📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 19

1) राजा बहुत व्याकुल हो उठा और द्वारमण्डल के ऊपरी कमरे में जाकर रोने लगा। वह यह कहते हुए इधर-उधर टहलता रहा, "हाय ! मेरे पुत्र अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र अबसालोम! अच्छा होता कि तुम्हारे बदले मैं ही मर गया होता! अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!"

2) योआब को यह सूचना दी गयी, "राजा रोते और अबसालोम के लिए शोक मनाते हैं।"

3) जब लोगों ने यह सुना कि राजा अपने पुत्र के कारण दुःखी है, तो उस दिन समस्त प्रजा के लिए विजयोल्लास शोक में बदल गया।

4) उस दिन सैनिक आँख चुराकर नगर में आये। वे उस सेना के सदृश थे, जो युद्ध से भाग कर लज्जित है।

5) राजा अपना मुँह ढक कर यह कहते हुए ऊँचे स्वर से विलाप करता रहा, "अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!"

6) अब योआब भीतर राजा के पास गया और बोला, "आज आपने अपने उन सब लोगों को नीचा दिखाया है, जिन्होंने आज आपके पुत्र-पुत्रियों और आपकी पत्नी-उपपत्नियों के प्राण बचाये हैं।

7) आप उनको प्यार करते हैं, जो आपसे बैर करते हैं और उनसे बैर करते हैं, जो आपको प्यार करते हैं। आज अपने यह स्पष्ट कर दिया है कि आपके लिए सेनापतियों और सैनिकों का कोई महत्व नहीं है। आज मैं यह जान गया हूँ कि यदि अबसालोम जीवित होता और हम सब मर गये होते, तो यह शायद आप को अच्छा लगता

8) अब उठिए और बाहर जाकर अपने सैनिकों के साथ प्रेम से बातचीत कीजिए; क्योंकि मैं प्रभु की शपथ खाकर कहता हूँ, यदि आप बाहर नहीं निकलेंगे, तो इस रात आपके साथ कोई नहीं रहेगा और यह विपत्ति उन सब विपत्तियों से अधिक भयंकर होगी, जो आप पर बचपन से आज तक पड़ती आयी हैं।"

9) इसके बाद राजा उठा और फाटक पर बैठा। सब लोगों से कहा गया कि राजा फाटक पर बैठै हैं, तो सब लोग राजा के पास आये। सभी इस्राएली अपने-अपने घर भाग गये थे।

10) इस्राएल के सब वंश आपस में परामर्श करते हुए कहते थे, "राजा ने हमें हमारे शत्रुओं से बचाया, उसने हमें फ़िलिस्तियों के हाथों से बचाया, फिर भी उसे अबसालोम के सामने से देश छोड़ कर भागना पड़ा।

11) अब अबसालोम युद्ध में मारा गया, जिसका हमने अपने राजा के रूप में अभिषेक किया था। अब राजा को वापस बुलाने में क्या देर है?"

12) इसके बाद राजा दाऊद ने याजक सादोक और एबयातर को यह सन्देश भेजा, "यूदा के नेताओं से यह कहो-तुम राजा को अपने महल में वापस लाने में सबसे पीछे क्यों हो? राजा को मालूम हो गया है कि इस्राएली क्या करना चाहते हैं।

13) तुम तो मेरे भाई-बन्धु हो, मेरे रक्त-सम्बन्धी हो, फिर तुम राजा को वापस बुलाने में सब से पीछे क्यों हो?

14) तुम अमासा से यह कहो-क्या तुम मेरे रक्त-सम्बन्धी नहीं हो? यदि तुम अब से योआब के स्थान पर मेरे सेनापति नहीं होगे, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये।"

15) इस प्रकार दाऊद ने यूदा के सभी लोगों को अपने पक्ष में कर लिया। उन्होंने राजा से कहलवाया, "अपने सब लोगों के साथ वापस आ जाइए।"

16) इसलिए राजा यर्दन के पास आया। यूदा के लोग राजा से मिलने और उसे यर्दन पार कराने गिलगाल आये।

17) बहूरीम का बेनयामीनवंशी गेरा का पुत्र शिमई भी यूदा के लोगों के साथ राजा दाऊद से मिलने शीघ्र ही आया। उसके साथ एक हज़ार बेनयामीनवंशी थे।

18) साऊल के घराने का सेवक सीबा भी अपने पंद्रह पुत्रों और बीस नौकरों के साथ राजा के पहले ही यर्दन के पास पहुँच गया था।

19) उन्होंने राजा के घराने को पार कराने और उसकी हर प्रकार की सेवा करने घाट पार किया। जब राजा यर्दन पार करने लगा, गेरा का पुत्र शिमई राजा के पैरों पर गिर पड़ा

20) और उसने राजा से निवेदन किया, "स्वामी, मुझे दोषी न मानें। उस अपराध का स्मरण भी न करें, जो आपके इस दास ने उस दिन किया था, जब मेरे स्वामी और राजा येरूसालेम से भागे थे। राजा अब इस बात पर ध्यान न दें।

21) यह दास जानता है कि उसने अपराध किया है। देखिए, आज मैं यूसुफ़ के घराने का सब से पहला व्यक्ति हूँ, जो अपने स्वामी और राजा से मिलने आया हूँ।"

22) सरूया के पुत्र अबीशय ने कहा; "शिमई ने प्रभु के अभिषिक्त को अभिशाप दिया, इसलिए उस को मृत्युदण्ड अवश्य मिलना चाहिए।" लेकिन दाऊद ने कहा, सरूया के पुत्रों! मुझे तुम लोगों से क्या? तुम आज मेरे विरोधी क्यों बन रहे हो? क्या आज इस्राएल में किसी को मृत्युदण्ड देना उचित है?

23) क्या मैं आज यह निश्चिित रूप से नहीं जानता कि मैं इस्राएल का राजा हूँ?"

24) राजा ने शिमई से कहा,"तुम्हें मृत्युदण्ड नहीं मिलेगा" और राजा ने शपथ खा कर उस से यह प्रतिज्ञा की।

25) साऊल का पौत्र मफ़ीबोशेत भी राजा से मिलने आया। राजा के जाने के दिन से उसके सकुशल लौटने के दिन तक उसने अपने पैर नहीं धोये थे। उसने न अपनी दाढ़ी संँवारी थी और न अपने वस्त्र धुलवाये थे।

26) जब वह येरूसालेम से राजा से मिलने आया, तब राजा ने उससे पूछा, "मफ़ीबोशेत, तुम मेरे साथ क्यों नहीं गये थे?"

27) उसने उत्तर दिया, "मेरे स्वामी और राजा! मेरे नौकर ने मुझे धोखा दिया था। आपके इस दास ने उस से कहा था कि मेरे लिए एक गधी कस दो, जिससे मैं सवार हो कर राजा के साथ जा सकूंँ, क्योंकि आपका दास लँगड़ा है

28) और उसने आपके इस दास की चुग़ली मेरे स्वामी और राजा के यहाँ की। लेकिन मेरे राजा और स्वामी स्वर्गदूत-तुल्य हैं, इसलिए जो उचित समझें, वही करें।

29) मेरे स्वामी और राजा की दृष्टि में मेरे दादा के सभी वंशज मृत्युदण्ड के योग्य थे, फिर भी आप अपने इस दास को बुला कर अपनी मेज़ पर ही भोजन करने देते थे। तब राजा से और अधिक माँगने का मुझे अधिकार ही क्या है?"

30) राजा ने उसे उत्तर दिया; "और कुछ कहने की क्या जरूरत है? मैं यह आज्ञा देता हूँ कि तुम और सीबा अपनी भू-सम्पत्ति आपस में बाँट लो।"

31) मफ़ीबोशेत ने राजा को उत्तर दिया, "मेरे स्वामी और राजा सकुशल लौट आये हैं, इसलिए वह सब कुछ ले लें।"

32) गिलआदवासी बरज़िल्लय भी रोगलीम से आया और वह राजा को यर्दन के उस पार पहुँचाने उसके साथ यर्दन तक गया था।

33) बरज़िल्लस बहुत वृद्ध था। वह अस्सी वर्ष का हो चुका था। जब तक राजा महनयीम में रहा, वह उसके लिए भोजन का प्रबन्ध करता था; क्योंकि वह बड़ा धनी था।

34) अब राजा ने बरज़िल्लय से कहा, "मेरे साथ उस पार चलो। मैं येरूसालेम में अपने यहाँ तुम्हारे रहने का प्रबन्ध करूँगा।"

35) लेकिन बरज़िल्लय ने राजा को उत्तर दिया, "मेरे जीवन के कितने वर्ष रह गये, जो अब मैं राजा के साथ येरूसालेम जाऊँ?

36) अब मैं अस्सी वर्ष का हो चुका हूँ, अब मेरे लिए अच्छे बुरे का भेद नहीं रहा। आपका दास जो खाता और पीता है, उस में कोई रस नहीं लेता और वह गायक-गायिकाओं का संगीत भी नहीं सुनता। आपका दास अपने स्वामी और राजा के लिए भार क्यों बने?

37) आपका दास यर्दन पार कर बस थोड़ी दूर तक राजा के साथ जाना चाहता है। राजा मुझे इतना पुरस्कृत क्यों करना चाहते हैं?

38) अपने दास को लौट जाने दीजिए, जिससे अपने पिता और अपनी माता की क़ब्र के पास, अपने ही नगर में उसकी मृत्यु हो। लेकिन यह आपका दास किमहाम है। यही मेरे स्वामी राजा के साथ जायेगा। आप जो उचित समझें, उसके लिए वही करें।"

39) राजा ने उत्तर दिया, "अच्छा, तो किमहाम ही मेरे साथ चले। मैं उसके लिए वहीं करूँगा, जो तुम चाहते हो। तुम मुझ से जो कुछ माँगोगे, मैं तुम्हारे लिए वही करूँगा।"

40) जब सब लोग यर्दन पार कर चुके और राजा भी पार कर चुका, तब राजा ने बरज़िल्लय को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया। इसके बाद वह अपने देश लौट गया।

41) राजा आगे बढ़ कर गिलगाल आया और किमहाम उसके साथ गया। यूदा के सब लोग और इस्राएल के आधे लोग भी राजा के साथ थे।

42) इसके बाद सब इस्राएली राजा के पास आकर पूछने लगे, "यूदा के लोग, हमारे भाई आप को ज़बरदस्ती क्यों ले गये? वे राजा को, उनके सारे परिवार तथा दाऊद के सब साथियों के साथ, यर्दन पार क्यों ले गये?"

43) सब यूदा वालों ने इस्राएलियों को उत्तर दिया, "राजा तो हमारे निकट-सम्बन्धी हैं। तुम इसके लिए क्रुद्ध क्यों हो? क्या हमने राजा के रसद से कुछ खाया-पिया, या उन्होंने हमें कुछ दिया है?"

44) इस पर इस्राएलियों ने यूदा वालों को उत्तर दिया, "राजा में हमारे दस भाग हैं और दाऊद में भी हमारा हिस्सा तुम्हारे हिस्से से अधिक है। तुम लोग हमें तुच्छ क्यों समझते हो? क्या हमने ही अपने राजा को वापस बुलाने की इच्छा सबसे पहले नहीं प्रकट की थी?" यूदा वालों का उत्तर इस्राएलियों के प्रश्न से भी अधिक तीखा था।



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