📖 - टोबीत का ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 05

1) इस पर टोबीयाह ने उत्तर देते हुए उस से कहा, "पिताजी! आपने मुझे जो कुछ कहा, मैं वह सब करूँगा।

2) परन्तु मैं वह धन कैसे प्राप्त करूँ, जब न तो मैं उस व्यक्ति को जानता हूँ और न वह मुझे। मैं उसे क्या प्रमाण दूँ, जिससे वह मुझे पहचाने, मुझ पर विश्वास करे और वह धन मुझे लौटायें? इसके सिवा मैं मेदिया जाने का रास्ता भी नहीं जानता।"

3) टोबीत ने उत्तर देते हुए अपने पुत्र टोबीयाह से कहा, "हम दोनों ने एक परचे पर हस्ताक्षर किये, मैंने उसके दो टुकड़े कर दिये और हम दोनों ने एक-एक टुकड़ा ले लिया। इसके बाद मैंने चाँदी उसके पास रखी। अब तो बीस वर्ष हो गये हैं कि मैंने वह धन उसके पास रखा। बेटा! अब तुम एक ईमानदार व्यक्ति का पता लगाओ, जो तुम्हारे साथ जाये और लौटने पर हम उसे वेतन देंगे। तुम जाओ और मृत्यु के पहले उस व्यक्ति से वह धन प्राप्त करो।"

4) तब टोबीयाह एक ऐसे व्यक्ति की खोज में निकला, जो उसके साथ मेदिया जाने को तैयार हो और वहाँ का मार्ग जानता हो। उसे स्वर्गदूत रफ़ाएल मिला, किन्तु उसे मालूम नहीं था कि वह स्वर्गदूत है।

5) वह उस से बोला, "युवक! तुम कहाँ के हो?" उसने उत्तर दिया, "मैं इस्राएली, तुम्हारा भाई हूँ। यहाँ काम की खोज में आया हूँ"। टोबीयाह ने पूछा, "क्या तुम मेदिया का मार्ग जानते हो?"

6) उसने कहा, "मैं वहाँ कई बार गया था। मैं वहाँ के सब मार्ग जानता हूँ। मैं कई बार मेदिया जा चुका हूँ और हमारे भाई गबाएल के यहाँ रहा, जो मेदिया के रागै का निवासी है। एकबतना से रागै दो दिन का रास्ता है, क्योंकि रागै पर्वत पर है, जब कि एकबतना मैदान में।

7) इस पर टोबीयाह उस से यह बोला, "युवक! मेरी प्रतीक्षा करो। मैं घर जा कर अपने पिता को इसकी सूचना दूँगा। वहाँ जाने के लिए मुझे तुम्हारे साथ की ज़रूरत है। इसके लिए मैं तुम को वेतन दूँगा।"

8) युवक ने कहा, "मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँगा, किन्तु देर मत करना"।

9) टोबीयाह ने घर जा कर अपने पिता टोबीत से कहा, "मुझे अपने इस्राएली भाइयों में से एक व्यक्ति मिल गया है, जो मेरे साथ जायेगा"। पिता ने उत्तर दिया, "बेटा! उसे अन्दर बुलाओ। मैं ज़रा पता कर लूँ कि वह किस कुल और वंश का है और यह देख लूँ कि वह ईमानदार और तुम्हारे साथ जाने योग्य है।"

10) टोबीयाह ने बाहर जा कर उसे बुलाया और कहा, "युवक! पिताजी तुम से मिलना चाहते हैं"। वह अन्दर गया और टोबीत ने पहले उसे प्रणाम किया। उसने टोबीत से कहा, "आप को आनन्द मिले!’ टोबीत ने उत्तर में कहा, "मुझे आनन्द कहाँ से मिलेगा? अन्धा होने के कारण आकाश की ज्योति नहीं देख सकता और अन्धकार में बैठने के कारण मैं मृतकों की फ़िर कभी प्रकाश नहीं देख पाऊँगा। मैं जीवित होते हुए भी मृतकों जैसा हूँ। मैं मनुष्यों की आवाज सुनते हुए भी उन्हें नहीं देखता।" उसने उत्तर दिया, ढ़ारस रखिए। निकट भविष्य में ईश्वर आप को स्वस्थ करेगा। ढ़ारस रखिए।" टोबीत ने उस से कहा, "भाई! मेरा पुत्र टोबीयाह मेदिया जाना चाहता है। क्या तुम उसके साथ जा कर उसे मार्ग दिखा सकते हो? मैं तुम को वेतन दूँगा।" उसने उत्तर दिया, "मैं उसके साथ जा सकता हूँ। मैं सब मार्ग जानता हूँ और कई बार मेदिया जा चुका हूँ। मै वहाँ के सब मैदानों और पर्वतों का भ्रमण कर चुका हूँ और सब मार्ग जानता हूँ।"

11) टोबीत ने उस से कहा, "भाई! मुझे बताओ, तुम कहाँ के और किस वंश के हो।"

12) उसने उत्तर दिया, "आप वंश क्यों जानना चाहते हैं?" टोबीत ने कहा, ‘मैं सही-सही यह जानना चाहता हूँ कि तुम किसके पुत्र हो और तुम्हारा नाम क्या है।"

13) उसने उत्तर दिया, "मैं आपके सम्बन्धी बड़े हनन्या का पुत्र अर्ज़या हूँ"।

14) टोबीत ने कहा, "भाई! स्वागत हो! इस बात पर बुरा न मानना कि मैं तुम्हारे परिवार का सही परिचय चाहता था। अब पता चला कि तुम मेरे भाई और अच्छे परिवार के सदस्य हो। मैं बड़े समाया के दोनों पुत्र हनन्या और नातान को जानता था। वे आराधना करने मेरे साथ येरूसालेम जाया करते थे। वे अपने धर्म से विमुख नहीं हुए। तुम्हारे भाई कुलीन है और तुम्हारा वंश उत्तम है। तुम्हारा स्वागत हो।"

15) उसने फिर कहा, "मैं तुम को एक दीनार का रोज़ाना और तुम्हें एवं अपने पुत्र को वह दूँगा, जो आवश्यक है। उसके साथ जाओ

16) और मैं वेतन के अतिरिक्त तुम्हें और कुछ दूँगा।"

17) उसने कहा, "आप निश्चिन्त रहें, मैं उसके साथ जाऊँगा। हम सकुशल जायेंगे और सकुशल लौटेंगे। मार्ग सुरक्षित हैं।" टोबीत ने उस से कहा, "भाई! ईश्वर तुम्हारा भला करे! उसने अपने पुत्र को बुला कर कहा, "यात्रा के लिए तैयारी करो और अपने भाई के साथ जाओ। स्वर्ग में विराजमान ईश्वर वहाँ तुम्हारी रक्षा करे और तुम दोनों को मेरे पास सकुशल पहुँचा दी। पुत्र! ईश्वर का दूत तुम्हारे साथ रहे और तुम्हारी रक्षा करे।" टोबीयाह ने यात्रा के लिए तैयार हो कर अपने माता-पिता का चुम्बन किया। टोबीत ने कहा, "तुम्हारी यात्रा सफ़ल हो!"

18) उसकी माता रोने लगी और टोबीत से बोली, "आपने मेरे पुत्र को बाहर क्यों भेजा? वह हमारे पास रहने पर हमारे हाथों की छड़ी है।

19) धन बढ़ने से हमें क्या लाभ? हमारे पुत्र के मुक़ाबले में धन कुछ नहीं।

20) ईश्वर ने हमारी जीविका के लिए जो दिया है, वह हमारे लिए बहुत है।"

21) इस पर टोबीत ने उस से कहा, "चिन्ता मत करो। हमारा पुत्र सकुशल जायेगा और सकुशल लौटेगा। जिस दिन वह सकुशल लौटेगा, तुम्हारी आँखें उसे फिर देखेंगी।

22) बहन! चिन्ता मत करो और नहीं डरो। अच्छा स्वर्गदूत उसके साथ जायेगा और मार्ग में उसकी रक्षा करेगा।

23) वह सकुशल लौटेगा।"



Copyright © www.jayesu.com