे कुकर्म न करो। वह आदमी मेरे यहाँ आया हुआ अतिथि है। तुम ऐसा कुकर्म मत करो,

24) देखो, मैं अपनी कुँवारी कन्या और उसकी उपपत्नी को बाहर तुम्हारे पास ला देता हूँ तुम उनके साथ जैसा चाहो, जैसा कर लो लेकिन इस पुरुष के साथ ऐसा कुकर्म मत करो।"

25) जब उन आदमियों ने उसकी एक भी न सुनी, तब वह लेवीवंशी ही अपनी उपपत्नी को उनके पास बाहर ले आया। उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया और रात भर सबेरे तक उसके साथ दुव्र्यव्हार किया। पौ फटने पर ही उन्होंने उसे जाने दिया

26) जब वह स्त्री सबेरे वापस आयी, तब वह उस पुरुष के घर के द्वार पर गिर पड़ी, जहाँ उसका स्वामी था और उजाला होने तक वहीं पड़ी रही।

27) जब उसके स्वामी ने प्रातः काल घर का किवाड़ खोला और अपना रास्ता पकड़ने के लिए बाहर निकलने लगा, तब उसने अपनी उपपत्नी को देखा, जो अपने हाथों को घर की दहली पर रखे पड़ी थी।

28) उसने उस से कहा, "उठो, हम चलें;" परन्तु उसे कोई उत्तर न मिला। उसे अपने गधे पर लाद कर वह व्यक्ति चल दिया और अपने घर का रास्ता पकड़ा।

29) घर पर पहुँचते ही उसने चाकू से अपनी उपपत्नी के अंग काट कर बारह टुकडे़ किये और उन्हें इस्राएलियों के सारे प्रान्तों में भेज दिया।

30) जिन-जिन लोगों ने यह देखा, वे बोले, "जब से इस्राएली मिस्र से निकल कर आये हैं, तब से आज तक ऐसी कोई घटना कभी नहीं घटी। अब विचारो परामर्श करों और बता दो कि हम क्या करें।



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