📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 30

2 (1-2) प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने मेरा उद्धार किया; तूने मेरे शत्रुओं को मुझ पर हंसने नहीं दिया।

3) प्रभु! मेरे ईश्वर! मैंने तुझे पुकारा और तूने मुझे स्वास्थ्य प्रदान किया।

4) प्रभु! तूने मुझे अधोलोक से निकाला! मैं मरने को था और तूने मुझे नवजीवन प्रदान किया।

5) प्रभु-भक्तों! उसके आदर में गीत गाओ, उसके पवित्र नाम का जयकार करो।

6) उसका क्रोध क्षण भर रहता है, उसकी कृपा जीवन भर बनी रहती है। सांझ को भले ही रोना पड़े, भोर में आनन्द-ही-आनन्द है।

7) मैंने सुख-शान्ति के समय कहा था: मैं कभी विचलित नहीं होऊँगा।

8) प्रभु! तूने अपनी कृपा से मुझे सुदृढ़ किया था, किन्तु जब तूने मुझ से अपना मुख छिपाया, तो मैं घबरा गया।

9) प्रभु! मैंने तुझे पुकारा, मैंने तुझ से यह प्रार्थना की,

10) मेरी मृत्यु से, अधोलोक में मेरे उतरने से तुझे क्या लाभ होगा? क्या धूल तुझे धन्यवाद देती है या तेरी सत्यप्रतिज्ञता की घोषणा करती है?

11) प्रभु! मेरी सुन, मुझ पर दया कर। प्रभु! मेरी सहायता कर।"

12) तूने मेरा शोक आनन्द में बदल दिया, तूने मेरा टाट उतार कर मुझे आनन्द के वस्त्र पहनाये;

13) इसलिए मेरी आत्मा निरन्तर तेरा गुणगान करती है। प्रभु! मेरे ईश्वर! मैं अनन्त काल तक तुझे धन्यवाद देता रहूँगा।



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