📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 16

1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी:

2) “तुम को यहाँ न तो विवाह करना चाहिए और न पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न करना“ ;

3) क्योंकि इस देश में उत्पन्न होने वाले पुत्र-पुत्रियों, उन्हें जन्म देने वाली माताओं और उनके जन्मदाता पिताओं के विषय में प्रभु यह कहता है,

4) “वे भूख से पीड़ित हो कर मर जायेंगे, उनके लिए न तो कोई शोक मनायेगा और न कोई उनका दफ़न करेगा। वे खेतों में खाद की तरह पड़े रहेंगे। तलवार और अकाल से उनका विनाश होगा और उनके शव आकाश के पक्षी और पृथ्वी के पशु खायेंगे।“

5) क्योंकि प्रभु यह कहता है, “तुम शोक मनाने वाले किसी घर में प्रवेश मत करना, किसी के दफ़न में सम्मिलित मत होना और उन लोगों से सहानुभूति मत रखना; क्योंकि मैंने इस प्रजा को प्रदत्त अपना आशीर्वाद, अपनी कृपा और अपनी अनुकम्पा को वापस ले लिया“। यह प्रभु कि वाणी है।

6) “इस देश में छोटे-बड़े, सब मरेंगे। न तो इन्हें कोई दफ़नायेगा, न अपने को काट कर या सिर मूँड़ कर कोई शोक मनायेगा।

7) जो किसी मृतक के लिए- चाहे वह उसका पिता हो या माता- शोक मना रहा है, उसे सान्त्वना देने के लिए न तो उसे कोई भोजन देगा और न पेय।

8) “तुम उत्सव मनाने वालों के घर में प्रवेश मत करना और उन लोगों के साथ बैठ कर मत खाना-पीना ;

9) क्योंकि सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: तुम्हारी आँखों के सामने, तुम्हारे जीवनकाल में ही, मैं इस देश में आनन्द एवं उल्लास की ध्वनि और वर-वधू का गीत बन्द कर दूँगा।

10) “जब तुम इन लोगों से ये बातें कहोगे और ये तुम से पूछेंगे: “प्रभु ने हम पर इतनी बड़ी विपत्ति ढाहने का निश्चय क्यों किया है? हमने अपने प्रभु-ईश्वर के विरुद्ध कौन-सा अपराध और कौन-सा पाप किया है?

11) तो तुम इन से कहोगे, ’प्रभु कहता है: यह इसलिए कि तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे त्याग दिया। उन्होंने पराये देवताओं के अनुयायी बन कर उनकी सेवा और पूजा की। उन्होंने मुझे त्याग दिया और मेरी संहिता का पालन नहीं किया।

12) तुम लोग अपने पूर्वजों से भी अधिक बुरा आचरण करते हो; तुम लोगों में प्रत्येक व्यक्ति हठपूर्वक बुराई करता रहता; कोई मेरी बात नहीं सुनता।

13) इसलिए मैं तुम लोगों को इस देश से निकाल कर एक अज्ञात देश में निर्वासित करूँगा, जिसे तुम्हारे पूर्वज भी नहीं जानते थे। वहाँ तुम दिन-रात अन्य देवताओं की सेवा करोगे और मैं तुम्हारी चिन्ता नहीं करूँगा।“

14) प्रभु यह कहता है, “देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब लोग यह नहीं कहेंगे, ’उस जीवन्त ईश्वर के नाम, जो मिस्र से इस्राएलियों को निकाल लाया’,

15) बल्कि यह कहेंगे, ’उस जीवन्त ईश्वर के नाम, जो इस्राएलियों को उत्तरी देश और अन्य सब देशों से निकाल लाया, जहाँ उसने उन्हें निर्वासित किया था’; क्योंकि मैं उन्हें उस भूमि में वापस ले जाऊँगा, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।“

16) प्रभु यह कहता है, “देखो, मैं बहुत-से मछुओं को बुला भेजूँगा; वे उन्हें पकड़ेगें। इसके बाद मैं बहुत-से शिकारियों को बुला भेजूँगा, जो हर पर्वत, हर पहाड़ी और चट्टान की दरारों में उनका शिकार करेंगे।

17) मेरी आँखें उनके समस्त आचरण पर टिकी हुई हैं; मुझ से कुछ छिपा नहीं है। मैं उनका प्रत्येक अपराध देखता हूँ।

18) मैं उन्हें उनके अपराधों और पापों का दुगुना दण्ड दूँगा, क्योंकि उन्होंने मेरे देश को अपनी मूर्तियों की लोथों से दूषित किया और मेरी विरासत को अपनी घृणित देवमूर्तियों से भर दिया है।“

19) प्रभु! मेरे बल और मेरे गढ़! विपत्ति के समय मेरे आश्रय! पृथ्वी के सीमान्तों से राष्ट्र, यह कहते हुए तेरे पास आयेंगे, “हमारे पूर्वजों के पास झूठे देवता थे, निरर्थक देवमूर्तियाँ, जिन से कोई लाभ नहीं।

20) क्या मनुष्य अपने लिए देवता बना सकता है? वे देवता होते ही नहीं!“

21) “इसलिए मैं उन्हें शिक्षा प्रदान करूँगा। इस बार मैं उन पर बना बाहुबल प्रकट करूँगा और वे जान जायेंगे कि मेरा ही नाम प्रभु है।



Copyright © www.jayesu.com