📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 24

1) जब योआश राजा बना, तो वह सात वर्ष का था उसने येरूसालेम में चालीस वर्ष राज्य किया। उसकी माता का नाम सिब्या था। वह बएर-शेबा नगर की थी।

2) जब तक याजक यहोयादा जीवित रहा, तब तक योआश ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।

3) यहोयादा ने कन्याओं से उसका विवाह कराया, जिन से उसके पुत्र और पुत्रियाँ उत्पन्न हुई।

4) इसके बाद योआश ने प्रभु के मन्दिर की मरम्मत करने का निश्चय किया।

5) उसने याजकों और लेवियों को एकत्रित कर उसे यह आदेश दिया, "यूदा के नगरों में जा कर सब इस्राएलियों से वार्शिक चन्दा इकट्ठा करो, जिससे तुम्हारे ईश्वर के मन्दिर की मरम्मत हो सके। इस कार्य में शीघ्रता करो।" किन्तु लेवियों को कोई जल्दी नहीं थी।

6) इस पर राजा ने प्रधानयाजक यहोयादा को बुला कर उस से कहा, "आपने लेवियों पर क्यों नहीं दबाव डाला कि वे यूदा और येरूसालेम से वह चन्दा ले लें, जिसे प्रभु के सेवक मूसा और इस्राएली समुदाय ने विधान के तम्बू के लिए निश्चित किया था?

7) क्योंकि उस दुष्ट अतल्या और उसके पुत्रों ने ईश्वर के मन्दिर की हालत बिगड़ने दी और प्रभु के मंदिर के सब पात्रों का बाल देवताओं के लिए उपयोग किया।"

8) तब राजा ने एक सन्दूक बनवा कर प्रभु के मन्दिर के द्वार पर बाहर रखा।

9) उसने यूदा और येरूसालेम में घोषित किया कि लोग प्रभु के लिए वह चन्दा दे दें, जिसे ईश्वर के सेवक मूसा ने मरुभूमि में इस्राएलियों के लिए निर्धारित किया था।

10) यह सुन कर नेताओं और समस्त प्रजा को आनन्द हुआ। उन्होंने अपना-अपना चन्दा ला कर उस सन्दूक में डाल दिया।

11) जब लेवी देखते थे कि सन्दूक में अधिक द्रव्य इकट्ठा हो गया है, तो वे उसे उठा कर राजा के सचिव और प्रधानयाजक के एक अधिकारी के पास ले जाते थे, जो उसे खाली कर फिर अपने स्थान पर रखवाते थे। वे प्रतिदिन ऐसा ही किया करते थे और इस प्रकार उन्होंने बहुत द्रव्य एकत्र किया।

12) राजा और यहोयादा उसे उन कर्मचारियों को दिया करते थे, जो प्रभु के मन्दिर में काम करते थे और वे उसे मिस्त्रियों और बढ़इयों तथा लोहे एवं काँसे का काम करने वालों को देते थे, जिससे वे प्रभु के मन्दिर का जीर्णोद्धार करें।

13) उन लोगों ने काम प्रारम्भ किया और भवन की मरम्मत अच्छी तरह होती रही। उन्होंने प्रभु के मन्दिर का जीर्णोद्धार किया और अच्छी तरह से उसकी मरम्मत की।

14) काम समाप्त हो जाने पर वे शेष द्रव्य राजा और यहोयादा के पास ले आये। इसी से वे प्रभु के मन्दिर के लिए सामान बनाते थे, अर्थात् सोने और चाँदी के पात्र और उपकरण, जो मन्दिर की सेवा और होम-बलियों के काम आते थे। जब तक यहोयादा जीवित रहा, प्रभु के मन्दिर में निरन्तर होम-बलियाँ चढ़ायी गयीं।

15) यहोयादा का वृद्धावस्था में, बड़ी पकी उमर में प्राणान्त हुआ। वह मृत्यु के समय एक सौ तीस वर्ष का था।

16) वह दाऊदनगर मे राजाओं के पास ही दफ़नाया गया; क्योंकि उसने इस्राएल के ईश्वर और अपने घराने का बड़ा उपकार किया।

17) यूदा के नेताओं ने यहोयादा की मृत्यु के बाद राजा के पास आ कर उसे दण्डवत् किया। राजा ने उनकी बात मान ली।

18) लोगों ने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर का मन्दिर त्याग दिया और वे अशेरा-देवियो तथा देवमूर्तियों की पूजा करने लगे। इस अपराध के कारण ईश्वर का क्रोध यूदा तथा येरूसालेम पर भड़क उठा।

19) उसने नबियों को भेजा, जिससे वे उन्हें प्रभु के पास वापस ले आयें, किन्तु लोगों ने नबियों का सन्देश सुन कर उस पर ध्यान नहीं दिया।

20) ईश्वर के आत्मा ने याजक यहोयादा क पुत्र ज़कर्या को प्रेरित किया और उसने जनता के सामने खड़ा हो कर कहा, "ईश्वर यह कहता है- तुम लोग क्यों प्रभु की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हो? इस में तुम्हारा कल्याण नहीं है। तुम लोगों ने प्रभु को त्याग दिया, इसलिए वह भी तुम्हें त्याग देगा।"

21) इसके बाद सब लोगों ने मिल कर उसका विरोध किया और राजा के आदेश से उसे प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में पत्थरों से मार डाला।

22) राजा योआश ने ज़कर्या के पिता यहोयादा के सब उपकारों को भुला कर उसके पुत्र ज़कर्या को मरवा डाला। ज़कर्या ने मरते समय यह कहा, "प्रभु देख रहा है और इसका बदला चुकायेगा"।

23) वर्ष के अन्त में अमोरियों की सेना योआश पर आक्रमण करने निकली। उसने यूदा और येरूसालेम में प्रवेश कर जनता के सब नेताओं का वध किया और लूट का सारा माल दमिष्क के राजा के पास भेज दिया।

24) अरामी सैनिकों की संख्या अधिक नहीं थी, फिर भी प्रभु ने एक बहुत बड़ी सेना को उनके हवाले कर दिया; क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के प्रभु-ईश्वर को त्याग दिया था। योआश को भी उचित दंड भोगना पड़ा। जब अरामियों की सेना योआश को घोर संकट में छोड़ कर चली गयी,

25) तो उसके दरबारियों ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रच कर उसे उसके पलंग पर मारा; क्योंकि उसने याजक यहोयादा के पुत्र का रक्त बहाया था। वह मर गया और दाऊदनगर में दफ़नाया गया, किन्तु वह राजाओं के मक़बरे में नहीं रखा गया।

26) उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने वाले ये थेः अम्मोनित, शिमआत का पुत्र ज़ाबाद और मोआबिन शिम्रीत का पुत्र यहोज़ाबाद।

27) उसके पुत्रों का वृत्तान्त, उसके द्वारा एकत्रित किया हुआ चन्दा और प्रभु के मन्दिर का जीर्णोद्धार-सब का वर्णन राजाओं के ग्रन्थ की व्याख्या में लिखा है। उसका पुत्र अमस्या उसकी जगह राजा बना।



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