📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 31

1) पर्व समाप्त होने पर वहाँ उपस्थित सभी इस्राएलियों ने यूदा के नगरों में जा कर पूजा-स्तम्भों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये और अशेरा-देवी के खूँटों केा काट दिया। उन्होंने समस्त यूदा, बेनयामीन, एफ्ऱईम और मनस्से में पहाड़ी पूजा स्थानों और वेदियों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। इसके बाद सब इस्राएली अपने-अपने घर लौट गये।

2) हिज़कीया ने सेवा-कार्य के अनुसार याजकों और लेवियों के दल विभाजित किये। उसने प्रत्येक को उसकी याजकीय या लेवीय सेवा के अनुसार होम एवं शान्ति-बल चढ़ाने, धन्यवाद एवं स्तुति के गीत गाने और मन्दिर के द्वारों पर पहरा देने के लिए नियुक्त किया।

3) उसने प्रभु की संहिता में निर्धारित होम-बलियों, प्रातःकाल और सन्ध्या की बलियों, विश्राम-दिवस, अमावस और पर्वों की होम-बलियों के लिए अपनी निजी सम्पत्ति में से चन्दा दिया।

4) उसने येरूसालेम में रहने वाले लोगों को आज्ञा दी कि वे याजकों और, लेवियों, के लिए निर्धारित भाग दिया करें, जिससे वे अपनी पूरी शक्ति से प्रभु की संहिता के अनुसार कार्य कर सकें।

5) ज्यों ही इस आज्ञा की घोषणा हो गयी, इस्राएली बड़ी उदारता से गेहूँ, अंगूरी, तेल, मधु और खेतों की अन्य सब फ़सलों के प्रथम फल देने आये और प्रचुर मात्रा में सारी उपज का दशमांश लाये।

6) यूदा के नगरों में रहने वाले इस्राएली और यूदावंशी भी गाय-बैलों, भेड़-बकरियों और प्रभु, अपने ईश्वर को अर्पित चढ़ावों का दशमांश ले आये और उन्होंने उनके ढेर लगाये।

7) उन्होंने यह कार्य तीसरे महीने में प्रारम्भ किया और उसे सातवें महीने में पूरा किया।

8) हिज़कीया और पदाधिकारी वे ढेर देखने आये और उन्होंने प्रभु एवं उसकी प्रजा को धन्य कहा।

9) हिज़कीया ने याजकों और लेवियों से जब उन ढेरों के सम्बन्ध में पूछा,

10) तब प्रधानयाजक अज़र्या ने, जो सादोक के घराने का था, उस से कहा, जब से लोग प्रभु के मन्दिर में याजकों का भाग ला रहे हैं, तब से हमें भरपूर भोजन मिला और बहुत बच गया है; क्योंकि प्रभु ने अपनी प्रजा को आशीर्वाद दिया है, इसलिए इतना अधिक शेष रह गया है"।

11) हिज़कीया ने प्रभु के मन्दिर में भण्डार तैयार करने का आदेश दिया। जब वे तैयार हो गया,

12) तब लोग वहाँ याजकों का भाग, दशमांश और चढ़ावे नियमित रूप से लाने लगे। लेवी कोनन्या उनका मुख्य पदाधिकारी था और उसका भाई शिमई द्वितीय अधिकारी।

13) यहीएल, अज़ज़्या, नहत, असाएल, यरीमोत, योज़ाबाद, एलीएल, यिसमक्या, महत और बनाया-ये सब कोनन्या और उसके भाई शिमई के सहायक थे। उन्हें राजा हिज़कीया और ईश्वर के मन्दिर के प्रबन्धक अज़र्या ने नियुक्त किया था।

14) लेवी यिमना का पुत्र कोरे, जो पूर्व द्वार का द्वारपाल था, उन चढ़ावों की देखरेख करता था, जो ईश्वर को स्वेच्छा से अर्पित किये जाते थे, वह ईश्वर को अर्पित चढ़ावे और परमपवित्र बलि-प्रसाद याजकों में बाँटता था।

15) एदेन, मिनयामीन, येशूआ, शमाया, अमर्या और शकन्या उसके सहायक थे। वे याजकों के नगरों में अपने भाइयों के बीच, उनके दलों के अनुसार, छोटों और बड़ों में भेद किये बिना, उनके भाग बाँटते थे।

16) इसके अतिरिक्त वे उन नामांकित पुरुषों को भी देते थे, जो तीन वर्ष और उससे अधिक के थे और उन सब को भी, जो प्रतिदिन अपने दलों के क्रमानुसार अपनी सेवा- कार्य करने आते थे।

17) याजकों का नामांकन उनके घरानों के अनुसार किया जाता था, जब कि उन लेवियों का नामांकन उनके सेवा- कार्य और दल के अनुसार किया जाता था, जो बीस वर्ष और उस से अधिक के थे।

18) नामांकन में पूरा परिवार, अर्थात् सब छोटे बच्चे, पत्नियाँ, पुत्र और पुत्रियाँ सम्मिलित थे, क्योंकि वे बड़ी ईमानदारी से अपना पवित्र सेवा-कार्य सम्पन्न करते थे।

19) उन हारूनवंशी याजकों के लिए, जो अपने नगरों के चरागाहों पर रहते थे, प्रत्येक नगर में ऐसे लोग नियुक्त किये गये थे, जो याजकों में से प्रत्येक पुरुष को और सभी नामांकित लेवियों को उनके भाग दें।

20) हिज़कीया ने यूदा भर में यही किया। उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित, न्यायपूर्ण और धर्मानुसार था।

21) वह ईश्वर के मन्दिर की सेवा और संहिता एवं आज्ञाओं के पालन के लिए जो भी करता था, उस में वह सच्चे हृदय से अपने ईश्वर की खोज करता था और इसलिए उसे इस में सफलता मिलती थी।



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