📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 01

1) प्रभु के सेवक मूसा की मृत्यु के बाद प्रभु ने मूसा के सहायक नून के पुत्र योशुआ से कहा,

2) "मेरे सेवक मूसा की मृत्यु हो चुकी है अब तुम सब लोगों के साथ वहाँ से रवाना हो कर यर्दन पार करो और उस देश में प्रवेश करो जिस मै इस्राएलियों को दे रहा हूँ।

3) जिन जिन स्थानो पर तुम पैर रखोगे मैं उन्हें तुम्हें देता जाऊँगा जैसी कि मैने मूसा से प्रतिज्ञा की।

4) उजाड़खण्ड़ और लेबानोन से ले कर महानदी फरात तक हितियों तक फैला हुआ है तुम्हारा देश होगा।

5) जब तक तुम जीवित रहोगे कोई भी तुम्हारे सामने नहीं टिक पायेगा। जैसे मैं मूसा के साथ रहा वैसे ही तुम्हारे साथ भी रहूँगा। मैं तुम्हारी सहायता करता रहूँगा। तुम्हारा त्याग नहीं करूँगा।

6) दृढ़ बने रहो और ढारस रखो; क्योंकि तुम उस देश पर इन लोगो का अधिकार कराओगे जिसे मैंने इनके पूर्वजो को देने की शपथ खायी थी।

7) दृढ़ बने रहो और ढारस रखो। जो संहिता मेरे सेवक मूसा ने तुम को दी है उसका सावधानी से पूरा-पूरा पालन करो। उस से तुम न बायें भटको और न दाहिने। इस से तुम्हारा सर्वत्र कल्याण होगा।

8) संहिता के इस ग्रन्थ की चरचा करते रहो। दिन-रात उसका मनन करो, जिससे उस में जो कुछ लिखा है तुम उसका सावधानी से पालन करो। इस तरह तुम उन्नति करते रहोगे और अपने सब कार्यों में सफलता प्राप्त करोगे।

9) क्या मैनें तुम से यह नहीं कहा दृढ़ बनें रहो और ढारस रखो? तुम न डरोगे और न घबराओगे क्योंकि तुम जहाँ कहीं भी जाओगे प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे साथ होगा।"

10) तब योशुआ ने लोगों के अधिकारियों को यह आदेश दिया,

11) शिविर में चारों ओर घूम कर लोगो से कहो कि वे रसद का प्रबन्ध करें, क्योंकि उन्हें तीन दिन के अन्दर उस देश को अपने अधिकार में करने के लिए यर्दन पार करना होगा जिसे प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम्हें विरासत के रूप में देने वाला है।"

12) रूबेन और गाद वंश तथा मनस्से के आधे वंश के लोगो से योशुआ ने यह कहा,

13) "प्रभु के सेवक मूसा द्वारा अपने को दिया हुआ यह आदेश याद रखो कि प्रभु तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें विश्राम करने के लिए यह देश दिया है।

14) तुम्हारी पत्नियाँ, तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे पशु इस देश में ही रहें जिसे मूसा ने तुम्हें यर्दन के इस पार दिया है। किन्तु तुम्हारे सब योद्धा अस्त्र-शस्त्र के साथ तुम्हारे अन्य भाइयों के आगे-आगे पार चले और तब तक उनकी सहायता करते रहें,

15) जब तक प्रभु उन्हें विश्राम करने का स्थान न दे जैसा कि उसने तुम्हारे लिए किया है और जब तक वे भी उस देश पर अधिकार न करें जिसे प्रभु उन्हें देने वाला है। इसके बाद तुम लौट कर अपने देश में रहो जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने तुम्हें यर्दन के पूर्व में दिया है।"

16) तब उन्होंने योशुआ को उत्तर दिया, "आपने जो कुछ हम से कहा हम उसे पूरा करेंगे और आप जहाँ भी हमें भेजेंगे हम वहाँ जायेंगे।

17) हम आपकी बात उसी प्रकार मानेंगे जिस प्रकार हमने मूसा की सारी बातें मानी है। प्रभु आपका ईश्वर आपके साथ वैसे ही बना रहे जैसे वह मूसा के साथ रहा।

18) जो आपके विरुद्ध विद्रोह करेगा और आपके किसी भी आदेश का पालन नहीं करेगा उसे मृत्युदण्ड़ दिया जायेगा। आप दृढ़ बने रहे और ढारस रखें।"



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