📖 - उत्पत्ति ग्रन्थ

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अध्याय - 48

1) कुछ समय बाद यूसुफ़ को ख़बर मिली कि उसका पिता बीमार हैं। इसलिए वह अपने दोनों पुत्रों, मनस्से और एफ्रईम को वहाँ ले गया।

2) याकूब को यह सूचना दिलायी गयी, ''आपका पुत्र यूसुफ़ आपके पास आ गया है''।

3) तब इस्राएल जोर लगा कर पलंग पर उठ बैठा। याकूब ने यूसुफ़ से कहा, ''सर्वशक्तिमान् ईश्वर ने कनान देश के लूज के पास मुझे दर्शन दिये थे और आशीर्वाद देते हुए

4) मुझ से कहा था, 'मैं तुम्हें सन्तति प्रदान करूँगा और तुम्हारे वंशजों की संख्या इतनी बढ़ाऊँगा कि तुम कई राष्ट्रों के मूलपुरुष बनोगे। मैं तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों को यह देश सदा के लिए प्रदान करूँगा।

5) मेरे मिस्र आने के पहले मिस्र देश में पैदा हुए तुम्हारे दोनों पुत्र मेरे ही पुत्र माने जायेंगे। जैसे रूबेन और सिमओन मेरे पुत्र हैं, वैसे एफ्रईम और मनस्से भी मेरे ही पुत्र होंगे।

6) इन दोनों के बाद तुम्हें जो पुत्र उत्पन्न होंगे, वे तुम्हारे ही पुत्र होंगे। उनके भाइयों के नाम जो क्षेत्र निर्धारित होगा, उसी में से उन्हें विरासत मिलेगी।

7) पद्दन से आते समय, कनान देश में, जब मैं एफ्रात से कुछ दूर था, तो मुझे दुःखी छोड़ कर राहेल परलोक सिधारी और मैंने उसे वहीं एफ्रात के, अर्थात् बेतलेहेम के मार्ग के पास दफ़नाया।''

8) जब इस्राएल ने यूसुफ़ के पुत्रों को देखा, तो पूछा, ''ये कौन है?''

9) यूसुफ़ ने अपने पिता को उत्तर दिया, ''ये मेरे पुत्र हैं, जिन्हें ईश्वर ने मुझे यहाँ दिया है।'' तब उसने कहा, ''उन्हें मेरे पास ले आओ; मैं उन्हें आशीर्वाद दूँगा''।

10) बुढ़ापे के कारण इस्राएल की आँखें धुँधली पड़ गयी थीं, इसलिए उसे साफ़ दिखई नहीं देता था। तब वह उन्हें उसके निकट ले गया। उसने उनका चुम्बन किया और गले लगाया।

11) इस्राएल ने यूसुफ़ से कहा, ''मुझे आशा नहीं थी कि मैं तुम्हें फिर देख सकूँगा, परन्तु ईश्वर की कृपा से मैं तुम्हारे बाल-बच्चों को भी देख रहा हूँ।''

12) इस पर यूसुफ़ ने उन्हें उसकी गोद से अलग कर और भूमि पर झुक कर उसे प्रणाम किया।

13) अब यूसुफ़ दोनों को, एफ्रईम को अपने दाहिने अर्थात् याकूब के बायें और मनस्से को अपने बायें अर्थात् याकूब के दाहिने, ले कर याकूब के पास लाया।

14) तब इस्राएल ने अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर उसे छोटे पुत्र एफ्रईम के सिर पर रखा और अपना बायाँ हाथ पहलौठे मनस्से के सिर पर रखा।

15) उसने यूसुफ़ से यह कहते हुए आशीर्वाद दिया, ''ईश्वर, जिसके मार्ग पर मेरे पुरखे इब्राहीम और इसहाक चलते थे, वह ईश्वर, जो जन्म से ले कर आज तक मेरा रक्षक रहा हैं, वह दूत, जिसने मुझे प्रत्येक विपत्ति से बचाया हैं,

16) इन बच्चों को भी आशीर्वाद दे। इन्हीं से मेरा नाम और मेरे पुरखे इब्राहीम और इसहाक के नाम चलते रहें। वे पृथ्वी पर फलते-फूलते रहें और उनके वंशजों की संख्या बढ़ती जाये।''

17) जब यूसुफ़ ने देखा कि उसके पिता ने अपना दाहिना हाथ एफ्रईम के सिर पर रखा है, तो उसे यह अच्छा नहीं लगा। वह अपने पिता का हाथ पकड कर उसे एफ्रईम के सिर पर से हटाना और मनस्से के सिर पर रखना चाहता था।

18) यूसुफ़ ने अपने पिता से कहा, ''पिताजी ऐसा मत कीजिए। यह मेरे पहलौठा पुत्र हैं, इसलिए अपना दाहिना हाथ इसके सिर पर रखिए।''

19) लेकिन पिता ने अस्वीकार करते हुए कहा, ''मैं जानता हूँ, मैं जानता हूँ बेटा! वह भी एक राष्ट्र उत्पन्न करेगा और वह भी महान् बनेगा, लेकिन उसका छोटा भाई उससे अधिक महान् होगा और उसके वंशजों से राष्ट्रों का समूह उत्पन्न होगा।''

20) इसलिए उसने यह कहते हुए उन्हें उस दिन आशीर्वाद दिया, ''इस्राएली लोग तुम्हारा नाम ले कर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे कि 'ईश्वर तुम को एफ्रईम और मनस्से के समान बनायें!'' इस तरह उसने एफ्रईम को मनस्से से पहले रखा।

21) इसके बाद इस्रएल ने यूसुफ़ से कहा, ''मेरी मृत्यु निकट है। परन्तु ईश्वर तुम्हारे साथ रहेगा और तुम लोगों को अपने पूर्वजों के देश में फिर वापस ले जायेगा।

22) मैं तुम को तुम्हारे सब भाइयों के बीच सब से अधिक भूमि देता हूँ, जो मैंने अपनी तलवार और धनुष के बल अमोरियों से ली थी।



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