📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 32

1) यूदा के राजा सिदकीया के दसवें वर्ष, अर्थात् नबूकदनेज़र के अठारहवें वर्ष यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी।

2) उस समय बाबुल के राजा की सेना येरूसालेम पर घेरा डाले पड़ी थी और नबी यिरमियाह यूदा के राजभवन के रक्षादल के प्रांगण में बन्दी था;

3) क्योंकि यूदा के राजा सिदकीया ने यह कह कर उसे बन्दी बनाया था, “तुम यह भवियवाणी क्यों करते होः प्रभु कहता है- मैं यह नगर बाबुल के राजा के हाथ देता हूँ और वह इसे अधिकार में कर लेगा।

4) यूदा का राजा सिदकीया खल्दैयियों के हाथ से नहीं बच सकेगा, बल्कि वह निश्चय ही बाबुल के राजा के अधीन हो जायेगा। वह उसके सामने लाया जोयेगा, उस से बातें करेगा और उसे अपनी आँखों से देखेगा

5) और वह सिदकीया को बाबुल ले जायेगा और वह तब तक वहाँ रहेगा, जब तक मैं उसके पास नहीं आता। यह प्रभु की वाणी है। तुम खल्दैयियों से कितना ही युद्ध क्यों न करो, तुम्हें कोई सफलता नहीं मिलेगी।“

6) यिरमियाह ने कहा, “मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी हैः

7) तुम्हारे चाचा शल्लूम का पुत्र हनमएल तुम्हारे पास आ कर यह कहेगा- ’आप मेरी अनातोत वाली भूमि खरीद लें, क्योंकि उसे ख़रीदने का अधिकार आप को ही है’।

8) तब, जैसा कि प्रभु ने कहा था, मेरा चचेरा भाई हनमएल रक्षादल के प्रांगण में मेरे पास आया और मुझ से यह बोला- ’बेनयामीन देश की अनातोत वाली भूमि खरीद लें, क्योंकि उसके स्वामित्व और ख़रीदारी का अधिकार आप को ही है। उसे अपने लिए ख़रीद लें।“ तब मैं यह जान गया कि वह वाणी प्रभु की ही थी

9) और मैंने अपने चचेरे भाई हनमएल से अनातोत वाली भूमि मोल ले ली और उसे सत्रह शेकेल चाँदी तौल कर दी।

10) मैने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये, उस पर मुहर लगायी, उसे साक्षी लोगों द्वारा प्रमाणित कराया और तराजू पर तौल कर दाम दे दिया।

11) मैंने मुहरबन्द पट्टा-जिस पर स्वामित्य और शर्तों का उल्लेख था- और खुला पट्टा लिये और

12) अपने चचेरे भाई हनमएल, जिन व्यक्तियों ने पट्टे पर हस्ताक्षर किये थे, उन साक्षियों, तथा जो रक्षा-दल के प्रांगण में बैठे थे, उन सभी यहूदियों के सामने वे पट्टे महसेया के पुत्र नेरीया के बेटे बारूक को दे दिये।

13) मैंने उनके सामने बारूक को ये निर्देश दिये,

14) “विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः ये दस्तावेज लो। मुहरबन्द और खुला, दोनों पट्टे लो और इन्हें मिट्टी के एक पात्र में रख दो, जिससे ये लम्बे समय तक सुरक्षित रहें;

15) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः इस देश में घरों, खेतों और दाखबारियों की खरीद-बिक्री फिर होगी।“

16) नेरीया के पुत्र बारूक को पट्टा देने के बाद मैंने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना कीः

17) “प्रभु-ईश्वर! तूने ही अपने महान् सामर्थ्य और बाहुबल से स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की है। तेरे लिए कुछ भी कठिन नहीं है।

18) तू असंख्य लोगों पर कृपा करता है, किन्तु पूर्वजों के पापों का बदला उनकी सन्तति से लेता है। महान् और शक्तिशाली ईश्वर! जिसका नाम विश्वमण्डल का प्रभु है,

19) जिसकी योजनाएँ महान् और कार्य शक्तिशाली हैं; जिसकी आँखें मनुष्यों की सभी गतिविधियों को देखती रहती हैं और जो प्रत्येक मनुष्य को उसके आचरण और कर्मों के फल के अनुसार प्रतिदान देता है;

20) जिसने मिस्र देश में चिह्न और चमत्कार दिखाये हैं और आज तक इस्राएल तथा समस्त मानवजाति में दिखाता रहा है और अपनी कीर्ति स्थापित की है, जो आज भी विद्यमान है !

21) तू अपनी प्रजा इस्राएल को चिन्हों और चमत्कारों के साथ, सुदृढ़ हाथ और बाहुबल से, भारी आतंक प्रदर्शित कर मिस्र देश से निकाल लाया था।

22) तूने उन्हें यह देश दिया, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जिसे देने का वचन उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक दिया था और

23) उन्होंने यहाँ आ कर इस पर अधिकार किया। किन्तु उन्होंने तेरी बात नहीं मानी और न तेरे विधान का अनुसरण किया। उन्होंने तेरे आदेशों का कुछ भी पालन नहीं किया। इसलिए तूने उन पर यह विपत्ति ढाही है।

24) देख, नगर पर विजय पाने के लिए उसकी मोरचाबन्दी की जा रही है। तलवार, अकाल और महामारी के कारण यह नगर खल्दैयियों के हाथ चला जा रहा है, जो इस पर आक्रमण कर रहे हैं। तूने जो कहा था, वही हो रहा है और तू उसे देख रहा है।

25) यह नगर खल्दैयियों के हाथ चला जा रहा है, तब भी प्रभु-ईश्वर! तूने मुझे यह कहा है, ‘दाम दे कर यह भूमि खरीद लो और साक्षियों से हस्ताक्षर करा लो’।“

26) इस पर यिरमियाह को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः

27) “मैं, प्रभु, सब शरीरधारियों का ईश्वर हूँ। क्या मेरे लिए कुछ असम्भव है?

28) इसलिए प्रभु यह कहता है-’मैं यह नगर खल्दैयियों और बाबुल के राजा नबूकदनेज़र के हाथ दे रहा हूँ, जो इस पर अधिकार करेगा।

29) वे खल्दैयी लोग, जो इस नगर के विरुद्ध लड़ रहे हैं, यहाँ आ कर इस नगर में आग लगायेंगे और इसे उन घरों के साथ भस्म कर देंगे, जिनकी छतों पर बाल-देवता को धूप चढ़ायी गयी थी और अन्य देवताओं को अर्घ अर्पित किया गया था, जिससे मेरा क्रोध भड़क उठा था।

30) इस्राएल और यूदा की प्रजा ने अपनी जवानी के दिनों से ही वही किया है, जो मेरी दृष्टि में बुरा है।’ प्रभु यह कहता है-“इस्राएल की प्रजा ने अपने कर्मों द्वारा मेरा क्रोध भड़काने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया है।

31) अपने निर्माण के दिन से ले कर आज तक यह नगर मेरा क्रोध और कोप ही जगाता रहा है, जिसके कारण मैं इसे अपनी आँखों से दूर कर दूँगा।

32) इस्राएल और यूदा की प्रजा, उसके राजाओं और राज्याधिकारियों, उसके याजकों और नबियों, यूदा के लोगों और येरूसालेम के निवासियों ने अपने पापों से मुझे क्रुद्ध कर दिया है।

33) उन्होंने मेरे सामने अपना मुँह नहीं, बल्कि अपनी पीठ कर दी है और यद्यपि मैंने उन्हें बारम्बार समझाया, किन्तु उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शिक्षा ग्रहण नहीं की।

34) उन्होंने मेरे नाम से प्रसिद्ध निवास में अपनी घृणित मूर्तियों की स्थापना कर उसे अपवित्र कर दिया है।

35) उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों की बलि मोलेक को देने के लिए बेन-हिन्नोम की घाटी में बाल-देवता के पहाड़ी पूजास्थान बनाये, यद्यपि मैंने उन को इसका आदेश नहीं दिया था और न ही मेरे मन में यह विचार आ सकता था कि वे ऐसा घृणित कर्म करें, जिससे यूदा पाप की ओर प्रेरित हो।'

36) “इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर इस नगर के विषय में यह कहता है, जिसके सम्बन्ध में तुम यह कहते हो, ‘यह तलवार, अकाल और महामारी के कारण बाबुल के राजा के हाथ जा रहा है’।

37) मैं उन्हें उन सब देशों से एकत्रित करूँगा, जहाँ अपने क्रोध, आक्रोश और महाकोप में मैंने उन्हें भगा दिया था। मैं उन्हें पुनः इसी स्थान पर वापस ले आऊँगा और शान्तिपूर्वक रहने दूँगा।

38) वे मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा।

39) मैं उन को एक ही मन और एक ही मार्ग प्रदान करूँगा, जिससे वे अपने और अपने बाद आने वाली सन्तान के कल्याण के लिए सदा मुझ से डरते रहें।

40) मैं उनके साथ यह चिरस्थायी विधान निर्धारित करूँगा कि मैं उनकी भलाई करने से कभी विमुख नहीं होँऊँगा। मैं उनके हृदय में अपने प्रति ऐसा भय उत्पन्न करूँगा कि वे मुझ से फिर कभी विमुख नहीं होंगे।

41) मुझे उनकी भलाई करने में प्रसन्नता होगी और मैं सच में सम्पूर्ण हृदय और मन से उन्हें इस देश में सुदृढ़ करूँगा।

42) “इसलिए प्रभु, यह कहता हैः जिस तरह मैंने इन लोगों पर यह बड़ी विपत्ति ढाही है, उसी तरह मैं इन्हें वह समृद्धि प्रदान करूँगा, जिसका मैं इन्हें वचन दे रहा हूँ।

43) इस देश में खेत फिर ख़रीदे जायेंगे, जिसके विषय में तुम यह कह रहे हो, ‘यह उजाड़, जनहीन और पशुरहित हो गया है। यह खल्दैयिायों के हाथ चला गया है।’

44) बेनयामीन के देश में, येरूसालेम के पड़ोस की जगहों और यूदा के नगरों में, पहाड़ी प्रदेश के नगरों, निम्न भूमी के नगरों और नेगेब के नगरों में मूल्य दे कर खेत ख़रीदे जायेंगे, पट्टों पर हस्ताक्षर होंगे, मुहर लगायी जायेगी और उन्हें साक्षियों द्वारा प्रमाणित कराया जायेगा।''



Copyright © www.jayesu.com