📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 63

2 (1-2) ईश्वर! तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।

3) मैंने तेरे मंदिर में तेरे दर्शन किये, मैंने तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा देखी है।

4) तेरी सत्यप्रतिज्ञता प्राणों से भी अधिक प्यारी है। मेरा कण्ठ तेरी स्तुति करता था।

5) मैं जीवन भर तुझे धन्य कहूँगा और तुझ से करबद्ध प्रार्थना करता रहूँगा।

6) मेरी आत्मा मानों उत्तम व्यंजनों से तृप्त होगी; मैं उल्लसित हो कर तेरी स्तुति करूँगा।

7) मैं अपनी शय्या पर भी तुझे याद करता हूँ; मैं रात भर तेरा मनन करता हूँ।

8) तू सदा मेरा सहारा रहा है; मैं तेरे पंखों की छाया में सुखी हूँ।

9) मेरी आत्मा तुझे में आसक्त रहती है; तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता रहता है।

10) जो मेरे प्राणों के गाहक हैं, उनका विनाश हो; वे अधोलोक जायें।

11) वे तलवार के घाट उतारे जाये; वे गीदड़ों का आहार बनें।

12) राजा प्रभु के कारण आनन्दित होंगे। जो ईश्वर की शपथ खाता है, वह अपने को धन्य समझेगा, जब कि मिथ्यावादियों का मुख बन्द रहेगा।



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