📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

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अध्याय 63

1) वह कौन एदोम के बोसरा नगर से आ रहा है? वह लाल और भड़कीले वस्त्र पहने सामर्थ्य और प्रताप से विभूशित है। “वह मैं ही हूँ; मैं न्याय घोषित करता हूँ और उद्धार करने में समर्थ हूँ"।

2) तेरे वस्त्र लाल क्यों हैं? वे अंगूर का कुण्ड रौंदने वाले के वस्त्र-जैसे हैं।

3) “मुझे अकेले ही अंगूर का कुण्ड रौंदना पड़ा। राष्टों में से कोई मेरी सहायता नहीं करना चाहता था। मैंने क्रुद्ध हो कर उन्हें रौंदा, उन्हें अपने प्रकोप में कुचल दिया। उनके रक्त के छींटे मेरे वस्त्रों पर पड़े और वे लाल हो गये;

4) क्योंकि मैंने प्रतिशोध का दिन निश्चित किया था, मेरे उद्धार का वर्ष आ गया था।

5) मैंने सहायक के लिए दृष्टि दौड़ायी, किन्तु कोई नहीं मिला। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सहारा देने वाला कोई नहीं। तब मैंने अपने बाहुबल से विजय प्राप्त की, मेरे क्रोध ने मुझे सहायता दी।

6) मैंने क्रुद्ध हो कर राष्ट्रों को रौंद डाला, मैंने उन्हें अपने प्रकोप में कुचल दिया। मैंने उनका रक्त धरती पर उँड़ेल दिया।“

7) मैं प्रभु के सब उपकारों और उसके महान् कार्यों का बखान करूँगा। उसने हमारे लिए क्या-क्या नहीं किया! उसने अपनी अनुकम्पा तथा अपनी महती कृपा के अनुरूप इस्राएल के घराने के असंख्य उपकार किये।

8) उसने कहा, “वे निश्चय मेरी प्रजा, मेरे पुत्र हैं। वे मेरे साथ विश्वासघात नहीं करेंगे।“ उनके सभी दुःखों में वह उनका उद्धारक बना।

9) उसने किसी स्वर्गदूत को भेज कर नहीं, बल्कि स्वयं आ कर उनकी रक्षा की। अपने प्रेम तथा अपनी अनुकम्पा के अनुरूप उसने स्वयं आ कर उनका उद्धार किया। वह उन्हें गोद में उठा कर प्राचीनकाल से ही सँभालता आ रहा है।

10) फिर भी उन्होंने विद्रोह किया और उसके पवित्र आत्मा को दुःख दिया। इसलिए वह उनका शत्रु हो गया और उसने उनके विरुद्ध युद्ध किया।

11) तब उसकी प्रजा को प्राचीन काल की और उसके सेवक मूसा की याद आयी। “वह ईश्वर अब कहाँ है, जो अपनी भेड़ों के चरवाहे को समुद्र से बाहर निकाल लाया और जिसने उसे अपना पवित्र आत्मा प्रदान किया?

12) जिसने अपने महिमामय सामर्थ्य से मूसा का साथ दिया, अपने लोगों के सामने समुद्र को विभाजित किया और अमर यश प्राप्त किया?

13) जो उसे गहरे जल के उस पार ले गया? वे बिना ठोकर खाये आगे बढ़े, उस घोड़े की तरह, जो मरुभूमि पार करता है,

14) उस चैपाये की तरह, जो घाटी में उतरता है। उस समय प्रभु का आत्मा उनके आगे-आगे-चलता था।“ इस प्रकार तूने अपने नाम की महिमा के कारण अपनी प्रजा का पथप्रदर्शन किया।

15) तू अपने पवित्र और महिमामय निवास स्वर्ग से हम पर दृष्टि डालः अब तेरा उत्साह और तेरे महान् कार्य कहाँ हैं? हम तेरे वात्सल्य और अनुकम्पा से वंचित हैं।

16) प्रभु! तू ही हमारा पिता है; क्योंकि इब्राहीम हमें नहीं जानता और इस्राएल भी हमें नही पहचानता। प्रभु! तू ही हमारा पिता है। हमारा मुक्तिदाता- यही अनन्त काल से तेरा नाम रहा है।

17) प्रभु! तू यह क्यों होने देता है कि हम तेरे मार्ग छोड़ कर भटक जायें और कठोर-हृदय बन कर तुझ पर श्रद्धा न रखें? प्रभु! हमारे पास लौटने की कृपा कर, हम तेरे सेवक और तेरी प्रजा हैं।

18) तेरी पवित्र प्रजा का थोड़े समय तक तेरी विरासत पर अधिकार रहा। हमारे शत्रुओं ने तेरा मन्दिर अपवित्र किया।

19) हमें बहुत समय से ऐसा लग रहा है कि तू हम पर शासन नहीं करता, मानो हम कभी तेरे नहीं कहलाये हों।

19 (अ) ओह! यदि तू आकाश फाड़ कर उतरे! तेरे आगमन पर पर्वत काँप उठें!



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