📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 08

1) प्रभु ने मुझ से कहा, “एक बड़ा चर्मपत्र लो और उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखो: ’महेर-शालाल-हाशबज़’ (लूट का माल निकट; लूट शीध्र ही) “।

2) मैंने इन विश्वसनीय व्यक्तियों को साक्षी बनाया: याजक ऊरिया और यबेरेक्या के पुत्र ज़कर्या को।

3) इसके बाद मेरा नबिया से संसर्ग हुआ; वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रभु ने मुझ से कहा, “उसका नाम महेर-शालाल-हाशबज़ रखो;

4) क्योंकि इस से पहले कि बच्चा ‘बाप’ और ‘माँ’ कहना सीखे, दमिश्क की सम्पत्ति और समारिया की लूट अस्सूर के राजा के पास ले जायी जायेगी“।

5) प्रभु ने फिर यह कहा,

6) “यह प्रजा श्लिोअह का शान्त जल अस्वीकार करती और रसीन और रमल्या के पुत्र को पसन्द करती है,

7) इसलिए प्रभु अस्सूर के राजा और उसकी महिमा को - फ़रात की प्रचण्ड धारा को नदी के उस पार भेजेगा। वह अपने तल से उठ कर अपने तट के ऊपर उमड़ पड़ेगी।

8) उसकी बाढ़ यूदा को जलमग्न कर देगी। इम्मानूएल! पानी गले तक पहुँच कर तुम्हारा पूरा प्रदेश ढक देगा।“

9) राष्ट्रों! युद्ध का नारा लगाओ - हार खाओगे! पृथ्वी के, सीमान्तों! ध्यान से सुनो। युद्ध की तैयारी करो-हार खाओगे!

10) योजना बनाओ - वह असफ़ल होगी; विचार - विमर्श करो - वह व्यर्थ होगा; क्योंकि ईश्वर हमारे साथ है।

11) प्रभु ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे इस प्रजा के मार्ग पर चलने से रोका। उसने कहा,

12) “ये लोग जिसे षड्यन्त्र कहते हैं, उसे तुम षड्यन्त्र नहीं कहोगे। जिस से वे डरते हैं, उस से तुम नहीं डरोगे और उससे नहीं घबराओगे।

13) तुम सर्वशक्तिमान् प्रभु को ही पवित्र मानोगे, उसी पर श्रद्धा रखोगे, उसी से डरोगे।

14) वह एक परमपावन स्थान होगा। वह इस्राएल के दोनों राज्यों के लिए ठोकर का पत्थर होगा, एक चट्टान ,जिस पर वे फिसल कर गिरते हैं। वह येरूसालेम के निवासियों के लिए जाल और फन्दा बनेगा।

15) बहुत-से लोग ठोकर खायेंगे, गिरेंगे और नष्ट हो जायेंगे, वे जाल में फँस कर पकड़े जायेंगे।“

16) यह साक्ष्य सावधानी से सुरक्षित रखो, मेरे शिष्यों के बीच संहिता पर मुहर लगाओ।

17) प्रभु अब याकूब के धराने से अपना मुख छिपाता है। मैं उसकी प्रतीक्षा करता हूँ। मुझे उसका भरोसा है।

18) मैं और मेरे बच्चे, जिन्हें प्रभु ने मुझे दिये हैं - हम सियोन पर्वत पर निवास करने वाले सर्वशक्तिमान् प्रभु की ओर से इस्राएल में चिह्न और प्रतीक हैं।

19) जब लोग तुम से भूत-प्रेत साधने वालों ओर शकुन विचार करने वालों से परामर्श लेने को कहते हैं, जो फुसफुसाते और गुनगुनाते हैं, तो क्या राष्ट्रों को अपने ईश्वर से परामर्श नहीं लेना चाहिए? जीवितों के लिए मृतकों से क्यों परामर्श लिया जायें?

20) संहिता और साक्ष्य को सुरक्षित रखो! यदि वे उस वाणी के अनुसार नहीं बोलेंगे, तो उन पर ज्ञान का उदय नहीं होगा।

21) वे देश में थके-माँदे और भूखे मारे-मारे फिरेंगे। वे भूख से खीज कर अपने ईश्वर और अपने राजा को कोसेंगे। वे कभी ऊपर की ओर दखेंगे

22) और कभी पृथ्वी की ओर। उन्हें सब जगह यह दिखाई देगा: विपत्ति अन्धकार और निराशाजनक विषाद। किन्तु अन्धकार दूर किया जायेगा।

23) जहाँ पहले विषाद था, वहाँ अन्धकार नहीं होगा। प्रभु ने भूतकाल में ज़बुलोन तथा नफ़्ताली के प्रान्तों को अपमानित होने दिया है, किन्तु भविष्य में यह यर्दन के उस पार, समुद्र के मार्ग को, गैर-यहूदियों की गलीलिया को महिमा प्रदान करेगा।



Copyright © www.jayesu.com