📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 34

1) जब योषीया राजा बना, तो वह आठ वर्ष का था। उसने येरूसालेम में इक्तीस वर्ष शासन किया।

2) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है। वह अपने पूर्वज दाऊद के मार्ग पर चलता था और उस से रंचमात्र भी विचलित नहीं हुआ।

3) अपने शासन के आठवें वर्ष, जब वह किशोर था, वह अपने पूर्वज दाऊद के ईश्वर की ओर अभिमुख हो गया। वह बारहवें वर्ष यूदा और येरूसालेम से पहाड़ी पूजा स्थान, अशेरा-देवी के खूँटे और गढ़ी एवं ढली देवमूर्तियाँ हटाने लगा।

4) उसके सामने ही बाल-देवताओं की वेदियाँ ढहा दी गयीं। उसने उन पर अवस्थित धूप-वेदिकाओं को गिरा दिया, अशेरा-देवी के खूँटों और बढ़ी एवं ढली मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और उन लोगों की क़ब्रों पर बिखेर दिया, जिन्होंने उन पर बलि चढ़ायी थी।

5) उसने पुजारियों की अस्थियाँ उन वेदियों पर जला दीं। इस तरह उसने यूदा और येरूसालेम की शुद्धि की।

6) उसने मनस्से, एफ्ऱईम, सिमओन और नफ़्ताली के नगरों में-उनके आसपास के क्षेत्रों में-

7) वेदियों को गिरा दिया। उसने अशेरा-देवी के खूँटों और मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले तथा इस्राएल देश भर की सब धूप-वेदिकाओं को गिरा दिया। इसके बाद वह येरूसालेम लौट गया।

8) अपने शासनकाल के अठारवें वर्ष, जब देश और मन्दिर की शुद्धि हो चुकी थी, उसने असल्या के पुत्र शाफ़ान, नगराध्यक्ष मासेया और यहोआहाज़ के पुत्र अभिलेखी योआह को प्रभु, अपने ईश्वर के मन्दिर का जीर्णोद्धार करने भेजा।

9) उन्होंने महायाजक हिलकीया के पास वह द्रव्य दिया, जो ईश्वर के मन्दिर में लाया गया था और जिसे लेवीवंशी द्वारपालों ने मनस्से, एफ्ऱईम, सारे इस्राएल, सारे यूदा, बेनयामीन और येरूसालेम के निवासियों से प्राप्त किया था।

10) उन्होंने उसे प्रभु के मन्दिर में हो रहे काम का निरीक्षण करने वाले कर्मचारियों को दिया, जिससे वे उसे मन्दिर की मरम्मत और जीर्णोद्धार के लिए ख़र्च करें।

11) उन्होंने उसे बढ़इयों और कारीगरों को दे दिया, जिससे वे गढ़े पत्थर और लकड़ी उन भवनों के लिए ख़रीदें, जिन्हें यूदा के राजाओं ने ध्वस्त हो जाने को छोड़ दिया था।

12) वे लोग अपना काम ईमानदारी से कर रहे थे। लेवी यहत एवं ओबद्या, जो मरारी के वंशज थे और ज़कर्या एवं मषुल्लाम, जो कहात के वंशज थे, उनका निरीक्षण करते थे।

13) कुछ और लेवी, जो वाद्य-यन्त्र बजाने में निपुण थे, बोझा ढोने वालों और विभिन्न काम करने वालों का निरीक्षण करते थे। कुछ अन्य लेवी सचिव, लिपिक और द्वारपाल थे।

14) जब वे उस द्रव्य को, जो प्रभु के मन्दिर में लाया गया था, बाहर निकाल रहे थे, तो जो संहिता प्रभु ने मूसा द्वारा दी थी, उसका ग्रन्थ याजक हिलकीया को मिला।

15) हिलकीया ने सचिव शाफ़ान से कहा, "मुझेे प्रभु के मन्दिर में संहिता का ग्रन्थ मिला है" और हिलकीया ने उस ग्रन्थ को शाफ़ान को दे दिया।

16) इस पर शाफ़ान ग्रन्थ को राजा के पास ले गया। उसने राजा को काम का विवरण देते हुए कहा, "आपके सेवकों को जो कार्य सौंपा गया, वे उसे ईमानदारी से कर रहे हैं।

17) उन्होंने प्रभु के मन्दिर में पाया जाने वाला द्रव्य निकाला और उसे कर्मचारियों और कारीगरों को दे दिया।"

18) सचिव शाफ़ान ने राजा से यह भी कहा, "याजक हिलकीया ने मुझे एक ग्रन्थ दिया है"। तब शाफ़ान ने उसे राजा के सामने पढ़ कर सुनाया।

19) जब राजा ने सुना कि संहिता के ग्रन्थ में क्या लिखा है, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ कर

20) हिलकीया, शाफ़ान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अबदोन, सचिव शाफ़ान और राजा के सेवक असाया को आदेश दिया:

21) तुम लोग जाओ और जो ग्रन्थ मिला है, उसके विषय में मेरी और समस्त इस्राएल एवं यूदा की ओर से प्रभु से परामर्श करो। हमारे पुरखों ने प्रभु की आज्ञाओं का पालन नहीं किया और उस में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार आचरण नहीं किया। इसलिए हम पर प्रभु का बड़ा क्रोध भटक उठा।"

22) उसके बाद हिलकीया राजा द्वारा निर्दिष्ट अन्य व्यक्तियों के साथ नबिया हुल्दा के पास गया। वह वस्त्र-गृह के प्रबन्धक के शल्लूम की पत्नी थी, जो तोकहत का पुत्र और हस्रा का पौत्र था। उस समय वह येरूसालेम के नये मुहल्ले में रहती थी।

23) उसने उनके पूछने पर उन्हें यह उत्तर दिया, "प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का कहना है: तुम उस मनुष्य से, जिसने तुम्हें मेरे यहाँ भेजा है,

24) कहो कि प्रभु का यह कहना है: देखो, मैं इस स्थान पर और इसके निवासियों पर उस ग्रन्थ के उन सब वचनों के अनुसार, जिन्हें यूदा के राजा को पढ़ कर सुनाया गया है, विपत्तियाँ ढाहूँगा;

25) क्योंकि उन लोगों ने मेरा परित्याग किया, अन्य देवों को धूप चढ़ायी और अपने हाथ की बनायी हुई देवमूर्तियों द्वारा मेरा क्रोध प्रज्वलित किया और वह नहीं बुझेगा।

26) यूदा के राजा से, जिसने तुम्हें प्रभु से पूछने के लिए यहाँ भेजा है, यह कहो: प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का कहना है- तुमने जो बातें सुनी हैं,

27) उनके विषय में वह कहता है। जब तुमने सुना कि मैंने इस स्थान और इसके निवासियों के विरुद्ध क्या कहा, तो तुमने हृदय से पश्चात्ताप किया, प्रभु के सामने दीन बने और अपने वस्त्र फाड़ कर मेरे सामने रोते रहे; इसलिए मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी।

28) मैं तुम्हें अपने पूर्वजों से मिलाऊँगा और तुम अपनी क़ब्र में शान्ति-पूर्वक दफ़नाये जाओगे। तुम्हारी आँखें वे सब विपत्तियाँ नहीं देखेंगी, जिन्हें मैं इस स्थान और इसके निवासियों पर ढाहने जा रहा हूँ।" तब उन्होंने जा कर राजा को इसकी सूचना दी।

29) अब राजा ने यूदा और येरूसालेम के सब नेताओें को बुला भेजा।

30) राजा यूदा के सब पुरुषों, येरूसालेम के निवासियों, याजकों, लेवियों और छोटों से ले कर बड़ों तक, सभी लोगों के साथ प्रभु के मन्दिर गया। उसने विधान का ग्रन्थ, जो प्रभु के मन्दिर में पाया गया था, पूरा-पूरा पढ़ सुनाया।

31) राजा ने मंच पर खड़ा हो कर प्रभु के सामने प्रतिज्ञा की कि हम प्रभु के अनुयायी बनेंगे। हम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके आदेशों, नियमों और आज्ञाओं का पालन करेंगे और इस प्रकार इस ग्रन्थ में लिखित विधान की सब बातें पूरी करेंगे।

32) इसके बाद उसके कहने पर येरूसालेम और बेनयामीन के सभी लोगों ने विधान का आज्ञापालन करना स्वीकार किया। येरूसालेम के निवासी ईश्वर के-अपने पूर्वजों के ईश्वर के-विधान के अनुसार चलने लगे।

33) योषीया ने इस्राएल के सब प्रान्तों से सब घृणित वस्तुओं को हटा दिया और इस्राएल के सब लोगों को बाध्य किया कि वे प्रभु, अपने ईश्वर की सेवा करें। वह जब तक जीवित रहा, लोगों ने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर का परित्याग नहीं किया।



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