📖 - राजाओं का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 25

1) सिदकीया के राज्यकाल के नौवें वर्ष, दसवें महीने के दसवें दिन, बाबुल का राजा नबूकदनेज़र अपनी समस्त सेना के साथ येरूसालेम पर आक्रमण करने आया। उसने नगर के सामने शिविर डाला और उसे चारों ओर से घेर लिया।

2) यह घेराबन्दी सिदकीया के राज्यकाल के दसवें वर्ष तक बनी रही।

3 (3-4) उस वर्ष के चैथे महीने के नौवें दिन नगर की चारदीवारी में दरार की गयी; क्योंकि नगर में अकाल पड़ा था और खाने के लिए लोगों के पास कुछ नहीं रह गया था। यद्यपि खल्दैयी नगर के चारों ओर पड़े हुए थे, फिर भी सब सैनिक राजकीय उद्यान के पास की दो दीवारों के बीच वाले फ़ाटक से, रात को, नगर से बाहर निकले और अराबा की ओर भाग गये।

5) खल्दैयियो की सेना ने राजा का पीछा किया और उसे येरीख़ो के मैदान में घेर लिया। उस समय तक उसकी सारी सेना तितर-बितर हो गयी थी।

6) खल्दैयियों ने राजा को पकड़ कर रिबला में बाबुल के राज के सामने उपस्थित किया। वहाँ नबूकदनेज़र ने सिदकीया को दण्डाज्ञा दी।

7) और उसके पुत्रों को अपने सामने मरवा डाला। इसके बाद उसने सिदकीया की आँखें निकलीं और उसे काँसे की बेड़ियों से बाँध कर बाबुल भेज दिया।

8) बाबुल के राजा नबूकदनेज़र के राज्य-काल के उन्नीसवें वर्ष, पाँचवें महीने के सातवें दिन, बाबुल के राजा के सेनापति और उसके अंगरक्षकों के नायक नबूज़र अदान ने येरूसालेम में प्रवेश किया।

9) उसने प्रभु का मन्दिर, राजा का महल और येरूसालेम के सब घर जला दिये। उसने येरूसालेम के सब बडे़ भवन भस्म कर दिये।

10) अंगरक्षकों के नायक के साथ जो खल्दैयी सेना आयी थी, उसने येरूसालेम की चारदीवारी गिरा दी।

11) नगर में जो निवासी रह गये थे, जो लोग बाबुल के राजा के समर्थक बन गये थे और जो भी कारीगर शेष रह गये थे, उन सबों को अंगरक्षकों के नायक नबूज़रअदान ने निर्वासित किया।

12) उसने दाखबारियों और खेतों में काम करने लिए जनसाधारण के कुछ ही लोगों को छोड़ दिया।

13) खल्दैयियों ने प्रभु के मन्दिर के काँसे के खम्भे, ठेले और काँसे का हौज़ टुकडे-टुकडे़ कर दिये और उनका काँसा बाबुल ले गये।

14) वे पात्र, फावड़ियाँ, कैंचियाँ, कलछियाँ और काँसे के सब सामान ले गये, जो मन्दिर की सेवा के काम आते थे।

15) अंगरक्षकों का नायक लोबान के पात्र, कटोरे और वह सब कुछ, जो सोने और चाँदी का था, ले गया।

16) सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए जो दो खम्भे, हौज़ और ठेले बनवाये थे, उनके काँसे का वज़न इतना अधिक था कि वह तौला नहीं जा सकता था।

17) हर खम्भे की ऊँचाई अठारह हाथ थी और उसके ऊपर तीन हाथ ऊँचा काँसे का षीर्ष था। स्तम्भ-षीर्ष के चारों ओर काँसे की जाली और अनार थे।

18) अंगरक्षकों के नायक ने प्रधानयाजक सराया, दूसरे याजक सफ़न्या और तीन द्वारपालों को,

19) एक पदाधिकारी को, जो सैनिकों का प्रधान था और राजा के पाँच मं़ित्रयों को भी, जो उस समय नगर में उपस्थित थे, बन्दी बनाया और इसके अतिरिक्त सेनापति के सचिव को, जिसने लोगों को सेना में भरती किया था और देश के साठ व्यक्तियों को, जो उस समय नगर में उपस्थित थे।

20) अंगरक्षकों के नायक नबूज़रअदान ने उन्हें बाबुल के राजा के पास रिबला भेजा दिया।

21) बाबुल के राजा ने उन्हें हमात प्रान्त के रिबला मे मरवा डाला। इस प्रकार यूदा के लोगों को अपने देश से निर्वासित किया गया।

22) बाबुल के राजा नबूकदनेज़र ने अहीराम के पुत्र और षाफ़ान के पौत्र गदल्या को उन लोगों पर राज्यपाल नियुक्त किया, जिन्हें उसने यूदा में छोड़ दिया था।

23) जैसे ही सब सेनापतियों और सैनिकों ने सुना कि बाबुल के राजा ने गदल्या को राज्यपाल नियुक्त किया है, वैसे ही वे, अपने सैनिकों के साथ, गदल्या के पास मिस्पा आये। उनके ये नाम थे- नतन्या का पुत्र इसमाएल कारेअह का पुत्र योहानान, नटोफ़ावासी तनहुमेत का पुत्र सराया अ

24) गदल्या ने उन्हें और उनके सैनिकों को शपथपूर्वक विश्वास दिलाया कि तुम खल्दैयी पदाधिकारियों से मत डरो। तुम बाबुल के राजा के अधीन हो कर इस देश में निवास करो। तभी तुम्हारा कल्याण होगा।

25) लेकिन सातवें महीने में नतन्या का पुत्र, एलीषामा का पौत्र एसमाएल, जो राजा के घराने का था, दस आदमियों का साथ ले कर आया और गदल्या तथा मिस्पा में उसके साथ के यहूदियों और खल्दैयियों पर आक्रमण कर उनका वध किया।

26) इसके बाद यूदा के सब छोटे-बडे़ लोग और सभी सेनाध्यक्ष भाग कर मिस्त्र चले गये, क्योंकि वे खल्दैयियों से डरते थे।

27) यूदा के राजा यहोयाकीन के निर्वासन के संैतीसवें वर्ष, बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन, बाबुल के राजा एवील- मरोदाक ने अपने शासन के प्रथम वर्ष में यूदा के राजा यहोयाकीन को क्षमा कर दिया और उसे बन्दीगृह से मुक्त कर दिया।

28) उसने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया और बाबुल में उसके साथ रहने वाले राजाओं में उसे सवोच्च आसन दिया।

29) यहोयाकीन ने कै़दियों-जैसे अपने वस्त्र उतार दिये और वह जीवन भर राजा के यहाँ भोजन करता रहा।

30) वह जब तक जीता रहा, तब तक उसे राजा से प्रतिदिन दैनिक भत्ता मिलता रहा।



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