📖 - होशेआ का ग्रन्थ (Hosea)

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अध्याय 13

1) जब एफ्राईम का स्वर सुनाई देता था, तो सब लोग काँप उठते थे, वह तो महान् ही था। किन्तु बाल-देवता का पूजा कर उसने अपराध किया और इस से वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।

2) और अब उनका पाप बढता ही जा रहा है; वे ढली मूर्तियाँ मनुष्यों की कृतियाँ बनाते हैं; चाँदी से कुशल कारीगर उन्हें गढते हैं; वे कहते हैं, "इनकी पूजा करो"। मनुष्य बछडों की मूर्तियाँ चूमते हैं।

3) इसलिए वे प्रातःकाल के कुहरे की तरह ओर की बुँदों की तरह लुप्त हो जायेंगे। खलिहान से उडाये गये भूसे के समान या खिडकी से निकलने वाले धूएँ के समान वे विलीन हो जायेंगे।

4) मिस्र के निर्वासन के समय से मैं ही तुम्हारा प्रभु-ईश्वर रहा हूँ; मेरे सिवाय तुम किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानते; मेरे सिवाय कोई अन्य उद्धारत नहीं।

5) मरुभूमि में मैंने ही तुम्हारी रक्षा की,

6) उस सूखे प्रदेश में मैं ने उन को खिलाया-पिलाया और वे खा-पीकर तृप्त रहते थे; तब वे घमण्ड से फूल गये और मुझे भुला बैठे।

7) अच्छा, तो मैं उनके साथ सिंह का-सा व्यवहार करूँगा, चीते की तरह मैं मार्ग में घात लगा कर बैठा रहूँगा।

8) अपने बच्चों को छिन जाते देख कर जैसे रीछनी शिकार पर टूट पडती है, वैसे ही मैं उन पर टूट कर उनके कलेजे फाड डालूँगा; सिंहनी की तरह उन को झट से चट जाऊँगा, जंगली जानवर बन कर मैं उन को निगल जाऊँगा।

9) इस्राएल! मैं तुम को नष्ट करूँगा और कौन तुम्हारी मदद करने आयेगा?

10) अब तुम्हारा वह राजा कहाँ रहा, जो तुम को बचाये; वे सभी नेता कहाँ हैं, जिनकी तुम शरण जाओ; तुमने मुझ से कहा था न, "मुझे राजा और सामन्त दे"?

11) मैंने क्रुद्ध हो कर तुम को राजा दे दिये और फिर क्रोधित हो कर उन्हें वापस भी ले लिया।

12) एफ्राईम के अपराधों की गठरी बाँधी हुई है, उसके भण्डार पापों से भरे हुए हैं।

13) प्रसवपीडा शुरू हो गयी, किन्तु मूर्ख शिशु को समय का क्या पता, वह निकलता नहीं।

14) क्या मैं फिरौती चुका कर अधोलोक के वश से उन्हें बचाऊँ? क्या मैं मृत्यु से उनका उद्धार करूँ? काल! तेरी महामारियाँ कहाँ हैं? अधोलाक! कहाँ है तेरा विनाश? मेरा तो कलेजा पत्थर हो गया है।

15) एफ्राईम नरकुल-झुरमुट के बीच फले-फूले तो सही, किन्तु पुरवाई बहेगी, उजाड से प्रभु-ईश्वर की साँस; उसके झरने बन्द हो जायेंगे, उसके सोते सूख जायेंगे, उसका समस्त धन-वैभव लुट जायेगा।



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