📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 22

1) इसके बाद योशुआ ने रूबेन, गाद ओर आधे मनस्से के वंशों को बुला भेजा

2) और उन से कहा, "तुम लोगों ने उन सब आदेशों का पालन किया है, जिन्हें प्रभु के सेवक ने तुम्हें दिया और तुमने सब बातों में मेरी बात मानी।

3) तुम लोग बहुत समय से आज तक अपने भाइयों की सहायता करते आ रहे हो। इस प्रकार प्रभु ने तुम्हें जो कार्य सौंपा, तुमने उसे पूरा किया।

4) अब प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे भाइयों को शान्ति दी है। इसलिए अब तुम यहाँ से लौट कर उस देश के अपने घर चले जाओ जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने यर्दन के उस पार तुम्हें दायभाग के रूप में दिया।

5) तुम सावधान हो कर उन आदेशों और संहिता का पालन करो, जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने तुम्हें दिया: प्रभु अपने ईश्वर को प्यार करो, उसके मार्गों पर चलते रहो, उसके आदेशों का पालन करो, उस से संयुक्त रहो और सारे हृदय और सारी आत्मा से उसकी सेवा करो।

6) तब योशुआ ने उन्हें आशीर्वाद दे कर विदा किया और वे अपने-अपने घर लौट गये।

7) मूसा ने मनस्से के आधे कुल को बाशान में भूमि दी थी और योशुआ ने मनस्से के दूसरे आधे कुल को यर्दन के पश्चिम में उनके भाइयों के बीच भूमि दी थी। योशुआ ने उन्हें अपने घर भेजा और आशीर्वाद देते हुए

8) कहा, "तुम अपनी भारी सम्पति - अपार पशुधन, चाँदी, सोना, काँसा, लोहा और बहुत से कपड़े ले कर अपने अपने घर लौट जाओ। अपने शत्रुओं से लूटी सम्पति को अपने भाइयों में बाँट दो।"

9) इस पर रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंश कनान के शिलों में इस्राएलियों से विदा लेकर अपने देश गिलआद लौटे, जिसे मूसा ने प्रभु के आदेश के अनुसार उन्हें दिया था।

10) जब वे कनान देश के उस भाग में पहुँचे, जो यर्दन के पास है, तो रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंशियों ने वहाँ यर्दन के तट पर एक विशाल वेदी बनायी।

11) इस्राएलियों को यह पता चला कि रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंशियों ने कनान देश की सीमा पर यर्दन के पास, जो इस्राएलियों की भूमि है, एक विशाल वेदी बनायी है।

12) जब इस्राएलियों ने यह सुना, तब सारा इस्राएली समुदाय उन पर आक्रमण करने के लिए शिलों में एकत्रित हो गया।

13) इस्राएलियों ने एलआजार के पुत्र याजक पीनहास को

14) रूबेन, गाद ओर आधे मनस्से के वंशियों के पास गिलआद देश भेजा। पीनहास के साथ उन्होंने दस नेताओं को भेजा - इस्राएल के हर एक वंश से एक, जो इस्राएली कुलों के घरानों के मुखिया थे।

15) गिलआद देश में रूबेन, गाद ओर आधे मनस्सेवंशियों के पास पहुँच कर उन्होंने उन से कहा,

16) "प्रभु का सारा समुदाय यह कहता है, तुम लोगों ने इस्राएल के ईश्वर के साथ ऐसा विश्वासघात क्यों किया? अपने लिए वेदी बना कर और प्रभु से विद्रोह कर तुम लोग आज प्रभु से विमुख क्यों हुए?

17) क्या हमारे लिए पओर के पास किया गया अपना वही अपराध पर्याप्त नहीं था? उस अपराध के कारण प्रभु के समुदाय पर महामारी आ पड़ी; फिर भी हम आज तक उस अपराध के दोष से मुक्त नहीं हुए।

18) अब तुम प्रभु से विमुख क्यों होना चाहते हो? आज तुम प्रभु से विद्रोह करोगे और कल इस्राएलियों के सारे समुदाय पर उसका क्रोध भड़क उठेगा।

19) यदि अपने उस की भूमि तुम्हें दूषित मालूम पड़ती हो, तो वह देश आ जाओ, जो प्रभु की भूमि है तथा जहाँ प्रभु का निवासस्थान है और हमारे बीच बस जाओ। लेकिन प्रभु और हमसे विद्रोह मत करो और प्रभु हमारे ईश्वर की वेदी के अतिरिक्त अपने लिए एक और वेदी मत बनाओ।

20) देखो, जब जेरह के पुत्र अकान ने प्रभु को अर्पित वस्तुओं में से अपने लिए कुछ लिया था, तो क्या इस्राएल के सारे समुदाय पर क्रोध नहीं भड़का था? उस एक के अपराध के कारण केवल उसी की तो मृत्यु नहीं हुई थी?"

21) इस पर रूबेन, गाद और आधे मनस्से के वंशियों ने इस्राएली कुलों के मुखियाओं को यह कहते हुए उत्तर दिया,

22) "ईश्वर! ईश्वर! सर्वेश्वर प्रभु! वह जानता है और इस्राएल यह जान ले! यदि यह प्रभु का विद्रोह और विश्वासघात हो, तो वह आज हमारी रक्षा न करें

23) और यदि हमने यह वेदी प्रभु से विद्रोह करने के लिए बनायी हो अथवा उस पर होम, अन्न या शान्ति बलियाँ चढ़ाने के लिए बनायी हो, तो प्रभु इसका बदला हमसे चुकाये।

24) वास्तव में हमने केवल इस डर से ऐसा किया कि कहीं भविष्य में तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों से यह न कहने लगें: ’प्रभु इस्राएल के ईश्वर से तुम्हारा क्या लेना देना?

25) प्रभु ने तो हमारे और तुम्हारे बीच यर्दन को सीमा निर्धारित किया है। रूबेन ओैर गादवंशियों! प्रभु में तुम्हारी कोई भागीदारी नहीं! इस प्रकार तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों के हृदय से प्रभु की श्रद्धा को दूर कर सकती हैं।

26) इसलिए हमने सोचा कि हम स्वयं एक वेदी बनायें, परन्तु वह होम बलि या अन्य बलि चढ़ाने के लिए न हो,

27) बल्कि वह हमारे और तुम्हारे तथा हम दोनों के वंशजों के लिए एक साक्षी हो कि हम होम अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ा कर प्रभु के पवित्र स्थान में उसकी पूजा करेंगे। तब भविष्य में तुम्हारी सन्तानें हमारी सन्तानों से यह नहीं कह सकेंगी कि प्रभु में तुम्हारी कोई भागीदारी नहीं।

28) हमने यह सोचा कि यदि वे कभी हम से या हमारे वंशजों से ऐसा कहेंगी, तो हम यह उत्तर देंगे: प्रभु की वेदी की यह प्रतिकृति देखो। हमारे पूर्वजों ने इसे होम, अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ाने नहीं, बल्कि इसलिए बनाया कि यह हमारे और तुम्हारे बीच साक्षी हो।

29) प्रभु अपने ईश्वर के निवासस्थान के सामने जो वेदी है, उसके सिवा होम, अन्न और शान्ति बलियाँ चढ़ाने के लिए कोई अन्य वेदी बना कर आज प्रभु से विद्रोह करना और उस से विमुख होना - ऐसा विचार हमसे कोसों दूर है।"

30) जब याजक पीनहास और उसके साथ आये हुए समुदाय के नेताओं ने, अर्थात इस्राएली कुलों के मुख्यिाओं ने रूबेन, गाद और मनस्सेवंशियों का यह उत्तर सुना, तो वे इस से संतुष्ट हो गये।

31) एलआजार के पुत्र याजक पीनहास ने रूबेन, गाद और मनस्सेवंशियों से कहा, "आज हम जान गये कि प्रभु हमारे बीच है, क्योंकि तुमने प्रभु के प्रति विश्वासघात नहीं किया है। तुमने इस्राएल के लोगों को प्रभु के हाथों नष्ट होने से बचा लिया है।"

32) इसके बाद एलआजार के पुत्र याजक पीनहास ने नेताओं के साथ गिलआद में रूबेन ओर गादवंशियों के पास से कनान में इस्राएलियों के पास लौट कर उन्हें यह हाल सुनाया।

33) यह हाल सुन कर इस्राएली सन्तुष्ट हो गये। इस्राएलियों ने प्रभु की स्तुति की और उनके विरुध्द युद्व करने तथा रूबेन और गादवंशियों का देश उजाड़ने का विचार छोड़ दिया।

34) रूबेन और गादवंशियों ने उस वेदी का नाम साक्ष्य वेदी रखा, क्योंकि उनका कहना था कि यह हमारे बीच इस बात का साक्ष्य देती है कि प्रभु ही ईश्वर है।



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