📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 06

1) दाऊद ने इस्राएल के तीस हज़ार चुने हुए पुरुषों को एकत्रित किया।

2) इसके बाद वह अपने सब लोगों के साथ यूदा प्रदेश बाला गया, जिससे वह वहाँ से ईश्वर की मंजूषा ले आये। वह केरूबों पर विराजमान, विश्वमण्डल के प्रभु के नाम से पुकारी जाती है।

3) ईश्वर की मंजूषा एक नयी गाड़ी पर रखी गयी और टीले पर स्थित अबीनादाब के घर से ले जायी गयी। अबीनादाब के पुत्र उज़्जा और अहयों उस नयी गाड़ी को हाँक रहे थे।

4) वे टीले पर स्थित अबीनादाब के घर से ईश्वर की मंजूषा ले जा रहे थे। अहयो मंजूषा के आगे-आगे चल रहा था।

5) दाऊद और सभी इस्राएली प्रभु के सामने नृत्य करते, गाते और सारंगी, डफ, डमरू, झाँझ आदि बजाते हुए चल रहे थे।

6) जब वे नाकोन के खलिहान के पास आये, तब उज़्जा ने हाथ उठाकर ईश्वर की मंजूषा को संँभाला, क्योंकि बैलों को ठोकर लग गयी थी।

7) प्रभु का कोप उज़्जा पर भड़क उठा और उसने वहीं उज्जा की इस भूल के कारण उसे मारा। ईश्वर की मंजूषा के पास ही उसकी मृत्यु हो गयी।

8) दाऊद बहुत घबरा गया, क्योंकि प्रभु का क्रोध उज़्जा पर भड़क उठा। उस स्थान का नाम पेरेस-उज़्जा पड़ गया, जो आज तक प्रचलित है।

9) उस दिन यह सोच कर दाऊद प्रभु से डर गया कि प्रभु की मंजूषा मेरे पास कैसे आ सकती है।

10) इसीलिए दाऊद प्रभु की मंजूषा अपने यहाँ दाऊदनगर नहीं लाया, बल्कि दाऊद उसे गतवासी ओबेद-एदोम के यहाँ ले गया।

11) प्रभु की मंजूषा तीन महीने तक गत के ओबेद-एदोम के यहाँ रही। प्रभु ने ओबेद-एदोम और उसके सारे परिवार को आशीर्वाद दिया।

12) राजा दाऊद को ख़बर मिली की प्रभु ने ईश्वर की मंजूषा के कारण ओबेद-एदोम के घर वालों और उसकी सम्पत्ति को आशीर्वाद दिया है; इसलिए दाऊद गया और ईश्वर की मंजूषा ओबेद-एदोम के घर से बड़े आनन्द के साथ दाऊदनगर ले आया।

13) जब ईश्वर की मंजूषा ढोने वाले छः क़दम आगे बढ़े थे, तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटे बछड़े की बलि चढ़ायी।

14) वह छालटी का अधोवस्त्र पहने प्रभु के सामने उल्लास के साथ नाच रहा था।

15) इस प्रकार दाऊद और सब इस्राएली जयकार करते और तुरही बजाते हुए प्रभु की मंजूषा ले आये।

16) जब प्रभु की मंजूषा दाऊदनगर में प्रवेश कर रही थी, तो साऊल की पुत्री मीकल ने खिड़की से देखा। उसने राजा दाऊद को प्रभु के सामने नाचते-कूदते देखकर मन-ही-मन दाऊद का तिरस्कार किया।

17) उन्होंने मंजूषा को ला कर उस तम्बू के मध्य में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था। इसके बाद दाऊद ने प्रभु को होम और शान्ति के बलिदान चढ़ाये।

18) होम और शान्ति के बलिदान चढ़ाने के बाद दाऊद ने विश्वमण्डल के प्रभु के नाम पर लोगों को आशीर्वाद दिया।

19) अन्त में उसने समस्त प्रजा, सभी एकत्र इस्राएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भुने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किशमिश की एक-एक टिकिया दी। इसके बाद सब लोग अपने-अपने घर गये।

20) जब दाऊद अपने परिवार को आशीर्वाद देने अपने घर आया, तो साऊल की पुत्री मीकल दाऊद से मिलने आयी और बोली "आज इसा्रएल के राजा ने कितना यश कमाया कि अपने सेवकों की दासियों के सामने निकम्मों की तरह नंगेबदन नाचते रहे।"

21) दाऊद ने मीकल से कहा, "प्रभु ने तुम्हारे पिता और तुम्हारे सारे घराने की अपेक्षा मुझे चुना है और मुझे प्रभु की प्रजा, इस्राएल का शासक बनाया है। मैं उसी प्रभु के सामने नाचता रहा और नाचूँगा।

22) मैं इस से अधिक अशोभनीय आचरण करूँगा और अपनी दृष्टि में अपने को और नीचा दिखाऊँगा, किन्तु जिन दासियों की तुम चरचा करती हो, वे मेरा सम्मान करेंगी।"

23) साऊल की पुत्री मीकल मृत्यु तक बाँझ रही।



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