📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 09

1) ओह! यदि उजाड़खण्ड में तेरी अपनी सराय होती! तो मैं अपने लोगों को छोड़ कर उनके यहाँ से भाग जाता; क्योंकि वे सब-के-सब व्यभिाचरी हैं और विश्वासघातियों के दल में सम्मिलित हो गये हैं।

2) “वे अपनी जिह्वा को धनुष बना कर झूठ और कपट के बाण छोड़ते हैं। वे पाप-पर-पाप करते जाते हैं, और मुझे जानना नहीं चाहते।“ यह प्रभु की वाणी है।

3) “तुम अपने साथी से सावधान रहो और अपने भाइयों पर विश्वास मत करो; क्योंकि हर भाई कपटी बन गया है और हर साथी दूसरे की निन्दा करता है।

4) हर व्यक्ति अपने साथी को धोखा देता है और कोई सत्य नहीं बोलता। उन्होंने अपनी जिह्वा को झूठ की शिक्षा दी है। वे इतने दुष्ट बन गये कि पश्चाताप नहीं कर सकते हैं।

5) वे अत्याचार-पर-अत्याचार, कपट-पर-कपट करते जाते हैं और मुझे जानना नहीं चाहते।“ यह प्रभु की वाणी है।

6) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः “मैं घरिया में उनका परिष्कार और जाँच करूँगा। अपने प्रजा जनों के पाप के कारण मैं उनके साथ और क्या कर सकता हूँ?

7) उनकी जिह्वा घातक बाज-जैसी है। वे कपटपूर्ण बातें करते हैं। हर व्यक्ति अपने पड़ोसी से शान्ति की बात करता है, किन्तु अपने हृदय में उसके लिए जाल रचता है।

8) क्या मैं इसके लिए उन्हें दण्ड न दूँ? क्या मैं ऐसे राष्ट्र से प्रतिशोध न लूँ? यह प्रभु की वाणी है।

9) मैं पर्वतों के लिए रोता और विलाप करता हूँ, मैं मैदान के चारागाहों के लिए शोक मनाता हूँ; क्योंकि वे उजाड़ पड़े हैं, वहाँ कोई नहीं गुज़रता, वहाँ झुण्डों की आवाज़ नहीं सुनाई देती, पक्षी और गाय-बैल, सब-के-सब भाग गये हैं।

10) “मैं येरूसालेम को खँडहरों का ढेर और गीदड़ों की माँद बना दूँगा। मैं यूदा के नगरों को उजाड़ कर निवासियों से शून्य बना दूँगा।“

11) “कौन इतना समझदार है कि वह यह समझे? प्रभु किससे बोला कि वह यह बता सकेः इस देश का विनाश क्यों हुआ? यह क्यों मरुभूमि की तरह उजाड़ पड़ा है और क्यों इस से हो कर कोई नहीं जाता?

12) प्रभु ने कहा, “यह इसलिए हुआ कि ये उस संहिता का परित्याग करते हैं, जिसे मैंने उन्हें दिया था; ये मेरी वाणी की अवज्ञा करते और मेरी संहिता का पालन नहीं करते।

13) ये अपनी हठधर्मी में अपनी राह चलते हैं। ये बाल-देवताओं के अनुयायी बन गये हैं, जैसा कि इनके पूर्वजों ने इन्हें सिखाया है।“

14) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: “मैं इन्हें चिरायता खिलाऊँगा और विष मिला हुआ पानी पिलाऊँगा।

15) मैं इन्हें ऐसे राष्ट्रों में बिखेर दूँगा, जिन्हें न तो ये जानते हैं और न इनके पूर्वज जानते थे और मैं तलवार ले कर इनका तब तक पीछा करूँगा, जब तक मैंने इनका सर्वनाश नहीं कर दिया हो।“

16) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः “विलाप करने वाली स्त्रियों को बुलाओ। वे यहाँ एकत्र हो जायें।

17) वे शीघ्र ही आ जायें और हमारे लिए शोकगीत गायें, जिससे हमारी आँखों में आँसू उमड़ पड़े और हमारी पलकों से जलधाराएँ बह निकलें।

18) सियोन से विलाप का स्वर सुनाई दे रहा है, ’हाय! हमारा सर्वनाश हो गया है। हमारा कलंक कितना बड़ा है! हमें निर्वासित किया जा रहा है। हमें अपने घरों से निकाला जा रहा है’।

19) महिलाओं! प्रभु की वाणी सुनो, उसकी बातों पर ध्यान दो। अपनी पुत्रियों को शोकगीत सिखाओ, अपनी सखियों को विलाप का गीत सिखाओ;

20) क्योंकि मृत्यु हमारी खिड़कियों के अन्दर आ गयी है। वह हमारे किलों में पहुँच गयी है। वह गलियों में बच्चों का और चैकों में हमारे युवकों का वध कर रही है।

21) “मनुष्यों की लाशें खाद की तरह खेतों में पड़ी हैं- लुनने वाले के पीछे पूलों की तरह, जिन्हें कोई एकत्र नहीं करता।“

22) प्रभु यह कहता हैः “प्रज्ञ अपनी प्रज्ञा पर गर्व नहीं करे। बलवान् अपने बल पर दम्भ नहीं करे और धनवान् अपनी सम्पत्ति पर घमण्ड नहीं करे।

23) यदि कोई गर्व ही करना चाहे, तो वह इस बात पर गर्व करे कि वह मुझे जानता है और यह समझता है कि मैं वह प्रभु हूँ, जो पृथ्वी पर दया, न्याय और धार्मिकता बनाये रखता है; क्योंकि मुझे ये बातें प्रिय हैं।“ यह प्रभु की वाणी है।

24) प्रभु यह कहता हैः “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा, जिनका खतना हो चुका है, किन्तु जो वास्तव में बेख़तना है ;

25) मिस्र, यूदा, एदोम, अम्मोन और उजाड़खण्ड में रहने वालों को, जो अपनी कनपटियों के केश काटते हैं: ये सब लोग बेख़़तना हैं और इस्राएलियों के हृदय भी बेखतना हैं।“



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