📖 - समूएल का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 13

1) साऊल तीस वर्ष का था, जब उसने शासन करना प्रारम्भ किया और उसने बयालीस वर्ष तक इस्राएल पर राज्य किया।

2) साऊल ने इस्राएल में तीन हज़ार आदमियों को चुना। उन में दो हज़ार साऊल के पास मिकमास और बेतेल की पर्वतश्रेणी पर रखे गये और एक हज़ार बेनयामीन के गिबआ में योनातान के पास। उसने शेष लोगों को अपने- अपने घर जाने दिया।

3) योनातान ने गेबा में फ़िलिस्त्तियों के अध्यक्ष को मार डाला और फ़िलिस्तियों को इसका पता चला। साऊल ने देश भर में नरसिंगे बजवाये, जिससे इब्रानी इस घटना के विषय में सुन लें।

4) सब इस्राएलियों ने यह समाचार सुना कि साऊल ने फ़िलिस्तियों के अध्यक्ष को मारा है और फ़िलिस्ती इस्राएल से घृणा करने लगे। लोगों को साऊल से मिलने के लिए गिलगाल बुलाया गया।

5) फ़िलिस्ती इस्राएलियों से लड़ने के लिए एकत्रित हुए। उनके पास तीस हज़ार रथ और छः हज़ार घुड़सवार थे। उसने पैदल सैनिकों की संख्या समुद्रतट के रेतकणों की तरह असंख्य थी। उन्होंने आ कर बेतआवेन के पूर्व में मिकपास के पास पड़ाव डाला।

6) जब इस्राएलियों ने देखा कि वे बडे़ संकट में पडे़ है, क्योंकि उनकी सेना चारों ओर से घिर रही थी, तो लोग गुफाओं, गड्ढ़ों, चट्टान की दरारों, कब्रों और कुओं में जा छिपे।

7) कुछ लोग यर्दन पार कर गाद और गिलआद प्रदेश चले गये। किन्तु साऊल अब तक गिलआद में ही पड़ा था। उसके साथ के सभी सैनिक भयभीत थे।

8) उसने सात दिन तक - समूएल द्वारा निश्चित समय तक -प्रतीक्षा की; लेकिन समूएल गिलगाल नहीं आया। जब लोग उसके पास से भागने लगे,

9) तब साऊल ने आज्ञा दी, "होम-बलियांँ और शान्ति-बलियाँ ले आओ" और उसने होम-बलि चढ़ायी।

10) वह होम-बलि चढ़ा चुका था कि समूएल आया। साऊल उसके स्वागत के लिए उस से मिलने आगे बढ़ा।

11) तब समूएल ने पूछा, "तुमने यह क्या किया?" साऊल ने उत्तर दिया,"जब मैंने देखा कि लोग मेरे पास से भाग रहे हैं और आप निश्चित समय तक नहीं आये तथा फ़िलिस्ती मिकमास में इकट्ठे हो गये,

12) तब मैंने सोचा,: मैंने अभी तक प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं किया और फ़िलिस्ती लोग गिलगाल आ कर मुझ पर आक्रमण करने वाले हैं; इसलिए मैं स्वयं होम-बलि चढ़ाने के लिए बाध्य हुआ।"

13) समूएल ने साऊल से कहा,"तुमने मूर्खतापूर्ण कार्य किया है। मैंने तुम को प्रभु, तुम्हारे ईश्वर का जो आदेश दिया था, तुमने उसका पालन नहीं किया है। प्रभु तुम्हारा राज्य इस्राएल में सदा के लिए स्थापित करने वाला था,

14) लेकिन अब तुम्हारा राज्य सुदृढ़ नहीं होगा। प्रभु ने अपने मन के अनुकूल एक पुरुष चुना है। उसने उसे ही अपनी प्रजा का शासक नियुक्त किया है, क्योंकि तुमने प्रभु द्वारा अपने को दी गयी आज्ञा का पालन नहीं किया है।"

15) समूएल गिलगाल से बेनयामीन के गिबआ चला गया। साऊल ने अपने साथ के लोगों की गिनती की। उनकी संख्या लगभग छह सौ थी।

16) साऊल, उसका पुत्र योनातान और उनके साथ के लोग बेनयामीन के गेबा में रह गये, जब कि फ़िलिस्ती मिकमास में पड़ाव डाले पड़े थे।

17) फ़िलिस्तियों के पड़ाव से तीन छापामार दल निकले। एक ओफ्ऱा की ओर गया, जो शूआल प्रान्त में है,

18) दूसरा बेत-होरोन की ओर और तीसरा सीमा प्रान्त की ओर, जो उजाड़खण्ड के सामने सबोईम की घाटी के शिखर पर है।

19) पूरे इस्राएल में कोई लोहार नहीं था, क्योंकि फ़िलिस्ती नहीं चाहते थे कि इब्रानी अपने लिए तलवारें या बल्लम बनवा लें।

20) सभी इस्राएलियों को अपने हल की फाल, फावड़ा, कुल्हाड़ी या हँंसिया पजाने के लिए फ़िलिस्तयों के पास जाना पड़ता था।

21) हल की फाल और फावड़ा पजाने का दाम दो तिहाई शेकेल था, कुल्हाड़ी पजाने और अंकुश की नोक ठीक करने के लिए शेकेल की एक तिहाई।

22) इसलिए युद्ध के दिन साऊल और योनातान की सेना के पास न तलवारें थीं और न भाले। ये हथियार केवल साऊल और उसके पुत्र योनातान के पास थे।

23) फ़िलिस्तियों का एक दल मिकसाल की घाटी तक बढ़ आया था।



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