📖 - उत्पत्ति ग्रन्थ

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अध्याय - 45

1) अब यूसुफ़ अपने परिचरों के सामने अपने को वश में नहीं रख सका और पुकार कर उन से बोला, ''सब-के-सब बाहर जाओ''। तो वहाँ कोई और व्यक्ति नहीं था जब यूसुफ़ ने अपने भाइयों को अपना परिचय दिया।

2) किन्तु वह इतने जोर से रोने लगा कि मिस्रियों ने उसका रोना सुन लिया और फिराउन के महल में भी इसकी ख़बर पहुँच गयी।

3) यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, मैं यूसुफ़ हूँ। क्या मेरे पिताजी अब तक जीवित हैं?'' उसके भाई यूसुफ़ को देख कर इतने घबरा गये कि वह उत्तर में एक शब्द भी नहीं बोल सके।

4) यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, ''मेरे और निकट आ जाओ'' और वे उसके पास आये उसने कहा, ''मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूँ, जिसे तुमने मिस्र में बेच दिया था।

5) अब तुम इसलिए न तो शोक करो और न अपने को धिक्कारो कि तुमने मुझे यहाँ बेच दिया; क्योंकि ईश्वर ने तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मुझे तुम से पहले यहाँ भेजा।

6) इस देश में दो वर्ष से अकाल पड़ रहा है और अभी पाँच वर्ष शेष हैं, जिन में न हल जोता जायेगा और न ही फ़सल काटी जा सकेगी।

7) किन्तु ईश्वर ने तुम्हारे पहले ही मुझे भेज दिया था, जिससे देश में तुम्हारे लिए अन्न सुरक्षित रहे और बहुत-से लोगों के प्राण बच जायें।

8) तुमने मुझे यहाँ नहीं भेजा, स्वयं ईश्वर ने भेजा। उसने मुझे फिराउन का पिता, उनके समस्त घर का स्वामी और सारे मिस्र देश का शासक बना दिया।

9) ''मेरे पिता के पास शीघ्र ही जा कर उन से कहो कि आपके पुत्र यूसुफ़ ने यह कहला भेजा है कि ईश्वर ने मुझे सारे मिस्र का शासक बनाया है। मेरे पास तुरन्त आइये।

10) आप गोशेन प्रदेश में बस जायेंगे और इस तरह मेरे निकट रहेंगे - आप, आपके पुत्र, आपके पोते, आपकी भेड़-बकरियाँ, आपकी गाय और आपका सब कुछ।

11) मैं वहाँ आपकी जीविका का प्रबन्ध कर दूँगा, जिससे अकाल के आगामी पाँच वर्षों में न आप को, न आपके परिवार और न आपके साथ रहने वालों को किसी बात की कमी हो।

12) तुम लोग और मेरा भाई बेनयामीन अपनी आँखों से देख रहे हो कि मैं यूसुफ़ हूँ, जो तुम से बोल रहा है।

13) मिस्र में मेरा सम्मान और तुमने जो कुछ देखा है, इसके विषय में मेरे पिता को बताओ और मेरे पिता को शीघ्र ही ले आओ।''

14) फिर वह अपने भाई बेनयामीन को गले लगा कर रोया और बेनयामीन भी उसकी छाती से लिपट कर रोया।

15) इसके बाद उसने अपने सब भाइयों का चुम्बन लिया और रोते हुए उन को गले लगाया। तब उसके भाई उस से बातें करने लगे।

16) फिराउन के महल में भी यह ख़बर पहुँच गयी की यूसुफ़ के भाई आये हैं। इस से फिराउन और उसके दरबारियों को प्रसन्नता हुई।

17) फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ''अपने भाइयों से कहो कि अपने पशुओं को लाद कर कनान देश वापस जाओ।

18) अपने पिता और अपने परिवार के लोगों को मेरे यहाँ ले आओ। मैं तुम्हें मिस्र देश की अच्छी-से-अच्छी चीजें दूँगा और तुम्हें देश की अच्छी-से-अच्छी चीजें खाने को मिलेंगी।

19) उन्हें यह भी आदेश दो कि अपने बाल-बच्चों और पत्नियों के लिए मिस्र देश से कुछ गाड़ियाँ लेते जाओ और अपने पिता के साथ आ जाओ।

20) अपने यहाँ की जायदाद की कोई विशेष चिन्ता मत करना, क्योंकि मिस्र देश की सभी अच्छी-से-अच्छी चीजें तुम्हारी ही हैं।''

21) इस्राएल के पुत्रों ने ऐसा ही किया। फिराउन की आज्ञा मिलने पर यूसुफ़ ने उन्हें गाड़ियाँ दी और उन्हें रास्ते के लिए रसद भी दिया।

22) फिर उसने सब को एक एक नया वस्त्र दिया, परन्तु बेनयामीन को उसने तीन सौ चाँदी के शेकेल और पाँच नये वस्त्र दिये।

23) उसने अपने पिता के लिए मिस्र की अच्छी-से-अच्छी चीजों से लदे हुए दस गधे और अपने पिता की यात्रा के लिए अनाज और रसद से लदी दस गधियाँ भेजीं।

24) इसके बाद उसने अपने भाईयों को विदा किया। जब वे जाने लगे, तो उसने उन्हें चेतावनी दी कि वे यात्रा में झगड़ा नहीं करें।

25) वे मिस्र से चल कर अपने पिता याकूब के पास कनान देश आये।

26) उन्होंने उस से कहा, ''यूसुफ़ अब तक जीवित है। वह सारे मिस्र देश का शासक है।'' यह सुनते ही वह सुन्न रह गया और उसे उन पर विश्वास नहीं हुआ।

27) लेकिन जब उन्होंने उस से यूसुफ़ की सारी बातें कही और जब उसने यूसुफ़ के द्वारा उसे ले जाने के लिए भेजी हुई गाड़ियाँ देखीं, तब उनके पिता याकूब को ऐसा लगा, जैसे उसे फिर से प्राण मिल गये हों।

28) इस्राएल बोल उठा, ''बस, अब विश्वास है कि मेरा पुत्र यूसुफ़ अब तक जीवित है। मैं जा कर उसे अपने मरने से पहले देखूँगा।''



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