📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 30

1) इसके बाद हिजकीया ने सारे इस्राएल और यूदा को येरूसालेम में प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का पास्का-पर्व मनाने का निमन्त्रण दिया। उसने एफ्ऱईम और मनस्से के पास भी पत्र भेज दिये।

2) राजा, उसके पदाधिकारियों और येरूसालेम में एकत्रित सारे समुदाय ने निश्चय किया कि पास्का का पर्व दूसरे महीने में मनाया जाये।

3) वह नियत समय पर मनाया नहीं जा सका था, क्योंकि याजकों ने पर्याप्त संख्या में अपने को पवित्र नहीं किया था और लोग येरूसालेम में इकट्ठे नहीं हुए थे।

4) राजा और सारे समुदाय को यह निश्चय अच्छा लगा।

5) अतः उन्होंने निश्चित किया कि बएर-षेबा से ले कर दान तक इस्राएल भर में यह घोषित कर दिया जाये कि लोग आ कर प्रभु, इस्राएल के ईश्वर के लिए येरूसालेम में पास्का मनायें; क्योंकि लोगों ने उसे संहिता के अनुसार बड़ी संख्या में नहीं मनाया था।

6) दूत राजा और उसके पदाधिकारियों से लिखी चिट्ठियाँ ले कर इस्राएल और यूदा भर में चले गये। राजा की आज्ञा इस प्रकार थी: "इस्राएलियों! तुम प्रभु, इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के ईश्वर की और लौट आओ और वह तुम्हारे पास लौटेगा, जो अस्सूर के राजाओं के हाथ से बच गये हो।"

7) तुम अपने पूर्वजों और भाइयों-जैसे मत बनो, जिन्होंने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर के साथ विश्वासघात किया और प्रभु ने उन्हें नष्ट हो जाने दिया, जैसा कि तुम देखते हो।

8) अब तुम अपने पूर्वजों-जैसे हठी बने मत रहो। प्रभु की ओर अपने हाथ उठाओ। उसके मन्दिर आ जाओ, जिसे उसने सदा के लिए पवित्र किया है। प्रभु, अपने ईश्वर की सेवा करो, जिससे उसकी क्रोधाग्नि तुम से दूर हो जाये।

9) यदि तुम प्रभु के पास लौटेगे, तो तुम्हारे भाई और पुत्र उन लोगों की दृष्टि में कृपापात्र बनेंगे, जिन्होंने उन को बन्दी बनाया है और वे लौट कर इस देश में आ सकेंगे; क्योंकि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर कृपालु और करुणामय है। यदि तुम उसकी ओर अभिमुख हो जाओगे, तो वह अपना मुँह तुम से नहीं मोडेगा।"

10) उन दूतों ने ज़बुलोन तक एफ्ऱईम और मनस्से प्रान्त के सब नगरों का भ्रमण किया, किन्तु लोगों ने उनकी हँसी उड़ायी और उनका तिरस्कार किया।

11) आशेर, मनस्से और ज़बुलोन के कुछ लोग दीनतापूर्वक येरूसालेम आये,

12) किन्तु ईश्वर के विधान से यूदा के सब लोगों ने एकमत हो कर प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और राजा और पदाधिकारियों द्वारा दी गयी आज्ञा का पालन किया।

13) अतः दूसरे महीने में बेख़मीर रोटियों का पर्व मनाने के लिए बहुत-से लोग येरूसालेम में एकत्रित हुए। वह एक अत्यन्त विशाल समुदाय था।

14) उन्होंने येरूसालेम से वेदियों और सब धूप-वेदियों को हटाया और उन्हें केद्रोन नाले में फेंक दिया।

15) इसके बाद उन्होंने दूसरे महीने के चैदहवें दिन पास्का के बलि-पशु का वध किया। इस पर याजकों और लेवियों ने लज्जा का अनुभव किया और उन्होंने अपने को पवित्र कर प्रभु के मन्दिर में होम-बलि चढ़ायी।

16) इसके बाद वे ईश्वर-भक्त मूसा की संहिता में निर्धारित नियमों के अनुसार अपने-अपने निश्चित स्थान पर पहुँच गये। याजकों को लेवियों के हाथ जो रक्त मिला, उन्होंने उसे अर्पित किया।

17) इस समुदाय में बहुत से ऐसे लोग थे, जिन्होंने अपने को पवित्र नहीं किया था। इसलिए लेवियों ने उनके नाम पर, जो अब तक प्रभु को बलि चढ़ाने के लिए पवित्र नहीं हुए थे, पास्का के पशुओं का वध किया;

18) क्योंकि बहुत-से लोगों ने-विशेष कर एफ्ऱईम, मनस्से, इस्साकार और जुबलोन के लोगों ने-अब तक अपने को पवित्र नहीं किया था और संहिता के नियम के विरुध्द पास्का का मेमना खाया था। हिज़कीया ने उनके लिए यह कहते हुए प्रार्थना की: "दयालु प्रभु

19) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को क्षमा करे, जो सच्चे हृदय से प्रभु की ओर अभिमुख हो गया है, यद्यपि उसने पवित्र स्थान के नियमों के अनुसार अपने को पवित्र नहीं किया"।

20) प्रभु ने हिज़कीया की प्रार्थना सुनी और लोगों को हानि से बचाया।

21) इस प्रकार येरूसालेम में आये हुए इस्राएली सात दिन तक बड़े आनन्द के साथ बेख़मीर रोटियों का पर्व मनाते रहे। लेवी और याजक प्रतिदिन ऊँचे स्वर में प्रभु का स्तुतिगान करते थे।

22) हिज़कीया ने सब लेवियों को प्रोत्साहित किया, जो समझदारी से प्रभु की सेवा करते थे। लोग सात दिन तक प्रसाद खाते रहे, शान्ति-बलियाँ चढ़ाते और प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर का स्तुतिगान करते थे।

23) इसके बाद सारे समुदाय ने तय किया कि वे और सात दिन तक पर्व मनाये। अतः वे और सात दिन आनन्द के साथ पर्व मनाते रहे।

24) यूदा के राजा हिज़कीया ने जन समुदाय को एक हज़ार बछड़े और सात हज़ार भेड़ें ओर अधिकारियों ने उसे एक हज़ार बछड़े और दस हज़ार भेड़ें दी थीं। याजकों ने अपने को बड़ी संख्या में पवित्र किया।

25) यूदावंशियों का सारा समुदाय, याजक, लेवी और इस्राएल से आया हुआ सारा समुदाय और वे ग़ैर-यहूदी प्रवासी भी आनन्दित थे, जो इस्राएल से आये थे, अथवा यूदा में रहते थे।

26) येरूसालेम में बड़ा उल्लास छाया हुआ था, क्योंकि इस्राएल के राजा दाऊद के पुत्र सुलेमान के दिनों से ऐसा समारोह येरूसालेम में कभी नहीं हुआ था।

27) अन्त में लेवीवंशी याजकों ने खड़ा हो कर लोगों को आशीर्वाद दिया। ईश्वर ने उनकी वाणी सुनी और उनकी प्रार्थना स्वर्ग तक, उसके निवास तक पहुँची।



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