📖 - उत्पत्ति ग्रन्थ

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अध्याय - 43

1) देश में अभी तक जोरों का अकाल था।

2) जब वह अनाज, जो वे मिस्र से लाये थे, समाप्त हो गया, तो उनके पिता ने उन से कहा, ''फिर उधर जाओ और अपने लिए कुछ अनाज ख़रीद कर ले आओ''।

3) यूदा ने उसे उत्तर दिया, ''उस व्यक्ति ने हमें कड़ा आदेश दिया है कि जब तक तुम अपने भाई को अपने साथ न ले आओगे, तब तक मुझ से नहीं मिल सकोगे।

4) इसलिए यदि आप हमारे भाई को हमारे साथ भेजने को तैयार हों, तो हम जा कर आपके लिए अनाज ख़रीद कर ले आयें,

5) लेकिन यदि आप उसे हमारे साथ नहीं भेजेंगे, तो हम वहाँ नहीं जायेंगे। कारण, उस व्यक्ति ने हम से कहा है, ''जब तक तुम अपने भाई को अपने साथ न ले आओगे, तब तक मुझ से नहीं मिल सकोगे।''

6) इस्राएल ने कहा, ''तुमने मेरे साथ यह बुराई क्यों की? और उस व्यक्ति को क्यों बताया कि तुम्हारा एक और भाई हैं?''

7) उन्होंने उत्तर दिया, ''उस व्यक्ति ने हमारे और हमारे परिवार के विषय में पूछताछ की और पूछा कि क्या तुम्हारे पिता जीवित है, क्या तुम्हारा एक भाई और है? इस पर, उसके प्रश्नों के उत्तर में, हमें यह बताना पड़ा। हमें क्या पता था कि वह हमारे भाई को वहाँ ले जाने के लिए हम से कहेगा?''

8) यूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, ''लड़के को आप मेरे साथ जाने दीजिए, जिससे हम चल कर वहाँ जायें और इस प्रकार हम, आप और हमारे बच्चे जीवित रह सकें, मरे नहीं।

9) मैं खुद इसका उत्तरदायी होऊँगा, मैं खुद उसे लौटा कर आपके हाथों में फिर सौंप दूँगा। यदि मैं उसे आपके पास सुरक्षित वापस न ला सका, तो मैं आपके प्रति आजीवन दोषी बना रहूँगा।

10) यदि हमने इतनी देर न की होती, तो निश्चय ही अब तक हम दो बार वहाँ से हो आये होते।''

11) इस पर उनके पिता इस्राएल ने उन से कहा, ''अच्छा, यदि हमें ऐसा ही करना पड़ रहा है, तो करो। अपने बोरों में इस देश की अच्छी-से-अच्छी चीजों में से थोड़ा लेते जाओ और उन्हें उस व्यक्ति को उपहार दो, जैसे कुछ बलसाँ, कुछ मधु, गोंद, गन्धरस, पिस्ते और बादाम।

12) अब दूना रूपया भी लेते जाओ, क्योंकि जो पैसा तुम्हारे बोरों में पाया गया है, उसे लौटा देना चाहिए। हो सकता है कि कोई भूल हो गयी हो।

13) अपने भाई को भी अपने साथ लो और तुरन्त उस व्यक्ति के यहाँ फिर जाओ।

14) सर्वशक्तिमान् ईश्वर ऐसा करे कि तुम उस व्यक्ति के कृपापात्र बन जाओ और वह तुम्हारे उस भाई तथा बेनयामीन को तुम्हारे साथ लौट आने दे। यदि यह बदा है कि मुझे अपनी सन्तान से वंचित होना है, तो मैं अपनी सन्तान से वंचित होऊँगा।''

15) उन लोगों ने उपहार, दूने रूपये और बेनयामीन को साथ ले लिया। वे मिस्त्र के लिए चल पड़े और यूसुफ़ के पास पहुँचे।

16) जब यूसुफ़ ने उनके साथ बेनयामीन को देखा, तो उसने अपने घर के प्रबन्धक से कहा, ''इन लोगों को घर ले जाओ और एक पशु मार कर भोजन तैयार करो, क्योंकि ये लोग दोपहर को मेरे साथ खाना खायेंगे''।

17) उस व्यक्ति ने यूसुफ़ की आज्ञा का पालन किया और वह उन लोगों को यूसुफ़ के घर ले गया।

18) यूसुफ़ के घर लाये जाने के कारण वे लोग भयभीत थे। वे सोचते थे कि हम उस चाँदी के कारण घर ले जाये जा रहे हैं, जो हमारे बोरों में पिछली बार रखी गयी थी। वे लोग हम को घेर कर हम पर आक्रमण करेंगे, हमें दास बनायेंगे और हमारे गधे छीन लेंगे।''

19) इसलिए वे यूसुफ़ के घर के प्रबन्धक के पास आ कर फाटक पर ही उस से कहने लगे,

20) ''महोदय! हम एक बार पहले भी अनाज खरीदने आये थे,

21) और जब हमने सराय पहुँचने पर अपने बोरे खोले, तो प्रत्येक की चाँदी पूरी तौल के अनुसार बोरों के ऊपरी भाग में रखी मिली। इसलिए हम उसे वापस ले आये हैं।

22) अनाज खरीदने के लिए हम और भी चाँदी लाये हैं। हम नहीं जानते कि हमारे बोरों में हमारी चाँदी किसने रखी थी।''

23) उसने उत्तर दिया, निश्चिन्त रहो, घबराओ मत। तुम लोगों और तुम्हारे पिता के ईश्वर ने तुम्हारे बोरों में वह निधि रखी है। मुझे तो तुम्हारी चाँदी मिली थी।'' इसके बाद वह सिमओन को उनके पास लाया।

24) वह व्यक्ति उन लोगों को यूसुफ़ के घर ले गया, उसने उन्हें पैर धोने के लिए पानी दिया और उनके गधों को भी चारा दिलवाया।

25) उन लोगों ने यूसुफ़ के लिए, जो दोपहर को आने वाला था, उपहार तैयार रखे; क्योंकि उन्होंने सुन लिया था कि उन्हें वहीं भोजन करना हैं।

26) जब यूसुफ़ घर आया, तब वे अपने साथ लाये हुए उपहार उसके पास ले गये और उन्होंने उसे भूमि पर झुक कर प्रणाम किया।

27) उसने उनका कुशल-क्षेम पूछते हुए कहा, ''क्या तुम्हारे वृद्ध पिता, जिनके बारे में तुमने मुझ से कहा था, सकुशल हैं? क्या वह अब तक जीवित हैं?''

28) उन्होंने उत्तर दिया, ''आपके दास, हमारे पिता सकुशल हैं। वह अब तक जीवित हैं।'' यह कह कर उन्होंने अपने सिर झुका कर प्रणाम किया।

29) यूसुफ़ ने अपनी आँखें ऊपर उठा कर जब अपने सगे भाई बेनयामीन को देखा, तो पूछा, ''क्या यही तुम्हारा सबसे छोटा भाई हैं, जिसके बारे में तुमने मुझ से कहा था?'' और फिर कहा, ''पुत्र! ईश्वर की तुम पर कृपा बनी रहे!''

30) अपने भाई को देख कर यूसुफ़ का हृदय द्रवित हो उठा। वह जल्दी बाहर जा कर एकान्त में रोने लगा।

31) फिर वह अपने मुँह धो कर वापस आया और अपने मन को वश में रख कर उसने भोजन परोसने की आज्ञा दी।

32) उसे अलग परोसा गया, उन लोगों के लिए अलग और जो उसके साथ खाने वाले मिस्री लोग थे, उनके लिए भी अलग; क्योंकि मिस्री इब्रानियों के साथ भोजन नहीं करते। मिस्री लोग ऐसा करना घृणित समझते हैं।

33) यूसुफ़ के सामने ही उसके भाई अपनी-अपनी अवस्था के क्रम से बिठाये गये-सब से बड़ा पहले, सबसे छोटा सब से पीछे। इस पर वे आश्चर्य से एक दूसरे की ओर देखने लगे।

34) उसकी मेज से थाली ले जा कर उन लोगों को परोसा गया, परन्तु बेनयामीन का हिस्सा बाकी लोगों से पाँच गुना था। वे यूसुफ़ के साथ खा-पी कर तृप्त हो गये।



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