📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 08

1) मैं आज तुम्हें जो आदेश सुना रहा हूँ, उन सबका सावधानी से पालन करो, जिससे तुम जीवित रहो, तुम्हारी संख्या बढ़ती जाए और तुम उस देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में कर लो, जिसे प्रभु ने शपथपूर्वक तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की।

2) मरुभूमि में इन चालीस वर्षों की वह यात्रा याद रखो, जिसके लिए तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम लोगों को बाध्य किया था। उस ने तुम्हें दीन-हीन बनाने के लिए ऐसा किया, तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए, तुम्हारा मनोभाव पता लगाने के लिए और इस प्रकार यह जानने के लिए कि तुम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हो या नहीं।

3) उसने तुम्हे त्रस्त किया, भूखा रखा फिर तुम्हें मन्ना भी खिलाया, जिसे न तुम जानते थे और न तुम्हारे पूर्वज ही। इससे उसने तुमको यह समझाना चाहा कि मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।

4) इन चालीस वर्षाे में न तुम्हारे पहने हुए वस्त्र जर्जर हुए और न तुम्हारे पाँव ही सूजे।

5) इसलिए यह समझ लो कि जैसे कोई पिता अपने पुत्र को अनुषासित करता है, वैसे ही प्रभु, तुम्हारा ईश्वर भी तुम को अनुषासित करता है।

6) अतः तुम उसके मार्गों पर चलते हुए और उस पर श्रद्धा रखते हुए प्रभु, अपने ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते रहोगे।

7) अब तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम लोगों को उपजाऊ देश ले जा रहा है। वह एक ऐसा देश है जहाँ नदियाँ बहती हैं और झरने तथा जलस्रोत घाटियों तथा पहाड़ियों से फूट कर निकलते हैं।

8) एक ऐसा देश, जहाँ गेहूँ और जौ हैं, दाखबारियाँ हैं, अंगूर, अंजीर और जैतून के पेड़ हैं, तेल और मधु हैं।

9) एक ऐसा देश, जहाँ तुम्हें प्रचुर मात्रा में रोटी मिलेगी और तुम को कभी कोई कमी नहीं होगी। एक देश, जहाँ के पत्थरों में लोहा है और जहाँ के पहाडों से तुम ताम्बा निकालोगे;

10) जहाँ तुम खा कर तृप्त हो जाओगे और अपने प्रभु-ईश्वर को उस उपजाऊ भूमि के लिए धन्यवाद दोगे, जिसे उसने तुम्हें दिया है।

11) सावधान रहो-तुम अपने प्रभु ईश्वर को मत भूलो और उसके जो आदेश, विधियाँ तथा नियम मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ, उनकी उपेक्षा मत करो।

12) (12-13) कहीं ऐसा न हो कि जब तुम खा कर तृप्त हो जाओगे, जब तुम सुन्दर भवन बना कर उन में निवास करोगे, जब तुम्हारे गाय-बैलों और भेड़-बकरियों की संख्या बढ़ जायेगी, जब तुम्हारे पास बहुत सोना-चाँदी और धन सम्पत्ति एकत्र हो जायेगी’

14) तो तुम घमण्डी बन जाओ और अपने प्रभु ईश्वर को भूल जाओ। उसने तुम लोगो को मिस्र देश से - दासता के घर से - निकाल लिया।

15) उसने इस विशाल भयंकर मरुभूमि में विषैले साँपो, बिच्छुओं और प्यास के देश में तुम्हारा पथप्रदर्शन किया। उसने इस जलहीन स्थल में तुम्हारे लिए कठोर चट्टान से पानी निकाला।

16) उसने तुम लोगों को इस मरुभूमि मे मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पूर्वज नहीं जानते थे। उसने तुम लोगों का घमण्ड तोड़ने के लिए और तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया, जिससे आगे चल कर तुम्हारा कल्याण हो।

17) तुम लोग अपने मन में यह नहीं कहो - हमने अपने सामर्थ्य और बाहुबल से यह सारी सम्पत्ति एकत्र कर ली है,

18) बल्कि अपने प्रभु-ईश्वर का स्मरण करते रहो। वही तुम्हें सम्पत्ति एकत्र करने का सामर्थ्य प्रदान करता है; क्योंकि वह आज तक वह विधान बनाये रखता है, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया था।

19) यदि तुम अपने ईश्वर को भुला कर पराये देवताओें के अनुयायी बन जाओगे, उनकी पूजा करोगे और उन्हें दण्डवत् करोगे, तो मैं आज तुम को विश्वास दिलाता हूँ कि तुम नष्ट हो जाओगे।

20) जिस तरह प्रभु ने तुम्हारे सामने राष्ट्रों का विनाश किया, उसी तरह तुम भी नष्ट हो जाओगे; क्योंकि तुमने प्रभु की वाणी की अवज्ञा की है।



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