📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

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अध्याय 38

1) उन दिनों हिज़कीया इतना बीमार पड़ा था कि वह मरने को हो गया। आमोस के पुत्र नबी इसायाह ने उसके यहाँ जा कर कहा, “प्रभु यह कहता है- अपने घरबार की समुचित व्यवस्था करो, क्योंकि तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। तुम अच्छे नहीं हो सकोगे।“

2) हिज़कीया ने दीवार की ओर मुँह कर प्रभु से यह प्रार्थना की,

3) प्रभु! कृपया याद कर कि मैं ईमानदारी और सच्चे हृदय से तेरी सेवा करता रहा और जो तुझे प्रिय है, वही करता रहा“। और हिज़कीया फूट-फूट कर रोने लगा।

4) प्रभु की वाणी इसायाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) “हिज़कीया के पास जा कर कहो- तुम्हारे पूर्वजों का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी और तुम्हारे आँसू देखे। मैं तुम्हारी आयु पन्द्रह वर्ष बढ़ा दूँगा।

6) मैं तुम को और इस नगर को अस्सूर के राजा के हाथ से छुड़ाऊँगा और इस नगर की रक्षा करूँगा।

7) “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा। इसका चिह्न यह होगा-

8) अहाज़ की सीढ़ी पर ढलते हुए सूर्य की छाया देखो। यह छाया सीढ़ी पर उतर रही है। मैं इसे दस सोपान तक ऊपर चढ़ाऊँगा“ और जिस सीढ़ी पर सूर्य उतर चुका था, वहाँ वह दस सोपान तक पीछे हट गया।

9) यूदा के राजा हिज़कीया का गीत। यह उस समय का है, जब वह अपनी बीमारी से अच्छा हो गया था।

10) मैंने कहा, “अपने जीवन के मध्य काल में मुझे जाना पड़ रहा है। मुझे अपने जीवन के शेष वर्ष अधोलोक के फाटक पर बिताने होंगे।“

11) मैंने कहा, “मैं जीवितों के देश में प्रभु को फिर कभी नहीं दूखूँगा। मैं पृथ्वी के निवासियों में किसी को फिर कभी नहीं देखूँगा।

12) चरवाहे के तम्बू की तरह मेरा जीवन उखाड़ा और मुझ से ले लिया गया है। तूने मेरा जीवन इस प्रकार समेट लिया है, जिस प्रकार जुलाहा करघे पर से तागे काट देता है। सुबह से शाम तक तू मुझे तड़पाता है।

13) मैं रात भर पुकारता रहता हूँ। उसने सिंह की तरह मेरी सब हड्डियों को रौंदा है। सुबह से श्याम तक तू मुझे तड़पाता है।

14) मैं अबाबील की तरह चींचीं करता हूँ, कपोत की तरह कराहता हूँ। मेरी आँखें ऊपर देखते-देखते धुँधला रही हैं। प्रभु! मैं कष्ट में हूँ, मेरी सहायता कर।“

15) मैं क्या कहूँ, जिससे वह मुझे उत्तर दे? उसने ही तो यह किया। मेरे दिन दुःख में बीत रहे हैं।

16) प्रभु अपने भक्तों को सुरक्षित रखेगा, उसका आत्मा उन में नवजीवन का संचार करेगा। तू मुझे स्वास्थ्य प्रदान कर पुनर्जीवित करेगा।

17) दुःख मेरे लिए कल्याण बन गया। तूने मेरी आत्मा को विनाश के गर्त में गिरने से बचाया, तूने मेरे सब पापों को अपनी पीछे फेंक दिया।

18) अधोलोक तेरा गुणगान नहीं करता, मृत्यु तेरी स्तुति नहीं करती। जो गर्त में उतरे हैं, उन्हें तेरी सत्यप्रतिज्ञता का भरोसा नहीं।

19) जीवित मनुष्य ही तेरी स्तुति करता है, जैसा कि मैं आज कर रहा हूँ। पिता अपने पुत्रों को तेरी सत्यप्रतिज्ञता का ज्ञान करायेगा।

20) प्रभु! तूने मेरा उद्धार किया। इसलिए हम जीवन भर प्रभु के मन्दिर में वीणा बजाते हुए तेरी स्तुति करेंगे।

21) इसायाह ने कहा, “अंजीर की रोटी ला कर फोड़े पर रख दीजिए और वह अच्छा हो जायेगा“ और राजा अच्छा हो गया।

22) हिज़कीया ने पूछा, “मैं यह कैसे जान सकता हूँ कि मैं फिर प्रभु के मन्दिर जाऊँगा?“



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