📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

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अध्याय 01

1) यूदा और येरूसालेम के विषय में यूदा के राजा उज़्ज़ीया, योताम, आहाज़ और हिज़कीया के दिनों में आमोस के पुत्र इसायाह का देखा हुआ दिव्य दृश्य।

2) आकाश! सुनो; पृथवी! ध्यान दो; क्योंकि प्रभु बोला हैः “मैंने पुत्रों का पालन-पोषण किया, किन्तु उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है।

3) बैल अपने मालिक को पहचानता है, गधा अपने मालिक की नाँद जानता है; किन्तु इस्राएल नहीं जानता, मेरी प्रजा नहीं समझती।“

4) धिक्कार इस पापी राष्ट्र को, दोष से लदे लोगों को, अपराधियों की सन्तति को, पथभ्रष्ट पुत्रों को! उन्होंने प्रभु का परित्याग किया, इस्राएल के परमपावन ईश्वर का तिरस्कार किया और उसे पीठ दिखायी।

5) तुम विद्रोह करते रहते हो, तुम्हारे किस अंग पर प्रहार किया जाय? तुम्हारा सारा सिर घायल है, तुम्हारा हृदय टूट गया है।

6) सिर से पैर तक कोई स्थान स्वस्थ नहीं रहा - केवल चोट, साँट और रक्त बहते घाव। उनका न तो मवाद पोंछा गया, न उन पर पट्टी बाँधी गयी और न तेल लगाया।

7) तुम्हारा देश उजाड़ पड़ा है। तुम्हारे नगर जलाये गये हैं। विदेशी तुम्हारे सामने ही तुम्हारी फ़सलें खाते हैं। तुम्हारा देश मानो शत्रुओं द्वारा उजाड़ दिया गया है।

8) सियोन की पुत्री रह गयी है - दाखबारी में झोपड़ी की तरह, ककड़ी के खेत में मचान की तरह, सेना से घिरे नगर की तरह।

9) यदि विश्वमण्डल के प्रभु ने हम में कुछ लोगों को नहीं बचाया होता, तो हम सोदोम और गोमोरा की तरह पूर्ण रूप से नष्ट हो गये होते।

10) सोदोम के शासको! प्रभु की वाणी सुनो। गोमारा की प्रजा! ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो।

11) प्रभु यह कहता है: “तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या? में तुम्हारे मेढ़ों और बछड़ों की चरबी से ऊब गया हूँ। मैं साँड़ों, मेमनों और बकरों का रक्त नहीं चाहता।

12) जब तुम मेरे दर्शन करते आते हो, तो कौन तुम से यह सब माँगता है? तुम मेरे प्रांगण क्यों रौंदते हो?

13) मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिये फिर नहीं आना। तुम्हारे लोबान से मुझे घृणा हो गयी है। अमावस, विश्राम-दिवस और तुम्हारी धर्म-सभाएँ। मैं अन्याय के कारण ये सब समारोह सहन नहीं करता।

14) तुम्हारे अमावस और अन्य पर्वों से मुझे घृणा हो गयी है, ये मेरे लिए असह्य भार बन गये हैं।

15) जब तुम अपने हाथ फैलाते हो, तो मैं तुम्हारी ओर से आँख फेर लेता हूँ। मैं तुम्हारी असंख्य प्रार्थनाओं को अनसुना कर देता हूँ। तुम्हारे हाथ रक्त से रँगे हुए हैं।

16) स्नान करो, शुद्ध हो जाओ। अपने कुकर्म मेरी आँखों के सामने से दूर करो। पाप करना छोड़ दो,

17) भलाई करना सीखो। न्याय के अनुसार आचरण करो, पद्दलितों को सहायता दो, अनाथों को न्याय दिलाओ और विधवाओं की रक्षा करो।“

18) प्रभु कहता है: “आओ, हम एक साथ विचार करें। तुम्हारे पाप सिंदूर की तरह लाल क्यों न हों, वे हिम की तरह उज्जवल हो जायेंगे; वे किरमिज की तरह मटमैले क्यों न हों, वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे।

19) यदि तुम अज्ञापालन स्वीकार करोगे, तो भूमि की उपज खा कर तृप्त हो जाओगे।

20) किन्तु यदि तुम अस्वीकार कर विद्रोह करोगे, तो तलवार के घाट उतार दिये जाओगे।“ यह प्रभु की वाणी है।

21) यह साध्वी नगरी कैसे वेश्या बन गयी है? जहाँ पहले न्याय और धार्मिकता का निवास था, वहाँ आज हत्यारे ही पाये जाते हैं!

22) तेरी चाँदी धातुमल बन गयी है, तेरी अंगूरी पानी से भी पतली हो गयी है।

23) तेरे शासक विद्रोही और चारों के साथी हैं। वे उपहार पसन्द करते और रिश्वत के लोभी हैं। वे अनाथ को न्याय नहीं दिलाते और विधवाओं के मामले नहीं सुनते।

24) इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का सर्वशक्तिमान् ईश्वर यह कहता हैः “मैं अपने विरोधियों को पराजित करूँगा, मैं अपने शत्रुओं से बदला चुकाऊँगा।

25) मैं तुझ पर अपना हाथ उठाऊँगा, मैं तुझे घरिया में गला कर तेरी मैल दूर करूँगा।

26) मैं तेरे न्यायकर्ताओं और मन्त्रियों को पहले-जैसा बना दूँगा। तब तेरा यह नाम होगा: धार्मिक एवं विश्वसनीय नगरी।“

27) न्याय से ही सियोन का और धार्मिकता से उसके निवासियों का उद्वार होगा।

28) किन्तु विद्रोही और पापी नष्ट हो जायेंगे। जो प्रभु का परित्याग करते हैं, उनका सर्वनाश किया जायेगा।

29) जो बलूत वृक्ष तुम लोगों को इतने प्रिय हैं, उनके कारण तुम्हें लज्जित होना पड़ेगा। जिन उद्यानों पर तुम को इतना गौरव था, उनके कारण तुम कलंकित हो जाओगे।

30) तुम उस बलूत के सदृश बनोगे, जिसके पत्ते सूख गये हैं, उस उद्यान के सदृश, जिसे कोई नहीं सींचता।

31) शक्तिशाली व्यक्ति सूखा ईंधन बनेगा और उसकी बनायी प्रतिमा चिनगारी: दोनों एक साथ जल उठेंगे और बुझाने वाला कोई नहीं होगा।



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