📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 04

1) उसने काँसे की एक वेदी बनवायी। वह बीस हाथ लम्बी, बीस हाथ चैड़ी और दस हाथ ऊँची थी।

2) फिर उसने काँसे का एक हौज़ ढलवाया। वह वृत्ताकार था। वह एक किनारे से दूसरे किनारे तक दस हाथ चैड़ा था। वह पाँच हाथ ऊँचा था और उसकी परिधि तीस हाथ थी।

3) उसके नीचे दो पंक्तियों में चारों तरफ़ बैलों की आकृतियाँ थीं, जो उसकी ढलाई के समय ही उसके साथ-साथ ढाली गयी थीं।

4) वह बारह बैलों पर स्थित था। बैलों में से तीन उत्तर की ओर मुँह किये हुये थे, तीन पश्चिम की ओर, तीन दक्षिण की ओर और तीन पूर्व की ओर। उनके ऊपर हौज़ आधारित था। बैलों का पिछला भाग भीतर की ओर था।

5) हौज़ की धातु की मोटाई चार अंगुल थी। उसका किनारा प्याले के किनारे के समान सोसन-पुष्प के आकार का था। उस में पैंतीस हज़ार लिटर समाता था

6) उसने शुद्धीकरण के लिए दस चिलमचियाँ बनवायीं और उन में से पाँच दाहिनी ओर रखवायीं और पाँच बायीं ओर, जिससे जो कुछ होम-बलि में चढ़ाया जाये, वह पहले उन में धोया जाये। हौज़ याजकों के शुद्धीकरण के लिए था।

7) उसने निर्धारित नियम के अनुसार सोने के दस दीपवृक्ष बनवाये और उन्हें मन्दिर में रखा-पाँच को दाहिनी ओर और पाँच को बायीं ओर।

8) उसने दस मेज़ें बनवायीं और मन्दिर में रखीं-पाँच दाहिनी ओर और पाँच बायीं ओर। इनके अतिरिक्त उसने सोने के सौ बरतन बनवाये।

9) उसने याजकों का प्रांगण और बड़ा प्रांगण बनवाया और प्रांगण के लिए फाटक बनवाये। उसने उन फाटकों को काँसे से मढ़वाया

10) और हौज़ को मन्दिर के दक्षिण-पूर्व में रखवाया।

11) अन्त में हूराम ने पात्र, फावड़ियाँ और कटोरे बनाये। इस प्रकार हूराम ने वह काम पूरा किया, जिसकी आज्ञा उसे राज सुलेमान ने ईश्वर के मन्दिर के लिए दी थीः

12) दो खम्बे, खम्भों के ऊपर के दो गोलाकार स्तम्भषीर्ष और खम्भों के सिरों पर दोनों गोलाकार स्तम्भशीर्षों को सजाने के लिए दो जालियाँ,

13) दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार-खम्भों के दोनों गोलाकार स्तम्भषीर्षों को ढकने के लिए प्रत्येक जाली की दो-दो पंक्तियों में अनार लटके थे।

14) उसने ठेले बनाये और उन ठेलों पर चिलमचियाँ,

15) हौज़ और हौज़ के नीचे बारह बैल।

16) पात्र, फावड़ियाँ, काँटे और उनके साथ अन्य सब सामान, जो हूराम-अबी ने राजा सुलेमान की आज्ञा से प्रभु के मन्दिर के लिए बनाये, परिष्कृत काँसे के थे।

17) राजा ने सुक्कोत और सरेदा के बीच, चिकनी मिट्टी वाली भूमि में, यर्दन के मैदान में उन को ढलवाया।

18) सुलेमान ने उन सब चीज़ों को इतनी अधिक मात्रा में बनवाया कि उनके काँसे की तौल नहीं की जा सकी।

19) सुलेमान ने ईश्वर के मन्दिर के लिए ये सब सामान भी बनवायेः सोने की वेदी, भेंट की रोटियों के लिए मेजें,

20) शुद्ध सोने के दीपवृक्ष और उनके दीये, जो नियमानुसार भीतरी पवित्र-स्थान में जलाये जायें;

21) शुद्ध सोने की बौंड़ियाँ, दीये और चिमटे,

22) शुद्ध सोने की कैंचियाँ, बरतन, लोबान के पात्र और कलछियाँ, मन्दिर के फाटक, परमपवित्र स्थान के भीतरी दरवाजे और मध्य भाग के दरवाजे, जो सभी सोने के थे।



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