📖 - पहला इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 28

1) दाऊद ने इस्राएलियों के सब नेताओं, वंशों के अध्यक्षों, राजा की सेवा में नियुक्त विभागों के अधिकारियों, सहस्रपतियों, शतपतियों, सारी राजकीय सम्पत्ति और ढोरों के झुण्डों के अधिकारियों, अपने पुत्रों, राजमहल के पदाधिकारियों, योद्धाओं और वीर सैनिकों-सब की येरूसालेम में एकत्रित किया।

2) राजा दाऊद ने खड़ा हो कर कहा, "मेरे भाईयों और मेरी प्रजा! मेरी बात पर ध्यान दो। मैं बहुत चाहता था कि प्रभु के विधान की मंजूषा के लिए एक भवन बनवाऊँ, जो हमारे ईश्वर का पाँवदान हो और मैंने निर्माण के लिए तैयारियाँ भी की थी।

3) परन्तु ईश्वर ने मुझ से कहा कि तुम मेरे नाम पर मन्दिर नहीं बना सकोगे, क्योंकि तुम योद्धा हो और तुमने खून बहाया है।

4) प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने मेरे सारे कुटुम्ब में मुझे इसलिए चुना कि मैं सदा के लिए इस्राएल का राजा बनूँ। उसने यूदा को नेता चुना और यूदा के घराने में से मेरा परिवार चुना और मेरे पिता के पुत्रों में उसने मुझे सारे इस्राएल का राजा बनाने की कृपा की है।

5) फिर उसने मेरे सब पुत्रों में - प्रभु ने मुझे बहुत-से पुत्र दिये हैं - मेरे पुत्र सुलेमान को चुना है कि वह प्रभु के राज्य के सिंहासन पर बैठ कर इस्राएल पर शासन करे।

6) उसने मुझे यह वचन दिया था कि तुम्हारा पुत्र सुलेमान मेरा मन्दिर और मेरे प्रांगण बनवायेगा, क्योंकि मैंने उसे अपना पुत्र बनाना और उसका पिता होना स्वीकार किया है।

7) यदि वह आज की तरह निष्ठापूर्वक मेरी आज्ञाओं और आदेशों का पालन करता रहेगा, तो मैं उसका राज्य सदा के लिए बनाये रखूँगा।

8) इसलिए अब सब इस्राएलियों के सामने, प्रभु के समुदाय के सामने और हमारे ईश्वर के सुनने में, मैं तुम लोगों से कहता हूँ: प्रभु के समुदाय के सामने और हमारे ईश्वर की सब आज्ञाओं का पालन करने का ध्यान रखो, जिससे इस सुन्दर देश पर तुम्हारा अधिकार बना रहे और तुम इसे अपने वंशजों को उत्तराधिकारस्वरूप सदा देते जाओ।

9) "और मेरे पुत्र सुलेमान! तुम अपने पिता के ईश्वर पर श्रद्धा रखो, सारे हृदय और सारे मन से उसकी सेवा करो; क्योंकि प्रभु सबों के हृदय की थाह लेता और सबों के अन्तरतम विचार पहचानता है। यदि तुम उसे ढूँढ़ोगे, तो वह तुम्हें मिलेगा और यदि तुम उसे छोड़ दोगे, तो वह भी तुम्हें तथा के लिए त्याग देगा।

10) ध्यान रखो, ईश्वर ने तुम्हें इसलिए चुना है कि तुम उसके मन्दिर के रूप में एक भवन बनवाओं। दृढ़ बने रहो और कार्य प्रारम्भ करो।"

11) इसके बाद दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान को मन्दिर के द्वारमण्डप, उसके भवनों, उसके भण्डारों, ऊपरी और भीतरी कमरों तथा प्रायश्चित-फलक के स्थान का नक़्षा दिया।

12) फिर दाऊद ने प्रभु के मन्दिर के प्रांगणों, उसके चारों ओर के उपभवनों, ईश्वर के मन्दिर के कोषों और पवित्र वस्तुओं के कोषों के विषय में अपने मन में जो योजना बनायी थी, उसका नक़्षा सुलेमान को दिया।

13) उसने याजकों और लेवियों के दलों, प्रभु के मन्दिर में उनके सेवा-कार्यों की योजना की व्यवस्था तथा प्रभु के मन्दिर की सेवा के सब पात्रों के सम्बन्ध में सुलेमान को समझाया।

14) उसने सेवा में प्रयुक्त होने वाले सोने के सब पात्रों के लिए आवश्यक सोना उसके सुपुर्द किया और सेवा में प्रयुक्त होने वाले चाँदी के सब पात्रों के लिए आवश्यक चाँदी;

15) फिर सोने के दीपवृक्ष और उनके साथ की दीवटों की तौल के अनुसार सोना और इसी प्रकार चाँदी के दीपवृक्षों और उनके साथ सेवा में उपयोग में आने वाली प्रत्येक दीवट की तौल के अनुसार चाँदी।

16) फिर उसने भेंट की रोटियों की दोनों मेज़ों के लिए सोना दिया और चाँदी की मेज़ों के लिए चाँदी;

17) काँटों, कटोरों और प्यालों के लिए शुद्ध सोना दिया और उनकी तौल के अनुसार सोने के पात्रों के लिए सोना तथा चाँदी के पात्रों के लिए उनकी तौल के अनुसार चाँदी;

18) फिर उसने धूप-वेदी के लिए उसकी तौल के अनुसार शुद्ध सोना दिया। उसने रथ, अर्थात् प्रभु के विधान की मंजूषा के ऊपर अपने पंख फैलाये हुए सोने के केरूबों का नमूना भी दिया।

19) दाऊद ने कहा, "यह सब प्रभु के हाथ के लेख में निरूपित है। उसने मुझे कार्य का पूरा नक़्षा समझाया है।"

20) दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान से फिर कहा, "दृढ़ बने रहो, साहसपूर्वक यह कार्य प्रारम्भ करो। मत डरो और निराश न हो; क्योंकि प्रभु-ईश्वर, मेरा ईश्वर तुम्हारे साथ है। जब तक प्रभु के मन्दिर के सारे सेवा-कार्य समाप्त न हो जायें, तब तक वह न तुम्हें छोड़ेगा और न तुम्हारा परित्याग करेगा।

21) देखो, प्रभु के मन्दिर के सब सेवा-कार्यों के लिए याजकों और लेवियों के दल तैयार हैं। हर प्रकार के कार्य में निपुर्ण कारीगर स्वेच्छा से समस्त निर्माण करने में तुम्हारी सहायता करेंगे। नेता और सब लोग इस कार्य के लिए तुम्हारे आदेशों का पालन करेंगे।"



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