📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 120

1) मैंने संकट में प्रभु को पुकारा और उसने मुझे उत्तर दिया।

2) "प्रभु! झूठ बोलने वाले होंठों से, कपटपूर्ण जिह्वा से मेरी रक्षा कर"।

3) कपटी जिह्वा! तुम को कौन-सा दण्ड दिया जाये? तुम्हें और क्या किया जाये?

4) वह योद्धा के पैने बाणों से, झाड़-झंखाड़ की आग से तुम्हें दण्ड देगा।

5) हाय! प्रवासी के रूप में मैं मेशेक में रहता हूँ; मैं केदार प्रदेश के तम्बुओं के बीच निवास करता हूँ।

6) मैं बहुत अधिक समय तक उन लोगों के साथ रह चुका हूँ, जो शान्ति से घृणा करते हैं।

7) मैं शान्तिप्रिय हूँ, किन्तु जब मैं शान्ति की बात कहता हूँ, तो वे युद्ध का उपक्रम करते हैं।



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