📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 06

2 (1-2) प्रभु! क्रुद्ध हुए बिना मुझे दण्ड दे, कोप किये बिना मेरा सुधार कर।

3) प्रभु! दया कर, मैं कुम्हलाता जा रहा हूँ प्रभु! मुझे स्वस्थ कर। मेरी शक्ति शेष हो रही है।

4) मेरी आत्मा बहुत घबरा रही है। लेकिन तू प्रभु! कब तक......?

5) प्रभु! लौट कर मेरे प्राणों की रक्षा कर। अपनी सत्यप्रतिज्ञता के कारण मेरा उद्धार कर

6) मृतकों में कोई तेरा नाम नहीं लेता, अधोलोक में कोई तुझे स्मरण नहीं करता।

7) मैं आह भरते-भरते थक गया हूँ। मैं हर रात शय्या पर रोता रहता हूँ, मेरा बिछावन आँसुओं से तर हो जाता है।

8) मेरी आँखें शोक से धुँधली हो गयी हैं, मेरे बहुत-से शत्रुओं के कारण वे क्षीण हो गयी हैं।

9) कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो; प्रभु ने मेरा विलाप सुन लिया है।

10) प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुन ली है; प्रभु मेरा निवेदन स्वीकार करता है।

11) मेरे शत्रु निराश और भयभीत हों। वे सब लज्जित हो कर हट जायें।



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