📖 - समूएल का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 28

1) उस समय फ़िलिस्तियों ने इस्राएल से लड़ने के लिए अपने सैनिक इकट्ठे किये। आकीश ने दाऊद से कहा, “तुम यह समझ लो कि तुम्हें अपने आदमियों के साथ मेरी सेना के साथ जाना होगा।“

2) दाऊद ने आकीश से कहा, “अच्छा, आप को भी मालूम हो जायेगा कि आपका सेवक क्या कर सकता है।“ आकीश ने दाऊद से कहा, “बहुत अच्छा, तब तो मैं जीवन भर के लिए तुम को अपना अंगरक्षक बना दुँगा।“

3) समूएल की मृत्यु हो चुकी थी। सभी इस्राएलियों ने उसका शोक मनाया था और उसका दफ़न उसके नगर रामा में कर दिया था। साऊल ने भूत-प्रेत साधने वालों और ओझों को देश से निकाल दिया था।

4) अब फ़िलिस्ती इकट्ठे हो कर आगे बढे़ और उन्होंने शूनेम के पास अपना पड़ाव डाला। साऊल ने सारे इस्राएलियों को इकðा कर गिलओबा पर्वत पर पड़ाव डाला।

5) फ़िलिस्तियों के शिविर पर दृष्टि डालते ही साऊल भयभीत हो उठा और उसका हृदय काँपने लगा।

6) साऊल ने प्रभु से पूछा; लेकिन प्रभु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया - न स्वप्नों में, न ऊरीम द्वारा और न नबियों द्वारा।

7) इसलिए साऊल ने अपने सेवकों को आज्ञा दी, "मेरे लिए एक भूत-प्रेत साधने वाली का पता लगाओ, जिसमें मैं उसके पास जाकर उस से परामर्श लूँ।“ उसके सेवकों ने उसे बतलाया कि एन-दोर में एक भूत-प्रेत साधने वाली है।

8) इसलिए साऊल ने कपड़े बदल कर छद्द-वेश धारण किया और वह दो आदमियों को साथ ले कर उसके पास गया। वे रात को उस स्त्री के पास पहुँचे और साऊल ने उस से कहा, "मेरे लिए प्रेत-साधना करो और मैं जिसका नाम बताऊँ, उसे मेरे सामने ला दो।"

9) लेकिन उस स्त्री ने उत्तर दिया, "तुम तो जानते ही हो कि साऊल ने क्या किया है। उसने प्रेत-साधकों और ओझों को देश से निकाल दिया है। अब तुम मुझे मारने के लिए फन्दा क्यों लगाते हो?"

10) प्रभु की शपथ खा कर साऊल ने उस से कहा, "प्रभु की शपथ! इस बात लिए तुम को किसी प्रकार का दण्ड नहीं मिलेगा।"

11) इस पर उस स्त्री ने पूछा, "मैं किस को तुम्हारे सामने लाऊँ?" उसने उत्तर दिया, "मेरे सामने समूएल को ले आओ।"

12) समूएल को देखते ही वह स्त्री ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर साऊल से कहने लगी, "तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? साऊल तुम हो।"

13) राजा ने उस को उत्तर दिया, "डरो मत। बताओ तो, तुम क्या देख रही हो।" स्त्री ने साऊल से कहा, “ मैं पृथ्वी से निकलता हुआ एक अलौकिक प्राणी देख रही हूँ।“

14) उसने उस से पूछा, "वह कैसा दिखता है?" उसने कहा, "चादर ओढे़ हुए एक बूढ़ा आदमी निकला आ रहा है।" तब साऊल समझ गया कि वह समूएल ही है। उसे देख कर उसने धरती पर माथा टेक दिया।

15) समूएल ने साऊल से कहा, "तुमने क्यों मेरी शान्ति भंग की है? क्यों मुझे ऊपर बुलाया है?" साऊल ने उत्तर दिया, "मैं बडे़ कष्ट में हूँ। फ़िलिस्ती मेरे विरुद्ध लड़ रहे हैं। ईश्वर ने मुझे त्याग दिया है और वह अब मुझे न तो नबियों द्वारा उत्तर देता है और न स्वप्नों में। इसलिए मैंने आपको बुलवाया है, जिससे आप मुझे बतायें कि मुझे क्या करना चाहिए।"

16) समूएल ने उत्तर दिया, "तुम मुझ से क्यों पूछ रहे हो, जब प्रभु ही तुम से विमुख हो कर तुम्हारा विरोधी बन गया है?

17) प्रभु ने वही किया है, जो उसने मेरे माध्यम से तुम्हें बताया। प्रभु ने तुम से राज्य छीन कर उसे एक दूसरे व्यक्ति दाऊद को दे दिया है।

18) प्रभु ने तुम्हारे साथ ऐसा किया; क्योंकि तुमने प्रभु की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अमालेकियों के विरुद्ध उसका क्रोध शान्त नहीं किया।

19) इसके अतिरिक्त प्रभु इस्राएल को और तुम्हें फ़िलिस्तियों के हाथ कर देगा। कल तुम और तुम्हारे पुत्र मेरे साथ होंगे। प्रभु इस्राएलियों की सेना भी फ़िलिस्तियों के हाथ कर देगा।"

20) इस पर साऊल पृथ्वी पर मुँह के बल गिर पडा। वह समूएल की बातों से बहुत भयभीत हो गया था। उस में थोडी भी शक्ति नहीं रह गयी थी, क्योंकि उसने पूरे दिन और पूरी रात कुछ नहीं खाया था।

21) जब वह स्त्री साऊल के पास आयी और उसने देखा कि वह डर गया है, तो उसने उस से कहा, "देखों, तुम्हारी दासी ने तो तुम्हारी बात मानी है। मैं तुम्हारे कहने पर अपनी जान पर खेली। अब तुम अपनी दासी की बात मानो।

22) मैं तुम्हें थोड़ी रोटी परोसती हूँ। तुम उसे खा लो, जिससे तुम में चले जाने की शक्ति आ जायें।"

23) परन्तु उसने इनकार करते हुए कहा, "मैं कुछ नहीं खाऊँगा।" लेकिन जब उसके सेवकों और उस स्त्री ने उस से आग्रह किया, तो उसने उनकी मान ली। वह भूमि से उठा और आसन पर बैठ गया।

24) स्त्री के घर में एक पुष्टा बछड़ा था। उसने जल्दी से उसका वध किया। फिर आटा ले कर और उसे गुँध कर उसने रोटियाँ बनायीं

25) और उन्हें साऊल तथा उसके आदमियों को परोसा। वे खाने-पीन के बाद उसी रात चले गये।



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