📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 15

1) इसके बाद अबसालोम ने एक रथ और घोड़े तैयार करवाये और अपने सामने दौड़ने के लिए पचास आदमी।

2) प्रातः काल अबसालोम फाटक के रास्ते पर खड़ा हो जाया करता था और जब कोई किसी मामले का निपटारा कराने राजा के पास जाता, तो अबसालोम उसे अपने पास बुलाकर यह पूछता, "तुम किस नगर के हो?" जब वह उत्तर देता कि आपका दास इस्राएल के कुल का है,

3) तो अबसालोम उससे कहता, "तुम्हारा मामला उचित और न्यायसंगत मालूम पड़ता है; लेकिन तुम्हारी बात सुनने के लिए राजा का कोई प्रतिनिधि नहीं है।"

4) अबसालोम यह भी कहता, "यदि मैं देश का न्यायाधीश होता, तो जिसकी भी कोई शिकायत या मामला होता, वह मेरे पास आ सकता और मैं उसे न्याय दिलाता।"

5) यदि कोई उसे प्रणाम करने पास आता, तो वह अपना हाथ बढ़ाकर उसका आलिंगन कर लेता और उसे चूम लेता।

6) अबसालोम उन सब इस्राएलियों के साथ ऐसा किया करता, जो राजा के पास अपने मामले लाते थे। ऐसा करने से अबसालोम इस्राएलियों के हृदय अपनी और आकर्षित करता था।

7) चार वर्ष बाद अबसालोम ने राजा से कहा, "मैं हेब्रोन जा कर प्रभु के लिए अपनी मन्नत पूरी करूँगा।

8) जब आपका दास आराम के गशूर में रहता था, तो उसने यह मन्नत की थी कि यदि प्रभु मुझे येरूसालेम लौटने देगा, तो मैं प्रभु को एक बलि चढ़ाऊँगा।"

9) राजा ने उसे उत्तर दिया, "कुशलपूर्वक जाओ।" वह चल कर हेब्रोन पहुँचा।

10) अबसालोम ने इस्राएल के सब वंशों के पास यह कह कर गुप्तचर भेजे, "तुम लोग जैसे ही तुरहियों की ध्वनि सुनोगे, तो यह कहोगे- अबसालोम हेब्रोन में राजा हैं।"

11) येरूसालेम से अबसालोम के साथ दो सौ आमन्त्रित व्यक्ति भी गये थे। वे यों ही चले गये थे। उन्हें इस सम्बन्ध में कुछ भी मालूम नहीं था।

12) अबसालोम ने दाऊद के मन्त्री गिलोवासी अहीतोफ़ेल को भी, उसके नगर गिलों से, बलि-उत्सव में सम्मिलित होने के लिए बुलावाया था। इस प्रकार षड्यंत्र को बल मिला और अबसालोम के अनुयायियों की संख्या बढ़ती गयी।

13) एक दूत दाऊद को यह सूचना देने आया कि इस्राएलियों ने अबसालोम का पक्ष लिया है।

14) इस पर दाऊद ने येरूसालेम में रहने वाले अपने सब सेवकों से कहा, "चलो! हम भाग चलें, नहीं तो हम अबसालोम के हाथ से नहीं बच सकेंगे। हम शीघ्र ही चले जायें। कहीं ऐसा न हो कि वह अचानक पहुँच कर हमारा सर्वनाश करे और शहर के निवासियों को तलवार के घाट उतार दे।"

15) राजा के पदाधिकारियों ने उसे उत्तर दिया, "श्रीमान् हमारे राजा की जैसी आज्ञा है, हम, आपके दास वैसे ही करने को तैयार हैं।"

16) इसलिए राजा घर से निकल पड़ा और घर के सब लोग उसके पीछे हो लिये। राजा ने महल की देखरेख के लिए दस उपपत्नियाँ छोड़ दीं।

17) राजा घर से निकल गया और सब लोग उसके पीछे-पीछे चले गये। अन्तिम घर के पास वे रुक गये।

18) तब उसके सब सेवक, सब करेती, पलेती, गितयी और गत से आये हुए छः सौ आदमी राजा के सामने से हो कर आगे बढ़े।

19) राजा ने गत के इत्तय से कहा, "तुम हमारे साथ क्यों चलते हो? लौट जाओ और नये राजा के यहाँ रहो। तुम स्वयं परदेशी हो और स्वदेश से निर्वासित भी हो।

20) अभी-अभी ही तो तुम आये हो और अब तुम को हमारे साथ इधर-उधर भटकना पड़ेगा, जब कि मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मुझे कहाँ जाना है। तुम लौट जाओ और अपने भाइयों को भी साथ लेते जाओ। प्रभु की कृपा और निष्ठा तुम्हारे साथ रहे।"

21) लेकिन इत्तय ने राजा को उत्तर दिया, "प्रभु की शपथ! अपने स्वामी और राजा की शपथ! जहाँ मेरे स्वामी और राजा होंगे, वहीं आपका दास भी होगा - चाहे उसे मृत्यु मिले या जीवन।"

22) दाऊद ने इत्तय को उत्तर दिया, "अच्छा, तो आगे बढ़ो।" इस पर गतवासी इत्तय अपने सब आदमियों और बाल-बच्चों को साथ ले कर उसके सामने से आगे निकला।

23) जब सारी प्रजा आगे बढ़ रही थी, तो सब लोग फूट-फूट कर रोने लगे। राजा ने केद्रोन नाला पार कर सब आदमियों के साथ उजाड़खण्ड की ओर प्रस्थान किया।

24) सादोक भी उन सब लेवियों के साथ वहाँ आया, जो ईश्वर के विधान की मंजूषा ले जाते थे। उन्होंने ईश्वर की मंजूषा नीचे रखी और जब तक नगर के सब आदमी निकल नहीं आये, तब तक एबयातर बलि चढ़ाता रहा।

25) इसके बाद राजा ने सादोक से कहा, "ईश्वर की मंजूषा नगर में वापस ले जाओ। यदि मैं प्रभु का कृपापात्र होऊँगा, तो वह मुझे वापस ले आयेगा और मुझे अपने को और अपने निवासस्थान को पुनः देखने देगा

26) और यदि वह कहेगा कि मैं तुम से प्रसन्न नहीं हूँ, तो मैं इसके लिए भी तैयार हूँ। वह मेरे साथ वैसा ही करे, जैसा ठीक समझे।"

27) फिर राजा ने याजक सादोक से कहा, "देखो, तुम और एबयातर अपने-अपने पुत्र अहीमअस और योनातान के साथ कुशलपूर्वक नगर लौट जाओ।

28) देखो, जब तक मुझे तुम से कोई समाचार नहीं मिले, तब तक मैं उजाड़खण्ड की ओर जाने वाले मार्ग के घाटों में ठहरा रहूँगा।"

29) इसके बाद सादोक और एबयातर ईश्वर की मंजूषा येरूसालेम वापस ले गये और वहीं रह गये।

30) दाऊद रोते हुए जैतुन पहाड़ पर चढ़ा। उसका सिर ढका हुआ था और उसके पैर नंगे थे। जितने लोग उसके साथ थे, उनके सिर ढके हुए थे और वे रोते हुए पहाड़ पर चढ़े।

31) दाऊद को यह समाचार मिला कि अहीतोफ़ेल भी अबसालोम के साथ षड़यंत्रकारियों में सम्मिलित है। दाऊद ने कहा, "प्रभु! अहीतोफ़ेलव की योजनाएँ व्यर्थ कर।"

32) दाऊद पहाड़ी की चोटी पर पहुँचा, जहाँ ईश्वर की आराधना की जाती है। वहाँ उसकी हूशय उस से मिलने आया। उसके वस्त्र फटे थे और उसके सिर पर धूल पड़ी थी।

33) दाऊद ने उससे कहा, "यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो तुम मेरे लिए भार-जैसे बन जाओगे;

34) लेकिन यदि तुम नगर लौट जाओगे और अबसालोम से कहोगे, -‘राजा! मैं आपका दास होना चाहता हूँ। जैसा मैं पहले आपके पिता का दास था, ठीक वैसे ही अब मैं आपका दास होना चाहता हँ’ू -तब इस प्रकार तुम मेरी ओर से अहीतोफे़ल की योजनाएँ व्यर्थ कर दोगे।

35) वहाँ याजक सादोक और एबयातर भी तुम्हारे पास होंगे। तुम राजा के महल में जो कुछ सुनोगे, वह याजक सादोक और एबयातर को बता दोगे।

36) उनके साथ उनका एक-एक पुत्र भी है: सादोक का पुत्र अहीमअस और एबयातर का पुत्र योनातान। तुम वहाँ जो कुछ सुनोगे, वह सब इनके द्वारा मेरे पास पहुँचा दोगे।"

37) इसलिए दाऊद का मित्र हूशय नगर में ठीक उसी समय घुसा, जब अबसालोम उधर से येरूसालेम में प्रवेश कर रहा था।



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